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विशेष : जम्मू-कश्मीर में नौकरशाही के नाटक से राजनीतिक भू-परिदृश्य तक - गिरीश चंद्र मुर्मू

जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट देने के बाद उसे विशेष दर्जा एवं उससे जुड़े अन्य राजनीतिक विशेषाधिकार के बगैर छोड़ दिया गया. संविधान के अनुच्छेद- 370 को रद्द किए जाने के बाद वहां उपजी कानूनी जटिलताओं से निपटने के लिए एक नौकरशाह की जरूरत थी जो पुनर्गठन नियमावली- 2019 को लागू करे. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास गिरीश चंद्र मुर्मू से बेहतर कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि इशरत जहां मुठभेड़ कांड में वह मोदी के प्रति अपनी वफादारी पहले ही दिखा चुके थे. मोदी नौकरशाह के रूप में उनकी कुशाग्र बुद्धि से भी परिचित थे क्योंकि जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब मुर्मू उनके निजी सचिव के रूप में काम कर चुके थे.

Lieutenant Governor of Jammu and Kashmir Manoj Sinha
मनोज सिन्हा
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Published : Aug 8, 2020, 10:36 PM IST

Updated : Aug 8, 2020, 10:44 PM IST

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के गुजरात कैडर के अधिककारी मुर्मू को जटिल कानूनी मामलों से निपटना था. जम्मू-कश्मीर का रुतबा कम करके उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में फाड़ दिया गया. वह भी एक विधानसभा के साथ और दूसरा इसके बगैर विधानसभा के. एक ऐसा क्षेत्र जिसका दो राजधानियों के साथ मुख्यमंत्री सचिवालय और राजभवन मोबाइल था, उसकी स्थिति अब मात्र केंद्रशासित प्रदेश की है. वास्तव में, नए केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में जो नौकरशाह रहेंगे, उन्हें बहुत अधिक ठंड का सामना करना पड़ेगा और शून्य से भी नीचे तापमान में जनता की सेवा करनी पड़ेगी. इसके अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है. ऐसा पहले प्रचलन में नहीं था. सर्दियों में सचिवालय जम्मू चला चला जाता था और गर्मियों में श्रीनगर आ जाता था. ऐसा करने से नौकरशाहों और उनके परिवार के सदस्यों को कश्मीर और लद्दाख की कड़कड़ाती ठंड से बचाव हो जाता था.

असामाजिक (नन स्टेट) तत्वों से निबटने के लिए सशस्त्र बलों को और अधिकार दे दिए गए और यह सुनिश्चित किया गया कि सरकार विरोधी स्वरों को ताकत नहीं मिले. अलगाववादी आंदोलन को रोकने के लिए मुर्मू के प्रमुख एजेंडे में यह भी शामिल था कि उसकी जगह वहां के मूल निवासी पहले से भी अधिक संख्या में भारत के लिए आवाज उठाएं. अनुच्छेद- 370 को रद्द किए जाने के बाद नई पुनर्गठन नियमावली के तहत पात्र इच्छुक उम्मीदवारों को बगैर बहुत अधिक शोर शराबे के अधिवास (डोमिसाइल) प्रमाण-पत्र मुहैया कराने की प्रक्रिया नौकरशाही से किसी तकलीफ के बगैर शुरू कर दी गई. ये कुछ ऐसे काम थे जिसे केवल मुर्मू जैसे अधिकारी ही कर सकते थे.

कानून को लागू करने के लिए शासन को इस तरह का रास्ता अपनाना था जो सरकार के एजेंडे की पूरक हो. मुर्मू ने पूरे विश्वास के साथ कानूनों का लागू करते हुए असहमति की आवाज को बंद करने के तरीके को अपनाकर इस काम को किया. कुछ तो आपसी तालमेल से और कुछ अनिवार्य कूटनीति से. राजनीति की मुख्य धारा के अधिकतर सदस्यों को या तो जेल में डाल दिया गया या घरों में नजरबंद कर दिया गया.

