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संसदीय चुनाव से पहले बांग्लादेश में क्यों खो रही है अमेरिका की लोकप्रियता? जानिए - अमेरिका बांग्लादेश संबंध

एक्सपर्ट्स का कहना है कि बांग्लादेश में अगले साल होने वाले संसदीय चुनावों में हस्तक्षेप के कारण अमेरिका अपनी लोकप्रियता खो रहा है. ईटीवी भारत के अरुणिम भुइयां की रिपोर्ट. Bangladesh parliamentary elections, US is losing popularity in Bangladesh.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 17, 2023, 7:53 PM IST

नई दिल्ली: भले ही भारत ने कहा कि संसदीय चुनावों से पहले बांग्लादेश में उसकी बड़ी हिस्सेदारी है, भारत का एक मजबूत सहयोगी अमेरिका चुनावी प्रक्रिया में वाशिंगटन के हस्तक्षेप के कारण पूर्वी पड़ोसी में जनता के बीच अपनी लोकप्रियता खो रहा है.

लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि बांग्लादेश में चुनाव उस देश का आंतरिक मामला है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को नियमित मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि 'बांग्लादेश के लोगों को खुद फैसला करना होगा.'

पिछले महीने जब एक बांग्लादेशी मीडिया टीम ने नई दिल्ली का दौरा किया, तो बागची ने स्पष्ट कर दिया कि यह बांग्लादेश के लोगों को तय करना है कि उनके देश में अगला राष्ट्रीय चुनाव कैसे कराया जाए.

मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने टीम के सदस्यों से कहा, 'बांग्लादेशी लोग तय करेंगे कि चुनाव कैसे होगा. एक पड़ोसी के रूप में, भारत एक स्थिर और लोकतांत्रिक सरकार द्वारा संचालित बांग्लादेश चाहता है.'

लेकिन जिस बात ने बांग्लादेश में सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार को परेशान कर दिया है, वह अगले साल 7 जनवरी को होने वाले चुनावों से पहले पश्चिमी शक्तियों, विशेषकर अमेरिका द्वारा लगातार हस्तक्षेप है. इस साल की शुरुआत में अमेरिका ने लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया को कमजोर करने के लिए बांग्लादेशी अधिकारियों और राजनीतिक पदाधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध लगा दिया था.

बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात की थी और वह सत्तारूढ़ पार्टी (अवामी लीग), विपक्ष (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) और एक चरमपंथी समूह (जमात-ए-इस्लामी) के नेताओं से मिलना चाहते थे. अमेरिका ने दावा किया कि प्राथमिक लक्ष्य शांति कायम करना और विपक्ष को चुनाव में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना है.

हालांकि, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया है कि अमेरिका उनके देश में सत्ता परिवर्तन की मांग कर रहा है. उन्होंने अतीत में अन्य देशों की घरेलू राजनीति में अमेरिका के हस्तक्षेप का जिक्र किया है.

उनके आरोप में दम है क्योंकि अमेरिका की ऐतिहासिक रूप से उन देशों में कामकाज और 'शासन परिवर्तन' पर ध्यान केंद्रित करने में भागीदारी रही है, जहां या तो वाशिंगटन शासन को सत्तावादी मानता है और लोकतंत्र की आवश्यकता या अमेरिकी हितों का समर्थन नहीं करता है. लेकिन इस मामले की सच्चाई यह है कि बांग्लादेशी वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक होने के नाते बांग्लादेश पर अमेरिका का भारी आर्थिक प्रभाव है.

हाल के घटनाक्रम में राजदूत हास ने अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादिर से मुलाकात कर एक आधिकारिक पत्र सौंपा - जो दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के अमेरिकी सहायक सचिव डोनाल्ड लू द्वारा भेजा गया था. पत्र में तीन प्रमुख पार्टियों अवामी लीग, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जातीय पार्टी के बीच 'बिना किसी शर्त के बातचीत' का आह्वान किया गया था. उन्होंने आगामी चुनाव पर राजनीतिक संकट को हल करने के लिए कहा था.

