ETV Bharat / opinion

इमरान के सत्ता से बेदखल होने के एक साल बाद भी महंगाई और आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान

एक साल पहले इमरान खान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था. उसके बाद उनकी जगह पर शहबाज शरीफ आए. शहबाज शरीफ की सरकार देश को पटरी पर लाने का प्रयास कर रही है. लेकिन महंगाई ने पाकिस्तान के आम लोगों को परेशान कर रखा है. पाकिस्तान के राजनीतिक और आर्थिक हालात पर पढ़िए ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर बिलाल भट का एक विश्लेषण.

shehbaz sharif
शहबाज शरीफ
author img

By

Published : Apr 10, 2023, 7:52 PM IST

हैदराबाद : पाकिस्तान में गठबंधन सरकार का एक साल पूरा हो गया है. इमरान खान को पिछले साल 10 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव के बाद हटा दिया गया था. पाकिस्तान की संसद ने सैन्य तख्तापलट से नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से प्रधानमंत्री को उखाड़ फेंका था.

नेशनल असेंबली ने 12 घंटे तक बहस की और पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी), पीएमएल (पाकिस्तान मुस्लिम लीग, नवाज), जमीयत उलेमा ए इस्लाम (फज़ल) जैसे विपक्षी दलों का समर्थन करते हुए इमरान के खिलाफ मतदान किया. हालांकि पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट का इतिहास रहा है. पहले देश के कई प्रधानमंत्रियों को इस तरह हटाया गया है.

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन ऐसे समय में हुआ जब पूरा देश आर्थिक संकट और ऑल टाइम हाई इन्फ्लेशन से जूझ रहा था. सत्ता में आने के बाद शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharief ) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने देश में आर्थिक स्थिरता बहाल करने का वादा किया था.

देश को गहरे आर्थिक संकट से उबारने के लिए आईएमएफ (IMF) के साथ बातचीत की गई, जिसका अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है. वहीं, लोगों को महंगाई से थोड़ी राहत देने के लिए उठाए गए कुछ कदमों का अभी तक कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखा है. दरअसल, देश को रूस से सस्ते दाम पर कच्चा तेल मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उसके बारे में अभी तक कुछ तय नहीं हो पाया है. इमरान खान पिछले 23 साल में मॉस्को की यात्रा करने वाले पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे. पर कम कीमत पर कच्चे तेल की खरीद को लेकर रूस के साथ समझौता अंतिम रूप नहीं ले सका.

इमरान खान भारत की तरह सस्ते दाम पर रूस से कच्चा तेल खरीदना चाहते थे. यही वजह है कि इमरान ने तटस्थ रास्ता चुनने और कम कीमत पर रूस से तेल खरीदना जारी रखने में प्रधानमंत्री मोदी की बुद्धिमत्ता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था. इससे पहले कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मॉस्को के साथ समझौता कर पाते, उन्हें पद से हटा दिया गया. नई सरकार तेल खरीद के लिए रूस के साथ प्रक्रिया को गति नहीं दे सकी, वह अभी भी समझौते के स्तर पर अटकी हुई है.

वहीं दूसरी ओर देश और अधिक आर्थिक संकट में डूब गया है. न केवल आर्थिक संकट सर्वकालिक उच्च पर चला गया है, बल्कि इमरान की पार्टी राज्यों में पूरी तरह से 'बेलगाम' हो गई है. खैबर पख्तूनख्वा और पंजाब में इमरान की पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ) सत्ता में थी. खैबर पख्तूनख्वा (KP) एक आदिवासी बेल्ट है, जो अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ है. यहां के लोगों ने इस इलाके में आतंकवादी समूहों का बढ़ना और तहरीक ए तालिबान के साथ उनका विलय देखा है. खासकर इमरान खान की सरकार के पाकिस्तान संसद में विश्वास मत हारने के बाद. पाकिस्तानी सेना के इमरान से मुंह मोड़ने के बाद कबायली क्षेत्र में आतंकी गतिविधियां बढ़ गई हैं.