यह भी पढ़ें- राहुल बोले- मोदी सरकार लोकतंत्र विरोधी, फाइलें गायब होना संयोग नहीं

जो लोग लाइन पर आ गए उन्हें सावधानी बरतते हुए एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया, जिसमें लिखा था कि सरकार जो कहेगी उसे मानेंगे. पीडीपी के एक नेता ने रिहा होने के बाद इसका खुलासा किया. यह अनिवार्य कूटनीति कानूनी उपाय से केवल एक ऐसे आदमी से संभव थी जो नौकरशाही की भाषा को समझता हो. पहले एक साल कश्मीर राजनीतिक रूप से निष्क्रिय रहा और नौकरशाही की गतिविधियों का बोलबाला रहा.

अब राजनीति के लिए मंच तैयार हो गया है, स्वाभाविक तौर पर इस भूमिका के लिए मुर्मू ने खुद को ठीक नहीं पाया. जम्मू-कश्मीर में पिछले साल उपराज्यपाल (एलजी) की भूमिका अधिकतर गैर राजनीतिक थी. यह क्षेत्र राजनीति के लिए अब तैयार है. मुर्मू ने जब चुनाव, परिसीमन और इंटरनेट बंद करने से संबंधित कुछ बयान जारी किए तो नई दिल्ली को यह अच्छा नहीं लगा और उन्हें हटना पड़ा. उनकी वफादारी और तीक्ष्ण बुद्धि के दम पर उन्हें इससे बेहतर नियंत्रक एवं महालेखाकार (सीएजी) का पद मिला. उनकी जगह पाने वाले मनोज सिन्हा भाजपा में जनता से जुड़े होने की काबिलियत के साथ चुप रहकर काम करके दिखाने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं.

सिन्हा की जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के रूप में ऐसे समय में नियुक्ति हुई है जब इस क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियां फिर से जीवित हो रही हैं. पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद- 370 हटाए जाने के बाद लगभग सभी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था और कड़ी कार्रवाई की वजह से सभी राजनीतिक गतिविधियां समाप्त हो गई थीं. प्रत्यक्ष रूप से नया कुछ नहीं है लेकिन मुख्यधारा के राजनीतिक भूपरिदृश्य में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए पुराने दलबदलू लौटेंगे. दीवार पर यह अर्थ पूर्ण ढंग से लिखा हुआ है कि जिन लोगों को मुक्त किया गया है उन लोगों ने इस फैसले को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है.

(बिलाल भट्ट, न्यूज एडिटर, ईटीवी भारत)

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के गुजरात कैडर के अधिककारी मुर्मू को जटिल कानूनी मामलों से निपटना था. जम्मू-कश्मीर का रुतबा कम करके उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में फाड़ दिया गया. वह भी एक विधानसभा के साथ और दूसरा इसके बगैर विधानसभा के. एक ऐसा क्षेत्र जिसका दो राजधानियों के साथ मुख्यमंत्री सचिवालय और राजभवन मोबाइल था, उसकी स्थिति अब मात्र केंद्रशासित प्रदेश की है. वास्तव में, नए केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में जो नौकरशाह रहेंगे, उन्हें बहुत अधिक ठंड का सामना करना पड़ेगा और शून्य से भी नीचे तापमान में जनता की सेवा करनी पड़ेगी. इसके अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है. ऐसा पहले प्रचलन में नहीं था. सर्दियों में सचिवालय जम्मू चला चला जाता था और गर्मियों में श्रीनगर आ जाता था. ऐसा करने से नौकरशाहों और उनके परिवार के सदस्यों को कश्मीर और लद्दाख की कड़कड़ाती ठंड से बचाव हो जाता था.