जबकि बीएनपी ने डोनाल्ड लू को जवाब देते हुए कहा है कि चर्चा के लिए तैयार हैं, हालांकि सत्तारूढ़ अवामी लीग ने किसी भी बातचीत को खारिज कर दिया है. अवामी लीग चुनाव से पहले कार्यवाहक सरकार के गठन की बीएनपी की मांग को स्वीकार नहीं कर रही है.

बांग्लादेश की एक अकादमिक और सामाजिक कार्यकर्ता अहारिन शाजहान नाओमी के अनुसार चीन के साथ जुड़ने के कारण अमेरिका बांग्लादेश से खुश नहीं है. अहारिन शाजहान नाओमी भारत में केआरईए विश्वविद्यालय में पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप कर रही हैं.

चीन के साथ जुड़ाव भी वजह : नाओमी ने ईटीवी भारत से कहा कि 'पिछले नौ वर्षों में बांग्लादेश में आर्थिक बदलाव का एक कारण ढाका का चीन के साथ जुड़ाव रहा है. लेकिन अमेरिका नहीं चाहता कि बांग्लादेश चीन के साथ जुड़े. इसीलिए वह बांग्लादेश में विपक्षी दलों का समर्थन कर रहा है.'

उन्होंने कहा कि इसका एक कारण भारत-प्रशांत नीति के तहत बंगाल की खाड़ी में अमेरिका की रणनीतिक रुचि है. भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ अमेरिका उस क्वाड का हिस्सा है जो जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैले क्षेत्र में चीनी आधिपत्य के खिलाफ एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहा है.

नाओमी ने कहा कि 'क्या अमेरिका चाहता है कि बांग्लादेश इंडो-पैसिफिक राजनीति का हिस्सा बने? मुझें नहीं पता. लेकिन बांग्लादेश की राजनीति में अमेरिकी हस्तक्षेप बहुत अवांछित है.'

उन्होंने कहा कि पिछले चार-पांच वर्षों में विपक्षी दलों ने बहुत कम हिंसा की है. लेकिन अब, चुनाव नजदीक आने के साथ, उन्हें हिंसा में शामिल होने का साहस मिल गया है. नाओमी ने कहा कि 'आगामी चुनावों में शेख हसीना के लिए सबसे बड़ी चुनौती अमेरिकी भागीदारी है. अमेरिका की भागीदारी के बिना, विपक्षी दलों की विश्वसनीयता बहुत कम है.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को स्थिरता और आर्थिक प्रगति लाने के लिए स्वीकृति मिली है. हालांकि, यदि विपक्षी दल जिनमें चरमपंथी इस्लामी तत्व शामिल हैं सत्ता में आते हैं तो न केवल बांग्लादेश में बल्कि भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्र में भी समस्याएं होंगी.

नाओमी ने कहा, बांग्लादेश में अमेरिका की लोकप्रियता कम होने का एक और कारण गाजा में हमास के खिलाफ युद्ध में इजरायल के लिए वाशिंगटन का समर्थन है. 7 अक्टूबर को युद्ध शुरू होने के बाद से प्रधानमंत्री शेख हसीना फिलिस्तीनियों के समर्थन में मुखर रही हैं.

हसीना ने शुक्रवार को वर्चुअल मोड में भारत द्वारा आयोजित सेकेंड वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट को संबोधित करते हुए कहा, 'मैं निर्दयी नरसंहार के सामने असहाय फ़िलिस्तीनियों के दुखद, अमानवीय अस्तित्व पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करती हूं. अब समय आ गया है कि हम सभी एक विश्व के रूप में एकजुट हों और संघर्ष की समाप्ति की मांग करें.'

