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इजराइल के समर्थन में अमेरिका-यूरोप में रहने वाले अनिवासी भारतीय, पर खाड़ी देशों में रहने वालों ने चुप्पी साधी

Indian diaspora in west countries vocal for israel : अमेरिका, यूरोप और पश्चिमी देशों में रहने वाले अनिवासी भारतीय खुलकर इजराइल के समर्थन में खड़े हैं, जबकि खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों ने इस पर चुप्पी साधी है. दरअसल, खाड़ी देशों में मुस्लिम आबादी है और वे नहीं चाहते हैं कि उन्हें किसी के गुस्से का कोप-भाजन बनना पड़े.

israel attack on hamas
इजराइल का हमला
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By IANS

Published : Nov 5, 2023, 5:18 PM IST

नई दिल्ली : सन् 1948 में इजरायल के गठन के बाद से देश पर इस साल अक्टूबर में हमास आतंकवादी समूह द्वारा किया गया सबसे बड़ा सीमा पार हमला हुआ. इसके बाद वैश्विक प्रवासी भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा इजरायल के साथ मजबूती से खड़ा हो गया है.

शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन से लेकर एकजुटता मार्च तक, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कुछ हिस्सों में भारतीय समुदाय उन हमलों की निंदा करने के लिए बड़ी संख्या में सामने आया, जिनमें इज़राइल में 1,400 लोग मारे गए और 200 से अधिक लोगों को बंधक बनाकर गाजा ले जाया गया.

इसके अलावा, भारतीय मूल के समूहों और गैर-लाभकारी संगठनों ने अपनी-अपनी सरकारों और अधिकारियों से देश में सड़कों, राजनीति, शिक्षा और मीडिया में देखी जाने वाली यहूदी-विरोधी भावना के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आह्वान किया.

israel hamas war
इजराइल और हमास का युद्ध

इनमें से कुछ संगठनों में फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज, कोएलिशन ऑफ हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका, इनसाइट यूके, हिंदू काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया, कैनेडियन हिंदू फोरम आदि शामिल हैं.

हाल ही में कांग्रेस की एक ब्रीफिंग में, अमेरिकी यहूदी समिति में भारतीय-यहूदी संबंधों के कार्यक्रम निदेशक निसिम रूबेन ने कहा कि भारतीय-अमेरिकी यह कभी नहीं भूलेंगे कि इज़राइल ने 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान और 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी भारत को बहुत जरूरी रक्षा आपूर्ति मुहैया कराई थी. पहली बात तो यह कि इस समर्थन के पीछे जनसांख्यिकी का भी हाथ है क्‍योंकि इजरायल में 85 हजार से ज्‍यादा यहूदी भारतीय मूल के हैं.

इसके अलावा, इज़राइल में लगभग 18 हजार भारतीय नागरिक थे जो कई क्षेत्रों में कार्यरत थे. ज्यादातर केयरटेकर, आईटी पेशेवर और छात्र हैं जिन्हें अब 'ऑपरेशन अजय' के तहत निकाला गया है. इसके विपरीत, शत्रुता शुरू होने से पहले फिलिस्तीन में केवल 17 भारतीय नागरिक थे.

रूबेन ने कांग्रेस की ब्रीफिंग में कहा, "भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां यहूदी विरोधी भावना का कोई इतिहास नहीं है... आज भी इज़रायल में भारतीय यहूदी कहते हैं कि इज़रायल हमारी पितृभूमि है और भारत हमारी मातृभूमि है. इज़रायल हमारे दिलों में है. भारत हमारे खून में है."

इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के संबंध में वैश्विक भारतीय समुदाय के विचार उनकी मातृभूमि और उन देशों द्वारा अपनाए गए रुख से काफी मेल खाते हैं जिन्हें उन्होंने अपना घर कहने के लिए चुना है. अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के इज़रायल को समर्थन देने से वहां बसे भारतीय प्रवासी भी यहूदी समुदाय के पक्ष में नजर आ रहे हैं, जबकि मुस्लिम-बहुल खाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग काफी हद तक मौन बने हुए हैं.