असामाजिक (नन स्टेट) तत्वों से निबटने के लिए सशस्त्र बलों को और अधिकार दे दिए गए और यह सुनिश्चित किया गया कि सरकार विरोधी स्वरों को ताकत नहीं मिले. अलगाववादी आंदोलन को रोकने के लिए मुर्मू के प्रमुख एजेंडे में यह भी शामिल था कि उसकी जगह वहां के मूल निवासी पहले से भी अधिक संख्या में भारत के लिए आवाज उठाएं. अनुच्छेद- 370 को रद्द किए जाने के बाद नई पुनर्गठन नियमावली के तहत पात्र इच्छुक उम्मीदवारों को बगैर बहुत अधिक शोर शराबे के अधिवास (डोमिसाइल) प्रमाण-पत्र मुहैया कराने की प्रक्रिया नौकरशाही से किसी तकलीफ के बगैर शुरू कर दी गई. ये कुछ ऐसे काम थे जिसे केवल मुर्मू जैसे अधिकारी ही कर सकते थे.

कानून को लागू करने के लिए शासन को इस तरह का रास्ता अपनाना था जो सरकार के एजेंडे की पूरक हो. मुर्मू ने पूरे विश्वास के साथ कानूनों का लागू करते हुए असहमति की आवाज को बंद करने के तरीके को अपनाकर इस काम को किया. कुछ तो आपसी तालमेल से और कुछ अनिवार्य कूटनीति से. राजनीति की मुख्य धारा के अधिकतर सदस्यों को या तो जेल में डाल दिया गया या घरों में नजरबंद कर दिया गया.

यह भी पढ़ें- राहुल बोले- मोदी सरकार लोकतंत्र विरोधी, फाइलें गायब होना संयोग नहीं

जो लोग लाइन पर आ गए उन्हें सावधानी बरतते हुए एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया, जिसमें लिखा था कि सरकार जो कहेगी उसे मानेंगे. पीडीपी के एक नेता ने रिहा होने के बाद इसका खुलासा किया. यह अनिवार्य कूटनीति कानूनी उपाय से केवल एक ऐसे आदमी से संभव थी जो नौकरशाही की भाषा को समझता हो. पहले एक साल कश्मीर राजनीतिक रूप से निष्क्रिय रहा और नौकरशाही की गतिविधियों का बोलबाला रहा.

अब राजनीति के लिए मंच तैयार हो गया है, स्वाभाविक तौर पर इस भूमिका के लिए मुर्मू ने खुद को ठीक नहीं पाया. जम्मू-कश्मीर में पिछले साल उपराज्यपाल (एलजी) की भूमिका अधिकतर गैर राजनीतिक थी. यह क्षेत्र राजनीति के लिए अब तैयार है. मुर्मू ने जब चुनाव, परिसीमन और इंटरनेट बंद करने से संबंधित कुछ बयान जारी किए तो नई दिल्ली को यह अच्छा नहीं लगा और उन्हें हटना पड़ा. उनकी वफादारी और तीक्ष्ण बुद्धि के दम पर उन्हें इससे बेहतर नियंत्रक एवं महालेखाकार (सीएजी) का पद मिला. उनकी जगह पाने वाले मनोज सिन्हा भाजपा में जनता से जुड़े होने की काबिलियत के साथ चुप रहकर काम करके दिखाने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं.

सिन्हा की जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के रूप में ऐसे समय में नियुक्ति हुई है जब इस क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियां फिर से जीवित हो रही हैं. पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद- 370 हटाए जाने के बाद लगभग सभी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था और कड़ी कार्रवाई की वजह से सभी राजनीतिक गतिविधियां समाप्त हो गई थीं. प्रत्यक्ष रूप से नया कुछ नहीं है लेकिन मुख्यधारा के राजनीतिक भूपरिदृश्य में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए पुराने दलबदलू लौटेंगे. दीवार पर यह अर्थ पूर्ण ढंग से लिखा हुआ है कि जिन लोगों को मुक्त किया गया है उन लोगों ने इस फैसले को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है.

(बिलाल भट्ट, न्यूज एडिटर, ईटीवी भारत)

Last Updated : Aug 8, 2020, 10:44 PM IST
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