छोटे आतंकी समूह फिर से उभर आए हैं और उन्होंने मुख्य आतंकी समूह तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ हाथ मिला लिया है, जो अफगान तालिबान से प्रभावित है. ऐसा माना जाता है कि आतंकवाद का फिर से उभरना अपरिहार्य था. तालिबान के अधिग्रहण के बाद से ये तय था कि ये पाकिस्तानी सेना के लिए परेशानी का सबब बनेंगे, लेकिन फिर भी इमरान की सरकार ने केपी बेल्ट में सैन्य अभियानों को रोक दिया. इस डर से कि पार्टी केपी के आदिवासी नेताओं के साथ अपनी निकटता के वर्षों के दौरान अर्जित किए गए वोट बैंक को खो सकती है.

केपी विधानसभा को पिछले साल जनवरी में भंग कर दिया गया था. कुल 145 सीटों वाली इस विधानसभा में पीटीआई के 96 सदस्य थे. पीटीआई को उम्मीद है कि चुनाव होने पर उसे फिर बहुमत मिलेगा. पीटीआई जल्द आम चुनाव के साथ-साथ केपी और पंजाब में भी चुनाव की मांग कर रही है, जिसका सरकार विरोध कर रही है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की है कि केपी और पंजाब में 14 मई को चुनाव हो सकते हैं. लेकिन सत्तारूढ़ सरकार ने नेशनल असेंबली के पटल पर कोर्ट के फैसले की अवहेलना की है, इसे अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया है. इसके विपरीत, सरकार केपी में आतंकवादी समूहों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की योजना बना रही है, जिसमें सेना और पुलिस दोनों शामिल होंगे.

चूंकि विपक्ष ने पिछले साल बड़े पैमाने पर इस्तीफा दे दिया था, इसलिए पाकिस्तान की संसद के निचले सदन में कोई विपक्षी सदस्य नहीं है, जिससे सत्तारूढ़ दल के लिए ये खुला मैदान बन गया है. पीटीआई केपी और पंजाब में जल्द चुनाव कराना चाहती है, लेकिन संसद के पटल से सरकार स्पष्ट रूप से कहती है कि समय से पहले चुनाव नहीं होने चाहिए. इस साल मार्च में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने ईसीपी (पाकिस्तान के चुनाव आयोग) को पंजाब और केपी में 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने और सभी आवश्यक व्यवस्था करने का निर्देश दिया था.

दूसरी ओर, ईसीपी ने नाराजगी व्यक्त करते हुए आशंका व्यक्त की कि आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को देखते हुए तैनाती अपर्याप्त होगी. सरकार का मानना ​​है कि क्षेत्र में आतंकवाद का खात्मा चुनाव कराने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. देश में एक बड़ा ध्रुवीकरण हो गया है, जिससे न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच और चुनावों को लेकर विपक्ष और सत्ताधारी दलों के बीच बड़ी खाई पैदा हो गई है.

इमरान का रुख केपी के आतंकी नेताओं के प्रति नरम रहा है. उनके कुछ नेताओं ने माफी की मांग की थी. इस पर उन्हें जेल से रिहा होने के बाद या जाहिर तौर पर हिंसा से दूर रहने पर समाज में फिर से शामिल होने की अनुमति दी गई. आदिवासियों के बीच इमरान की लोकप्रियता को देखते हुए, सरकार और सुरक्षा तंत्र का मानना ​​है कि आतंकवादी समूह चुनावों में पीटीआई का समर्थन करेंगे और इमरान की पार्टी फिर से सत्ता में आएगी. यही वजह है कि सरकार इस इलाके में पहले ऑपरेशन करने और बाद में चुनाव कराने की योजना बना रही है.

कुल मिलाकर महंगाई और बेरोज़गारी की कड़वी हकीकत के बीच पाकिस्तान की जनता सत्ता पक्ष और विपक्ष की राजनीति के बीच फंसी हुई है. साल बीत गया, लेकिन बिलावल भुट्टो ने जो कहा था कि 'पुराने पाकिस्तान में आपका स्वागत है' अभी आना बाकी है.