विदेश मंत्रालय के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, अनुमानित 1.34 करोड़ अनिवासी भारतीयों में से 66 प्रतिशत से अधिक संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान और बहरीन के खाड़ी देशों में हैं. बहरीन में एक भारतीय मूल के डॉक्टर को सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्स पर इज़रायल का समर्थन करने और आतंकवाद की आलोचना करने वाले पोस्ट लिखने के बाद माफी मांगनी पड़ी, जिसके कारण रॉयल बहरीन अस्पताल ने उन्हें "तत्काल प्रभाव" से बर्खास्त कर दिया.

दुबई में एक भारतीय प्रवासी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "अरब और खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय प्रवासी अगर इज़रायल के प्रति समर्थन दिखाते हैं तो वे असुरक्षित हो सकते हैं." अधिकांश फिलिस्तीनी सुन्नी मुसलमान हैं. सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिमी तट में 80-85 फीसदी आबादी और गाजा पट्टी में 99 फीसदी आबादी मुस्लिम है.

वाशिंगटन डी.सी. स्थित भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम परिषद जैसे भारतीय मूल के अधिकांश मुस्लिम संगठनों ने इजरायल के जवाबी हमलों और गोलाबारी की निंदा की है, जिसमें पहले ही नौ हजार से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें से लगभग आधे बच्चे हैं। हजारों लोग घायल हो गए हैं.

विदेश नीति विशेषज्ञों के अनुसार, विदेश में इजरायली मुद्दे का समर्थन करने वाले भारतीयों में बड़ी संख्या में हिंदू हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कड़े शब्दों वाली प्रतिक्रिया का समर्थन किया, जिसमें कहा गया था कि भारत "इस कठिन समय में इजरायल के साथ एकजुटता से खड़ा है". फ़ॉरेन पॉलिसी पत्रिका में लिखते हुए, माइकल कुगेलमैन ने चेतावनी दी कि "भारत यह आभास नहीं दे सकता कि वह पूरी तरह से इज़रायल का पक्ष ले रहा है".

विशेषज्ञों के अनुसार, सबसे पहले, यह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) की संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिसे जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के नेतृत्व वाले बहुपक्षीय व्यापार बुनियादी ढांचे के रूप में पेश किया गया था. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी के पांच दिन बाद, भारत ने अपना आधिकारिक रुख जारी करते हुए कहा कि उसने "हमेशा सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर, इजरायल के साथ शांति के साथ रहते हुए, फिलिस्तीन के एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य राष्‍ट्र की स्थापना के लिए सीधी बातचीत फिर से शुरू करने की वकालत की है." इसके अलावा, इसने पिछले महीने फ़िलिस्तीन को लगभग 6.5 टन चिकित्सा सहायता और 32 टन आपदा राहत सामग्री भेजी.

ये भी पढ़ें : 'हमास के हमले के बाद मनमोहन सिंह की रणनीति पर चल सकता था इजराइल'

नई दिल्ली : सन् 1948 में इजरायल के गठन के बाद से देश पर इस साल अक्टूबर में हमास आतंकवादी समूह द्वारा किया गया सबसे बड़ा सीमा पार हमला हुआ. इसके बाद वैश्विक प्रवासी भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा इजरायल के साथ मजबूती से खड़ा हो गया है.

शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन से लेकर एकजुटता मार्च तक, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कुछ हिस्सों में भारतीय समुदाय उन हमलों की निंदा करने के लिए बड़ी संख्या में सामने आया, जिनमें इज़राइल में 1,400 लोग मारे गए और 200 से अधिक लोगों को बंधक बनाकर गाजा ले जाया गया.

इसके अलावा, भारतीय मूल के समूहों और गैर-लाभकारी संगठनों ने अपनी-अपनी सरकारों और अधिकारियों से देश में सड़कों, राजनीति, शिक्षा और मीडिया में देखी जाने वाली यहूदी-विरोधी भावना के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आह्वान किया.

israel hamas war
इजराइल और हमास का युद्ध

इनमें से कुछ संगठनों में फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज, कोएलिशन ऑफ हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका, इनसाइट यूके, हिंदू काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया, कैनेडियन हिंदू फोरम आदि शामिल हैं.

हाल ही में कांग्रेस की एक ब्रीफिंग में, अमेरिकी यहूदी समिति में भारतीय-यहूदी संबंधों के कार्यक्रम निदेशक निसिम रूबेन ने कहा कि भारतीय-अमेरिकी यह कभी नहीं भूलेंगे कि इज़राइल ने 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान और 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी भारत को बहुत जरूरी रक्षा आपूर्ति मुहैया कराई थी. पहली बात तो यह कि इस समर्थन के पीछे जनसांख्यिकी का भी हाथ है क्‍योंकि इजरायल में 85 हजार से ज्‍यादा यहूदी भारतीय मूल के हैं.