इस बीच अमेरिकी राजदूत हास (US Ambassador Haas) के ठिकाने को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं. जहां कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि वह श्रीलंका में छुट्टियां मनाने गए हैं, वहीं अन्य का कहना है कि पिछले बुधवार को चुनाव की तारीख की घोषणा के बाद उन्हें वापस बुला लिया गया है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि जब राजनयिक किसी देश में आते हैं या छोड़ते हैं, तो मेजबान सरकार को सूचित किया जाना चाहिए.

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नई दिल्ली: भले ही भारत ने कहा कि संसदीय चुनावों से पहले बांग्लादेश में उसकी बड़ी हिस्सेदारी है, भारत का एक मजबूत सहयोगी अमेरिका चुनावी प्रक्रिया में वाशिंगटन के हस्तक्षेप के कारण पूर्वी पड़ोसी में जनता के बीच अपनी लोकप्रियता खो रहा है.

लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि बांग्लादेश में चुनाव उस देश का आंतरिक मामला है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को नियमित मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि 'बांग्लादेश के लोगों को खुद फैसला करना होगा.'

पिछले महीने जब एक बांग्लादेशी मीडिया टीम ने नई दिल्ली का दौरा किया, तो बागची ने स्पष्ट कर दिया कि यह बांग्लादेश के लोगों को तय करना है कि उनके देश में अगला राष्ट्रीय चुनाव कैसे कराया जाए.

मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने टीम के सदस्यों से कहा, 'बांग्लादेशी लोग तय करेंगे कि चुनाव कैसे होगा. एक पड़ोसी के रूप में, भारत एक स्थिर और लोकतांत्रिक सरकार द्वारा संचालित बांग्लादेश चाहता है.'

लेकिन जिस बात ने बांग्लादेश में सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार को परेशान कर दिया है, वह अगले साल 7 जनवरी को होने वाले चुनावों से पहले पश्चिमी शक्तियों, विशेषकर अमेरिका द्वारा लगातार हस्तक्षेप है. इस साल की शुरुआत में अमेरिका ने लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया को कमजोर करने के लिए बांग्लादेशी अधिकारियों और राजनीतिक पदाधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध लगा दिया था.

बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात की थी और वह सत्तारूढ़ पार्टी (अवामी लीग), विपक्ष (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) और एक चरमपंथी समूह (जमात-ए-इस्लामी) के नेताओं से मिलना चाहते थे. अमेरिका ने दावा किया कि प्राथमिक लक्ष्य शांति कायम करना और विपक्ष को चुनाव में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना है.

हालांकि, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया है कि अमेरिका उनके देश में सत्ता परिवर्तन की मांग कर रहा है. उन्होंने अतीत में अन्य देशों की घरेलू राजनीति में अमेरिका के हस्तक्षेप का जिक्र किया है.

उनके आरोप में दम है क्योंकि अमेरिका की ऐतिहासिक रूप से उन देशों में कामकाज और 'शासन परिवर्तन' पर ध्यान केंद्रित करने में भागीदारी रही है, जहां या तो वाशिंगटन शासन को सत्तावादी मानता है और लोकतंत्र की आवश्यकता या अमेरिकी हितों का समर्थन नहीं करता है. लेकिन इस मामले की सच्चाई यह है कि बांग्लादेशी वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक होने के नाते बांग्लादेश पर अमेरिका का भारी आर्थिक प्रभाव है.

हाल के घटनाक्रम में राजदूत हास ने अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादिर से मुलाकात कर एक आधिकारिक पत्र सौंपा - जो दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के अमेरिकी सहायक सचिव डोनाल्ड लू द्वारा भेजा गया था. पत्र में तीन प्रमुख पार्टियों अवामी लीग, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जातीय पार्टी के बीच 'बिना किसी शर्त के बातचीत' का आह्वान किया गया था. उन्होंने आगामी चुनाव पर राजनीतिक संकट को हल करने के लिए कहा था.