पढ़ें- Toshkhana Corruption Case: लाहौर उच्च न्यायालय 12 अप्रैल को इमरान खान की याचिका पर करेगा सुनवाई

हैदराबाद : पाकिस्तान में गठबंधन सरकार का एक साल पूरा हो गया है. इमरान खान को पिछले साल 10 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव के बाद हटा दिया गया था. पाकिस्तान की संसद ने सैन्य तख्तापलट से नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से प्रधानमंत्री को उखाड़ फेंका था.

नेशनल असेंबली ने 12 घंटे तक बहस की और पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी), पीएमएल (पाकिस्तान मुस्लिम लीग, नवाज), जमीयत उलेमा ए इस्लाम (फज़ल) जैसे विपक्षी दलों का समर्थन करते हुए इमरान के खिलाफ मतदान किया. हालांकि पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट का इतिहास रहा है. पहले देश के कई प्रधानमंत्रियों को इस तरह हटाया गया है.

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन ऐसे समय में हुआ जब पूरा देश आर्थिक संकट और ऑल टाइम हाई इन्फ्लेशन से जूझ रहा था. सत्ता में आने के बाद शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharief ) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने देश में आर्थिक स्थिरता बहाल करने का वादा किया था.

देश को गहरे आर्थिक संकट से उबारने के लिए आईएमएफ (IMF) के साथ बातचीत की गई, जिसका अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है. वहीं, लोगों को महंगाई से थोड़ी राहत देने के लिए उठाए गए कुछ कदमों का अभी तक कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखा है. दरअसल, देश को रूस से सस्ते दाम पर कच्चा तेल मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उसके बारे में अभी तक कुछ तय नहीं हो पाया है. इमरान खान पिछले 23 साल में मॉस्को की यात्रा करने वाले पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे. पर कम कीमत पर कच्चे तेल की खरीद को लेकर रूस के साथ समझौता अंतिम रूप नहीं ले सका.

इमरान खान भारत की तरह सस्ते दाम पर रूस से कच्चा तेल खरीदना चाहते थे. यही वजह है कि इमरान ने तटस्थ रास्ता चुनने और कम कीमत पर रूस से तेल खरीदना जारी रखने में प्रधानमंत्री मोदी की बुद्धिमत्ता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था. इससे पहले कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मॉस्को के साथ समझौता कर पाते, उन्हें पद से हटा दिया गया. नई सरकार तेल खरीद के लिए रूस के साथ प्रक्रिया को गति नहीं दे सकी, वह अभी भी समझौते के स्तर पर अटकी हुई है.

वहीं दूसरी ओर देश और अधिक आर्थिक संकट में डूब गया है. न केवल आर्थिक संकट सर्वकालिक उच्च पर चला गया है, बल्कि इमरान की पार्टी राज्यों में पूरी तरह से 'बेलगाम' हो गई है. खैबर पख्तूनख्वा और पंजाब में इमरान की पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ) सत्ता में थी. खैबर पख्तूनख्वा (KP) एक आदिवासी बेल्ट है, जो अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ है. यहां के लोगों ने इस इलाके में आतंकवादी समूहों का बढ़ना और तहरीक ए तालिबान के साथ उनका विलय देखा है. खासकर इमरान खान की सरकार के पाकिस्तान संसद में विश्वास मत हारने के बाद. पाकिस्तानी सेना के इमरान से मुंह मोड़ने के बाद कबायली क्षेत्र में आतंकी गतिविधियां बढ़ गई हैं.