इसके अलावा, इज़राइल में लगभग 18 हजार भारतीय नागरिक थे जो कई क्षेत्रों में कार्यरत थे. ज्यादातर केयरटेकर, आईटी पेशेवर और छात्र हैं जिन्हें अब 'ऑपरेशन अजय' के तहत निकाला गया है. इसके विपरीत, शत्रुता शुरू होने से पहले फिलिस्तीन में केवल 17 भारतीय नागरिक थे.

रूबेन ने कांग्रेस की ब्रीफिंग में कहा, "भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां यहूदी विरोधी भावना का कोई इतिहास नहीं है... आज भी इज़रायल में भारतीय यहूदी कहते हैं कि इज़रायल हमारी पितृभूमि है और भारत हमारी मातृभूमि है. इज़रायल हमारे दिलों में है. भारत हमारे खून में है."

इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के संबंध में वैश्विक भारतीय समुदाय के विचार उनकी मातृभूमि और उन देशों द्वारा अपनाए गए रुख से काफी मेल खाते हैं जिन्हें उन्होंने अपना घर कहने के लिए चुना है. अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के इज़रायल को समर्थन देने से वहां बसे भारतीय प्रवासी भी यहूदी समुदाय के पक्ष में नजर आ रहे हैं, जबकि मुस्लिम-बहुल खाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग काफी हद तक मौन बने हुए हैं.

विदेश मंत्रालय के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, अनुमानित 1.34 करोड़ अनिवासी भारतीयों में से 66 प्रतिशत से अधिक संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान और बहरीन के खाड़ी देशों में हैं. बहरीन में एक भारतीय मूल के डॉक्टर को सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्स पर इज़रायल का समर्थन करने और आतंकवाद की आलोचना करने वाले पोस्ट लिखने के बाद माफी मांगनी पड़ी, जिसके कारण रॉयल बहरीन अस्पताल ने उन्हें "तत्काल प्रभाव" से बर्खास्त कर दिया.

दुबई में एक भारतीय प्रवासी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "अरब और खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय प्रवासी अगर इज़रायल के प्रति समर्थन दिखाते हैं तो वे असुरक्षित हो सकते हैं." अधिकांश फिलिस्तीनी सुन्नी मुसलमान हैं. सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिमी तट में 80-85 फीसदी आबादी और गाजा पट्टी में 99 फीसदी आबादी मुस्लिम है.

वाशिंगटन डी.सी. स्थित भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम परिषद जैसे भारतीय मूल के अधिकांश मुस्लिम संगठनों ने इजरायल के जवाबी हमलों और गोलाबारी की निंदा की है, जिसमें पहले ही नौ हजार से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें से लगभग आधे बच्चे हैं। हजारों लोग घायल हो गए हैं.

विदेश नीति विशेषज्ञों के अनुसार, विदेश में इजरायली मुद्दे का समर्थन करने वाले भारतीयों में बड़ी संख्या में हिंदू हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कड़े शब्दों वाली प्रतिक्रिया का समर्थन किया, जिसमें कहा गया था कि भारत "इस कठिन समय में इजरायल के साथ एकजुटता से खड़ा है". फ़ॉरेन पॉलिसी पत्रिका में लिखते हुए, माइकल कुगेलमैन ने चेतावनी दी कि "भारत यह आभास नहीं दे सकता कि वह पूरी तरह से इज़रायल का पक्ष ले रहा है".

विशेषज्ञों के अनुसार, सबसे पहले, यह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) की संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिसे जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के नेतृत्व वाले बहुपक्षीय व्यापार बुनियादी ढांचे के रूप में पेश किया गया था. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी के पांच दिन बाद, भारत ने अपना आधिकारिक रुख जारी करते हुए कहा कि उसने "हमेशा सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर, इजरायल के साथ शांति के साथ रहते हुए, फिलिस्तीन के एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य राष्‍ट्र की स्थापना के लिए सीधी बातचीत फिर से शुरू करने की वकालत की है." इसके अलावा, इसने पिछले महीने फ़िलिस्तीन को लगभग 6.5 टन चिकित्सा सहायता और 32 टन आपदा राहत सामग्री भेजी.

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