जबकि बीएनपी ने डोनाल्ड लू को जवाब देते हुए कहा है कि चर्चा के लिए तैयार हैं, हालांकि सत्तारूढ़ अवामी लीग ने किसी भी बातचीत को खारिज कर दिया है. अवामी लीग चुनाव से पहले कार्यवाहक सरकार के गठन की बीएनपी की मांग को स्वीकार नहीं कर रही है.

बांग्लादेश की एक अकादमिक और सामाजिक कार्यकर्ता अहारिन शाजहान नाओमी के अनुसार चीन के साथ जुड़ने के कारण अमेरिका बांग्लादेश से खुश नहीं है. अहारिन शाजहान नाओमी भारत में केआरईए विश्वविद्यालय में पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप कर रही हैं.

चीन के साथ जुड़ाव भी वजह : नाओमी ने ईटीवी भारत से कहा कि 'पिछले नौ वर्षों में बांग्लादेश में आर्थिक बदलाव का एक कारण ढाका का चीन के साथ जुड़ाव रहा है. लेकिन अमेरिका नहीं चाहता कि बांग्लादेश चीन के साथ जुड़े. इसीलिए वह बांग्लादेश में विपक्षी दलों का समर्थन कर रहा है.'

उन्होंने कहा कि इसका एक कारण भारत-प्रशांत नीति के तहत बंगाल की खाड़ी में अमेरिका की रणनीतिक रुचि है. भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ अमेरिका उस क्वाड का हिस्सा है जो जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैले क्षेत्र में चीनी आधिपत्य के खिलाफ एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहा है.

नाओमी ने कहा कि 'क्या अमेरिका चाहता है कि बांग्लादेश इंडो-पैसिफिक राजनीति का हिस्सा बने? मुझें नहीं पता. लेकिन बांग्लादेश की राजनीति में अमेरिकी हस्तक्षेप बहुत अवांछित है.'

उन्होंने कहा कि पिछले चार-पांच वर्षों में विपक्षी दलों ने बहुत कम हिंसा की है. लेकिन अब, चुनाव नजदीक आने के साथ, उन्हें हिंसा में शामिल होने का साहस मिल गया है. नाओमी ने कहा कि 'आगामी चुनावों में शेख हसीना के लिए सबसे बड़ी चुनौती अमेरिकी भागीदारी है. अमेरिका की भागीदारी के बिना, विपक्षी दलों की विश्वसनीयता बहुत कम है.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को स्थिरता और आर्थिक प्रगति लाने के लिए स्वीकृति मिली है. हालांकि, यदि विपक्षी दल जिनमें चरमपंथी इस्लामी तत्व शामिल हैं सत्ता में आते हैं तो न केवल बांग्लादेश में बल्कि भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्र में भी समस्याएं होंगी.

नाओमी ने कहा, बांग्लादेश में अमेरिका की लोकप्रियता कम होने का एक और कारण गाजा में हमास के खिलाफ युद्ध में इजरायल के लिए वाशिंगटन का समर्थन है. 7 अक्टूबर को युद्ध शुरू होने के बाद से प्रधानमंत्री शेख हसीना फिलिस्तीनियों के समर्थन में मुखर रही हैं.

हसीना ने शुक्रवार को वर्चुअल मोड में भारत द्वारा आयोजित सेकेंड वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट को संबोधित करते हुए कहा, 'मैं निर्दयी नरसंहार के सामने असहाय फ़िलिस्तीनियों के दुखद, अमानवीय अस्तित्व पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करती हूं. अब समय आ गया है कि हम सभी एक विश्व के रूप में एकजुट हों और संघर्ष की समाप्ति की मांग करें.'

इस बीच अमेरिकी राजदूत हास (US Ambassador Haas) के ठिकाने को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं. जहां कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि वह श्रीलंका में छुट्टियां मनाने गए हैं, वहीं अन्य का कहना है कि पिछले बुधवार को चुनाव की तारीख की घोषणा के बाद उन्हें वापस बुला लिया गया है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि जब राजनयिक किसी देश में आते हैं या छोड़ते हैं, तो मेजबान सरकार को सूचित किया जाना चाहिए.

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