छोटे आतंकी समूह फिर से उभर आए हैं और उन्होंने मुख्य आतंकी समूह तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ हाथ मिला लिया है, जो अफगान तालिबान से प्रभावित है. ऐसा माना जाता है कि आतंकवाद का फिर से उभरना अपरिहार्य था. तालिबान के अधिग्रहण के बाद से ये तय था कि ये पाकिस्तानी सेना के लिए परेशानी का सबब बनेंगे, लेकिन फिर भी इमरान की सरकार ने केपी बेल्ट में सैन्य अभियानों को रोक दिया. इस डर से कि पार्टी केपी के आदिवासी नेताओं के साथ अपनी निकटता के वर्षों के दौरान अर्जित किए गए वोट बैंक को खो सकती है.

केपी विधानसभा को पिछले साल जनवरी में भंग कर दिया गया था. कुल 145 सीटों वाली इस विधानसभा में पीटीआई के 96 सदस्य थे. पीटीआई को उम्मीद है कि चुनाव होने पर उसे फिर बहुमत मिलेगा. पीटीआई जल्द आम चुनाव के साथ-साथ केपी और पंजाब में भी चुनाव की मांग कर रही है, जिसका सरकार विरोध कर रही है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की है कि केपी और पंजाब में 14 मई को चुनाव हो सकते हैं. लेकिन सत्तारूढ़ सरकार ने नेशनल असेंबली के पटल पर कोर्ट के फैसले की अवहेलना की है, इसे अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया है. इसके विपरीत, सरकार केपी में आतंकवादी समूहों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की योजना बना रही है, जिसमें सेना और पुलिस दोनों शामिल होंगे.

चूंकि विपक्ष ने पिछले साल बड़े पैमाने पर इस्तीफा दे दिया था, इसलिए पाकिस्तान की संसद के निचले सदन में कोई विपक्षी सदस्य नहीं है, जिससे सत्तारूढ़ दल के लिए ये खुला मैदान बन गया है. पीटीआई केपी और पंजाब में जल्द चुनाव कराना चाहती है, लेकिन संसद के पटल से सरकार स्पष्ट रूप से कहती है कि समय से पहले चुनाव नहीं होने चाहिए. इस साल मार्च में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने ईसीपी (पाकिस्तान के चुनाव आयोग) को पंजाब और केपी में 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने और सभी आवश्यक व्यवस्था करने का निर्देश दिया था.

दूसरी ओर, ईसीपी ने नाराजगी व्यक्त करते हुए आशंका व्यक्त की कि आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को देखते हुए तैनाती अपर्याप्त होगी. सरकार का मानना ​​है कि क्षेत्र में आतंकवाद का खात्मा चुनाव कराने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. देश में एक बड़ा ध्रुवीकरण हो गया है, जिससे न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच और चुनावों को लेकर विपक्ष और सत्ताधारी दलों के बीच बड़ी खाई पैदा हो गई है.

इमरान का रुख केपी के आतंकी नेताओं के प्रति नरम रहा है. उनके कुछ नेताओं ने माफी की मांग की थी. इस पर उन्हें जेल से रिहा होने के बाद या जाहिर तौर पर हिंसा से दूर रहने पर समाज में फिर से शामिल होने की अनुमति दी गई. आदिवासियों के बीच इमरान की लोकप्रियता को देखते हुए, सरकार और सुरक्षा तंत्र का मानना ​​है कि आतंकवादी समूह चुनावों में पीटीआई का समर्थन करेंगे और इमरान की पार्टी फिर से सत्ता में आएगी. यही वजह है कि सरकार इस इलाके में पहले ऑपरेशन करने और बाद में चुनाव कराने की योजना बना रही है.

कुल मिलाकर महंगाई और बेरोज़गारी की कड़वी हकीकत के बीच पाकिस्तान की जनता सत्ता पक्ष और विपक्ष की राजनीति के बीच फंसी हुई है. साल बीत गया, लेकिन बिलावल भुट्टो ने जो कहा था कि 'पुराने पाकिस्तान में आपका स्वागत है' अभी आना बाकी है.

पढ़ें- Toshkhana Corruption Case: लाहौर उच्च न्यायालय 12 अप्रैल को इमरान खान की याचिका पर करेगा सुनवाई

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.