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EXPLAINED : दालों के लिए विदशों पर निर्भरता कम करने के लिए उठाने होंगे कारगर कदम

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 8, 2023, 7:31 PM IST

भारत में कृषि योग्य भूमि पर्याप्त मात्रा में है बावजूद इसके घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे विदेशों से बड़ी मात्रा में दालें और अनाज आयात करना पड़ता है. आयात पर निर्भरता कम करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए, अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर नेदूरी सूर्यनारायण अपने इस लेख में बता रहे हैं. पढ़िए पूरा विश्लेषण.

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दालों के लिए विदशों पर निर्भरता

हैदराबाद : भारत में दालें प्रमुख भोजन है, जिन्हें हाई प्रोटीन के कारण अमीर और गरीब सभी वर्ग के लोग खाते हैं. विशेष रूप से गरीब लोग अपने आहार में पोषण के लिए दालों पर बहुत अधिक निर्भर हैं. हालांकि, हाल के दिनों में भारत में चने का उत्पादन काफी कम हो गया है. इसके कई कारण हैं- पहला, किसानों का रुझान देशी दालों और अनाजों की खेती से हटकर कपास और मिर्च जैसी व्यावसायिक फसलों की ओर हो गया है.

वहीं, भारत के कई क्षेत्रों में कृषि भूमि अचल संपत्ति में बदल गई है और भारी बारिश जैसी बदलती मौसम स्थितियों ने फसल की पैदावार को प्रभावित किया है. इसके अलावा, कीटनाशकों की बढ़ती कीमतों के कारण इन फसलों की ओर किसानों का रुझान कम हुआ है. नतीजा ये है कि भारत में मसूर के उत्पादन को नुकसान हुआ है.

राष्ट्रीय स्तर पर चने का उत्पादन लगभग 34 मिलियन टन है. पहले यह 39 मिलियन टन सालाना था. भारत में सालाना 45 मिलियन टन चने की खपत होती है. वर्तमान में कमी के कारण भारत विदेशों से 120 लाख टन चना आयात करने का लक्ष्य बना रहा है.

यह पिछले साल से 35% ज्यादा है. उत्तर प्रदेश में चने की सबसे अधिक पैदावार होती है, इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु का स्थान आता है.

आगामी फसल सीजन के लिए भारत ने अफ्रीकी देशों से 75 लाख टन दाल आयात करने का फैसला किया है. पूर्वी अफ्रीका में मोज़ाम्बिक दाल का सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत ने अकेले मोजाम्बिक से करीब 50 लाख टन दालें आयात करने का फैसला किया है. इसके अतिरिक्त, भारत मलावी, तंजानिया और सूडान से आयात पर विचार कर रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की स्थिति का फायदा उठाते हुए मोजाम्बिक दाल के लिए कम से कम 800 डॉलर से 900 डॉलर (66435.64 से 74745.72 रुपये) प्रति टन का भाव लगा रहा है. विश्लेषण से पता चलता है कि मोज़ाम्बिक में दाल का वास्तविक बाज़ार मूल्य 600 से 700 डॉलर (49830.48 से 58135.56 रुपये) प्रति टन है. कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है. भारतीय दलहन एवं अनाज संघ ने मूल्य वृद्धि की आलोचना करते हुए सरकार से कीमतों पर नियंत्रण करने का आग्रह किया है. सरकार से कीमतें कम करने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की जा रही है.

म्यांमार भारत को दाल का सबसे बड़ा निर्यातक था. हाल के वर्षों में मोज़ाम्बिक ने वह स्थान ले लिया. भारत में कृषि योग्य भूमि प्रचुर मात्रा में है. हालांकि, घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे विदेशों से बड़ी मात्रा में दालें और अनाज आयात करना पड़ता है. पिछले वित्तीय वर्ष में भारत ने सोलह हजार करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की दालें और अनाज का आयात किया. सरकार का दावा है कि उसने घरेलू दालों और अनाज की खेती को बढ़ावा दिया है.

खेती की बढ़ती लागत के साथ, किसान विभिन्न माध्यमों से सरकार के समर्थन के लिए आवेदन करके अपनी चिंताएं व्यक्त कर रहे हैं. ऐसे में दालों और अनाजों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार को समर्थन मूल्य की सही घोषणा करनी चाहिए. अधिक पैदावार प्राप्त करने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए इस तरह से कार्य करना आवश्यक है. फसलों की उन्नत किस्में विकसित करना आवश्यक है जो पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना कर सकें.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि दालों और अनाजों का घरेलू उत्पादन बढ़े, सरकार को वित्तीय बाधाओं को ध्यान में रखते हुए सही समर्थन मूल्य की घोषणा करनी चाहिए. किसानों को ऐसी कृषि पद्धतियां अपनानी चाहिए जो जलवायु परिवर्तन का सामना कर सकें. भारत में दालों और अनाजों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए उचित खेती योजना का होना महत्वपूर्ण है. ऐसा करने से भारत में दालों और अनाजों की खेती का विस्तार होगा. तभी विदेशों से इनका आयात कम से कम होगा.

