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Saudi-Iran Pact : प. एशिया की राजनीति में चीन की एंट्री, भारत को सतर्क रहने की जरूरत

पश्चिम एशिया और मध्य पूर्व की राजनीति में चीन की एंट्री ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है. दो परंपरागत दुश्मनों (ईरान और सऊदी अरब) को करीब लाने में चीन की भूमिका से अमेरिका भी स्तब्ध रह गया है. भारत पूरी स्थिति पर अपनी नजर बनाए हुए है. आने वाले समय में चीन किस कदर यहां पर अपनी राजनीतिक बिसात बिछाता है, भारत का अगला कदम उसके परिप्रेक्ष्य में ही होगा. पढ़ें ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर बिलाल भट का एक विश्लेषण.

saudi, iran deal
सऊदी और ईरान के बीच डील
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Published : Mar 28, 2023, 1:58 PM IST

हैदराबाद : पश्चिम एशिया की राजनीति में बड़ा बदलाव आ रहा है. धीरे-धीरे यहां पर अमेरिका का प्रभाव घटता जा रहा है, जबकि चीन और रूस मजबूती से अपना पैर पसार रहे हैं. इस तरह के बदलते हुए घटनाक्रम की वजह से दुनिया में एक नई व्यवस्था कायम हो सकती है. सऊदी अरब और ईरान अपनी 'दुश्मनी' भुलाकर करीब आ रहे हैं. पिछले कई सालों से ईरान, यमन के हूतियों का समर्थन करता आ रहा था. वहां पर सऊदी अरब उनका विरोध करता था. इस वजह से यमन में शांति स्थापित नहीं हो पा रही थी. लेकिन अब ईरान और सऊदी अरब के करीब आ जाने से यहां पर शांति स्थापित करने की उम्मीदें दिखने लगी हैं. इसी तरह से लेबनान और सीरिया के बीच जारी संघर्ष पर भी विराम लगने की उम्मीद जगी है.

प. एशिया में ये परिवर्तन रातों-रात नहीं आए हैं. लंबे समय से चीन की कोशिश जारी थी. वह धीरे-धीरे अमेरिका का प्रभाव सीमित कर रहा था. ट्रंप सरकार के समय में 2019 में जब सऊदी ऑयल प्लांट पर हूती विद्रोहियों ने हमला किया था, तब अमेरिका का रिस्पॉंस बहुत ही ठंडा था. चीन ने इसका पूरा फायदा उठाया. बाइडेन के समय में भी स्थिति में बदलाव नहीं आया. बल्कि बाइडेन ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान सऊदी पर हमले भी किए थे. उन्होंने सऊदी अरब पर तीखी टिप्पणी की थी. उन्होंने सऊदी के खिलाफ कदम उठाने तक की बात कह दी थी.

अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका और तालिबान की डील दोहा (कतर) में हुई. सऊदी अरब को उस समझौते से अपना रूख तय करने में मदद मिली. इस डील के बाद अमेरिकी फोर्स अफगानिस्तान से निकल गई. यूक्रेन संघर्ष की वजह से तेल की कीमतें बढ़ रही थीं. इसलिए बाइडेन को अपना स्टैंड बदल लिया. अब से करीब एक साल पहले बाइडेन ने सऊदी विजिट करने की योजना बनाई थी. वह चाहते थे कि तेल की कीमत घटाने के लिए सऊदी अरब तेल का उत्पादन बढ़ाए.

ऊर्जा मार्केट में बढ़ती कीमत की वजह से ही अमेरिका प. एशिया आया था. लेकिन अमेरिकी प्रयासों को रूस और चीन की वजह से झटका लगा. रूस और सऊदी अरब ने तेल की कीमत घटाने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वह तेल का उत्पादन नहीं बढ़ाएंगे. रूस ने एक-एक 'प्लेयर' से उनके साझा हितों पर बात कर उन्हें राजी कर लिया. और सबका साझा 'दुश्मन' और कोई नहीं, बल्कि अमेरिका था.

ईरान ने रूस को यूक्रेन युद्ध के दौरान ड्रोन से मदद की. इनके ड्रोन में लॉंग रेंज मिसाइल फिट किए जा सकते हैं. सऊदी ने क्योंकि तेल का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया, तो जाहिर है इसका सीधा फायदा रूस को मिला. इस पूरे 'खेल' में चीन को सबसे अधिक फायदा पहुंचा. चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच उस समय डील करवाई, जब चीनी संसद सत्र चालू था और इस तरह से उसने प. एशिया और मध्य पूर्व एशिया के राजनीतिक परिदृश्य को अपने हित की ओर मोड़ने में सफल रहा. ईरान भी इजराइल के खिलाफ लंबे समय से फिलिस्तीन विद्रोहियों का समर्थन करता रहा है. लेकिन इस समझौते की वजह से इन दोनों देशों के बीच भी स्थिति बदल सकती है. ट्रंप ने तो अरब और इजराइल के बीच शांति स्थापित करने का प्रयास किया था. पर बात आगे नहीं बढ़ी. संयुक्त अरब अमीरात ने सऊदी अरब और ईरान डील की तारीफ की है. इससे भी अमेरिका को झटका लगा है. अब देखिए भारत को इस डील को किस नजरिए से देखना चाहिए.

