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नेपाली भूगोलवेत्ता ने कालापानी के नेपाल का हिस्सा होने का दावा किया - नेपाली भूगोलवेत्ता का कालापानी का दावा

प्रख्यात नेपाली भूगोलवेत्ता बुद्धि नारायण श्रेष्ठ (Eminent Nepali geographer Buddhi Narayan Shrestha ) ने अपनी नयी किताब में दावा किया है कि लिपुलेक, कालापानी और लिम्पियाधुरा (Lipulek, Kalapani and Limpiyadhura ) समेत कुछ क्षेत्र नेपाल का हिस्सा हैं.

Nepalese geographer claims Kalapani to be part of Nepal
नेपाली भूगोलवेत्ता ने कालापानी के नेपाल का हिस्सा होने का दावा किया
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Published : Mar 26, 2022, 7:20 AM IST

काठमांडू : प्रख्यात नेपाली भूगोलवेत्ता बुद्धि नारायण श्रेष्ठ (Eminent Nepali geographer Buddhi Narayan Shrestha ) ने अपनी नयी किताब में दावा किया है कि लिपुलेक, कालापानी और लिम्पियाधुरा (Lipulek, Kalapani and Limpiyadhura ) समेत कुछ क्षेत्र नेपाल का हिस्सा हैं. भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपने क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा बताते हैं. भारत इसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का और नेपाल धारचुला जिले का हिस्सा बताता है.

शुक्रवार को यहां ‘कलेक्शन ऑफ हिस्टॉरिकल बाउंड्री मैप्स रिलेटिड टू नेपाल’ नाम की किताब के विमोचन कार्यक्रम में श्रेष्ठ ने दावा किया कि लिपुलेक, कालापानी और लिम्पियाधुरा समेत काली नदी का पूर्व का हिस्सा नेपाल का हिस्सा है. श्रेष्ठ ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद को संवाद के जरिए हल किया जाना चाहिए और अगर बातचीत से मामला नहीं सुलझ सकता तो फिर मध्यस्थता के लिए तीसरे देश की मदद मांगी जा सकती है.

काठमांडू : प्रख्यात नेपाली भूगोलवेत्ता बुद्धि नारायण श्रेष्ठ (Eminent Nepali geographer Buddhi Narayan Shrestha ) ने अपनी नयी किताब में दावा किया है कि लिपुलेक, कालापानी और लिम्पियाधुरा (Lipulek, Kalapani and Limpiyadhura ) समेत कुछ क्षेत्र नेपाल का हिस्सा हैं. भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपने क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा बताते हैं. भारत इसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का और नेपाल धारचुला जिले का हिस्सा बताता है.

शुक्रवार को यहां ‘कलेक्शन ऑफ हिस्टॉरिकल बाउंड्री मैप्स रिलेटिड टू नेपाल’ नाम की किताब के विमोचन कार्यक्रम में श्रेष्ठ ने दावा किया कि लिपुलेक, कालापानी और लिम्पियाधुरा समेत काली नदी का पूर्व का हिस्सा नेपाल का हिस्सा है. श्रेष्ठ ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद को संवाद के जरिए हल किया जाना चाहिए और अगर बातचीत से मामला नहीं सुलझ सकता तो फिर मध्यस्थता के लिए तीसरे देश की मदद मांगी जा सकती है.

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(पीटीआई-भाषा)

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