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हैदराबाद : भारत में दालें प्रमुख भोजन है, जिन्हें हाई प्रोटीन के कारण अमीर और गरीब सभी वर्ग के लोग खाते हैं. विशेष रूप से गरीब लोग अपने आहार में पोषण के लिए दालों पर बहुत अधिक निर्भर हैं. हालांकि, हाल के दिनों में भारत में चने का उत्पादन काफी कम हो गया है. इसके कई कारण हैं- पहला, किसानों का रुझान देशी दालों और अनाजों की खेती से हटकर कपास और मिर्च जैसी व्यावसायिक फसलों की ओर हो गया है.

वहीं, भारत के कई क्षेत्रों में कृषि भूमि अचल संपत्ति में बदल गई है और भारी बारिश जैसी बदलती मौसम स्थितियों ने फसल की पैदावार को प्रभावित किया है. इसके अलावा, कीटनाशकों की बढ़ती कीमतों के कारण इन फसलों की ओर किसानों का रुझान कम हुआ है. नतीजा ये है कि भारत में मसूर के उत्पादन को नुकसान हुआ है.

राष्ट्रीय स्तर पर चने का उत्पादन लगभग 34 मिलियन टन है. पहले यह 39 मिलियन टन सालाना था. भारत में सालाना 45 मिलियन टन चने की खपत होती है. वर्तमान में कमी के कारण भारत विदेशों से 120 लाख टन चना आयात करने का लक्ष्य बना रहा है.

यह पिछले साल से 35% ज्यादा है. उत्तर प्रदेश में चने की सबसे अधिक पैदावार होती है, इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु का स्थान आता है.

आगामी फसल सीजन के लिए भारत ने अफ्रीकी देशों से 75 लाख टन दाल आयात करने का फैसला किया है. पूर्वी अफ्रीका में मोज़ाम्बिक दाल का सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत ने अकेले मोजाम्बिक से करीब 50 लाख टन दालें आयात करने का फैसला किया है. इसके अतिरिक्त, भारत मलावी, तंजानिया और सूडान से आयात पर विचार कर रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की स्थिति का फायदा उठाते हुए मोजाम्बिक दाल के लिए कम से कम 800 डॉलर से 900 डॉलर (66435.64 से 74745.72 रुपये) प्रति टन का भाव लगा रहा है. विश्लेषण से पता चलता है कि मोज़ाम्बिक में दाल का वास्तविक बाज़ार मूल्य 600 से 700 डॉलर (49830.48 से 58135.56 रुपये) प्रति टन है. कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है. भारतीय दलहन एवं अनाज संघ ने मूल्य वृद्धि की आलोचना करते हुए सरकार से कीमतों पर नियंत्रण करने का आग्रह किया है. सरकार से कीमतें कम करने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की जा रही है.

म्यांमार भारत को दाल का सबसे बड़ा निर्यातक था. हाल के वर्षों में मोज़ाम्बिक ने वह स्थान ले लिया. भारत में कृषि योग्य भूमि प्रचुर मात्रा में है. हालांकि, घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे विदेशों से बड़ी मात्रा में दालें और अनाज आयात करना पड़ता है. पिछले वित्तीय वर्ष में भारत ने सोलह हजार करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की दालें और अनाज का आयात किया. सरकार का दावा है कि उसने घरेलू दालों और अनाज की खेती को बढ़ावा दिया है.

खेती की बढ़ती लागत के साथ, किसान विभिन्न माध्यमों से सरकार के समर्थन के लिए आवेदन करके अपनी चिंताएं व्यक्त कर रहे हैं. ऐसे में दालों और अनाजों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार को समर्थन मूल्य की सही घोषणा करनी चाहिए. अधिक पैदावार प्राप्त करने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए इस तरह से कार्य करना आवश्यक है. फसलों की उन्नत किस्में विकसित करना आवश्यक है जो पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना कर सकें.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि दालों और अनाजों का घरेलू उत्पादन बढ़े, सरकार को वित्तीय बाधाओं को ध्यान में रखते हुए सही समर्थन मूल्य की घोषणा करनी चाहिए. किसानों को ऐसी कृषि पद्धतियां अपनानी चाहिए जो जलवायु परिवर्तन का सामना कर सकें. भारत में दालों और अनाजों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए उचित खेती योजना का होना महत्वपूर्ण है. ऐसा करने से भारत में दालों और अनाजों की खेती का विस्तार होगा. तभी विदेशों से इनका आयात कम से कम होगा.

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