भारत और इजराइल के बीच अच्छे संबंध हैं. भारत, प. एशिया में हो रहे इन बदलावों पर नजर बनाए हुए है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस पर अपनी कोई राय जाहिर नहीं की है. भारत ने कोई आपत्ति भी जाहिर नहीं की. भारत के सऊदी अरब और ईरान, दोनों देशों से अच्छे रिश्ते हैं. इसके ठीक विपरीत चीन ने ईरान के चाबहार-जाहेदान रेल लिंक प्रोजेक्ट पर आपत्ति जाहिर की थी, क्योंकि यह भारत को दिया गया था, और चीन खुद इस प्रोजेक्ट को विकसित करना चाहता था. ईरान और सऊदी अरब के बीच हुए समझौते पर भारत ने अब तक पूरी तरह से निष्पक्ष स्टैंड बरकरार रखा है. भारत के लिए सिर्फ एक चीज खटकने वाली है, वह है चीन.

क्योंकि चीन ने ही दोनों देशों को नजदीक लाया है. चीन ने अपने इस कदम से प. एशिया में मजबूती से पांव जमा लिए हैं. लेकिन चीन विस्तारवादी नीति को फॉलो करता रहा है. तेल की बढ़ती कीमत के बीच रूस ने भारत की पूरी मदद की. उसे कम दामों पर तेल मिल गया. भारत इस तेल को रिफाइन कर पश्चिम और यूरोप के देशों को ऊंची कीमत पर निर्यात कर रहा है. अब इस मार्केट पर चीन की नजर है. इसलिए भारत को सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि सऊदी और ईरान का चीन के करीब आना, भारत के हिसाब से ठीक नहीं होगा. यह रूस के हितों को जरूर पूरा करता है. अब आगे की स्थिति कैसी बनती है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. भारत अपने दोस्तों और विरोधियों के बीच यूएन में सफलतापूर्वक सामंजस्य बिठाता रहा है. प. एशिया में अमेरिका के बाद अब चीन की एंट्री ने सबकुछ बदल दिया है. भारत, चीन का प्रतिद्वंद्वी भी है, लिहाजा, यह देखने वाली बात होती कि वह अपना अगल कदम कब और किस समय उठाता है.

ये भी पढ़ें : Slogan For Khalistan In Punjab : नहीं बरती सख्ती तो फिर जल उठेगा पंजाब !

हैदराबाद : पश्चिम एशिया की राजनीति में बड़ा बदलाव आ रहा है. धीरे-धीरे यहां पर अमेरिका का प्रभाव घटता जा रहा है, जबकि चीन और रूस मजबूती से अपना पैर पसार रहे हैं. इस तरह के बदलते हुए घटनाक्रम की वजह से दुनिया में एक नई व्यवस्था कायम हो सकती है. सऊदी अरब और ईरान अपनी 'दुश्मनी' भुलाकर करीब आ रहे हैं. पिछले कई सालों से ईरान, यमन के हूतियों का समर्थन करता आ रहा था. वहां पर सऊदी अरब उनका विरोध करता था. इस वजह से यमन में शांति स्थापित नहीं हो पा रही थी. लेकिन अब ईरान और सऊदी अरब के करीब आ जाने से यहां पर शांति स्थापित करने की उम्मीदें दिखने लगी हैं. इसी तरह से लेबनान और सीरिया के बीच जारी संघर्ष पर भी विराम लगने की उम्मीद जगी है.

प. एशिया में ये परिवर्तन रातों-रात नहीं आए हैं. लंबे समय से चीन की कोशिश जारी थी. वह धीरे-धीरे अमेरिका का प्रभाव सीमित कर रहा था. ट्रंप सरकार के समय में 2019 में जब सऊदी ऑयल प्लांट पर हूती विद्रोहियों ने हमला किया था, तब अमेरिका का रिस्पॉंस बहुत ही ठंडा था. चीन ने इसका पूरा फायदा उठाया. बाइडेन के समय में भी स्थिति में बदलाव नहीं आया. बल्कि बाइडेन ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान सऊदी पर हमले भी किए थे. उन्होंने सऊदी अरब पर तीखी टिप्पणी की थी. उन्होंने सऊदी के खिलाफ कदम उठाने तक की बात कह दी थी.

अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका और तालिबान की डील दोहा (कतर) में हुई. सऊदी अरब को उस समझौते से अपना रूख तय करने में मदद मिली. इस डील के बाद अमेरिकी फोर्स अफगानिस्तान से निकल गई. यूक्रेन संघर्ष की वजह से तेल की कीमतें बढ़ रही थीं. इसलिए बाइडेन को अपना स्टैंड बदल लिया. अब से करीब एक साल पहले बाइडेन ने सऊदी विजिट करने की योजना बनाई थी. वह चाहते थे कि तेल की कीमत घटाने के लिए सऊदी अरब तेल का उत्पादन बढ़ाए.

ऊर्जा मार्केट में बढ़ती कीमत की वजह से ही अमेरिका प. एशिया आया था. लेकिन अमेरिकी प्रयासों को रूस और चीन की वजह से झटका लगा. रूस और सऊदी अरब ने तेल की कीमत घटाने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वह तेल का उत्पादन नहीं बढ़ाएंगे. रूस ने एक-एक 'प्लेयर' से उनके साझा हितों पर बात कर उन्हें राजी कर लिया. और सबका साझा 'दुश्मन' और कोई नहीं, बल्कि अमेरिका था.

ईरान ने रूस को यूक्रेन युद्ध के दौरान ड्रोन से मदद की. इनके ड्रोन में लॉंग रेंज मिसाइल फिट किए जा सकते हैं. सऊदी ने क्योंकि तेल का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया, तो जाहिर है इसका सीधा फायदा रूस को मिला. इस पूरे 'खेल' में चीन को सबसे अधिक फायदा पहुंचा. चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच उस समय डील करवाई, जब चीनी संसद सत्र चालू था और इस तरह से उसने प. एशिया और मध्य पूर्व एशिया के राजनीतिक परिदृश्य को अपने हित की ओर मोड़ने में सफल रहा. ईरान भी इजराइल के खिलाफ लंबे समय से फिलिस्तीन विद्रोहियों का समर्थन करता रहा है. लेकिन इस समझौते की वजह से इन दोनों देशों के बीच भी स्थिति बदल सकती है. ट्रंप ने तो अरब और इजराइल के बीच शांति स्थापित करने का प्रयास किया था. पर बात आगे नहीं बढ़ी. संयुक्त अरब अमीरात ने सऊदी अरब और ईरान डील की तारीफ की है. इससे भी अमेरिका को झटका लगा है. अब देखिए भारत को इस डील को किस नजरिए से देखना चाहिए.

भारत और इजराइल के बीच अच्छे संबंध हैं. भारत, प. एशिया में हो रहे इन बदलावों पर नजर बनाए हुए है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस पर अपनी कोई राय जाहिर नहीं की है. भारत ने कोई आपत्ति भी जाहिर नहीं की. भारत के सऊदी अरब और ईरान, दोनों देशों से अच्छे रिश्ते हैं. इसके ठीक विपरीत चीन ने ईरान के चाबहार-जाहेदान रेल लिंक प्रोजेक्ट पर आपत्ति जाहिर की थी, क्योंकि यह भारत को दिया गया था, और चीन खुद इस प्रोजेक्ट को विकसित करना चाहता था. ईरान और सऊदी अरब के बीच हुए समझौते पर भारत ने अब तक पूरी तरह से निष्पक्ष स्टैंड बरकरार रखा है. भारत के लिए सिर्फ एक चीज खटकने वाली है, वह है चीन.

क्योंकि चीन ने ही दोनों देशों को नजदीक लाया है. चीन ने अपने इस कदम से प. एशिया में मजबूती से पांव जमा लिए हैं. लेकिन चीन विस्तारवादी नीति को फॉलो करता रहा है. तेल की बढ़ती कीमत के बीच रूस ने भारत की पूरी मदद की. उसे कम दामों पर तेल मिल गया. भारत इस तेल को रिफाइन कर पश्चिम और यूरोप के देशों को ऊंची कीमत पर निर्यात कर रहा है. अब इस मार्केट पर चीन की नजर है. इसलिए भारत को सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि सऊदी और ईरान का चीन के करीब आना, भारत के हिसाब से ठीक नहीं होगा. यह रूस के हितों को जरूर पूरा करता है. अब आगे की स्थिति कैसी बनती है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. भारत अपने दोस्तों और विरोधियों के बीच यूएन में सफलतापूर्वक सामंजस्य बिठाता रहा है. प. एशिया में अमेरिका के बाद अब चीन की एंट्री ने सबकुछ बदल दिया है. भारत, चीन का प्रतिद्वंद्वी भी है, लिहाजा, यह देखने वाली बात होती कि वह अपना अगल कदम कब और किस समय उठाता है.

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