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जापान में भगवान गणेश के स्वरूप कांगितेन की पूजा - टोक्यो गणेश पूजा

भगवान गणेश की पूजा भारत के अलावा विदेशों में भी होती है. अलग अलग देशों में गणेश जी की पूजा अलग अलग नामों से की जाती है. इन्हें जापान में कांगितेन कहा जाता है. क्योटो में एक बड़ा कांगितेन मंदिर है जिसे सम्राट गिकोगन ने 1372 ईस्वी में स्थापित किया था. ये देवता गणेश के काफी समान हैं. इसलिए, भारत में गणेश उत्सव के दौरान यह जानकर प्रसन्नता होती है कि भगवान का प्रभुत्व दूर जापान तक फैला हुआ है.

Ganesha in Japan: Is he worshipped in the land of the rising sun tooEtv Bharat
जापान में गणेश पूजाEtv Bharat
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Published : Sep 2, 2022, 10:45 AM IST

Updated : Sep 2, 2022, 2:25 PM IST

टोक्यो: जापान में भगवान गणेश को 'कांगितेन' के नाम से जाना जाता है, जो जापानी बौद्ध धर्म से संबंध रखते हैं. कांगितेन कई रूपों में पूजे जाते हैं, लेकिन इनका दो शरीर वाला स्वरूप सबसे अधिक प्रचलित है. चार भुजाओं वाले गणपति का भी वर्णन यहां मिलता है. जापान के मंदिरों में भगवान गणेश की तरह दिखने वाले देवताओं की मूर्ति उस समय की ओर इशारा करती है जब बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म आपस में जुड़े हुए थे.

टोक्यो के असाकुसा में एक बहुत ही लोकप्रिय बौद्ध मंदिर है. इसे 7वीं शताब्दी में बनाया गया था. मात्सुचियामा शोडेन जिसे होनरियोइन मंदिर भी कहा जाता है एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. पर्यटक सूचना बोर्ड के अनुसार बौद्ध धर्म के तेंदई संप्रदाय का यह मंदिर संभवतः 601 ईस्वी में स्थापित किया गया था. अन्य अभिलेखों के अनुसार इसे शायद 595 ईस्वी में स्थापित किया गया. यह असाकुसा के मुख्य सेंसो-जी मंदिर से भी पुराना है जो संभवतः 645 ईस्वी में स्थापित किया गया था. मात्सुचियामा शोडेन एक मंदिर है जो कांगितेन को समर्पित है.

देवता
देवता

जापानी देवता कांगितेन को हिंदू भगवान गणेश से कई नाम और विशेषताएं विरासत में मिली हैं. वह हिंदू विनायक के समान बिनायक के रूप में जाने जाते हैं. भगवान के लिए जापानी नाम गणबाची और गणवा बहुत ही गणेश के समान हैं. गणेश की तरह, बिनायक भी बाधाओं को दूर करने वाले हैं, और जब उनसे प्रार्थना की जाती है, तो वे भक्तों को अच्छे भाग्य, समृद्धि , सभी को सफलता और अच्छे स्वास्थ्य प्रदान करने वाले माने जाते हैं.

ये भी पढ़ें- MP में भगवान गणेश की दुर्लभ प्रतिमा, 10 भुजाओं में समाई सृष्टि, देश में सिर्फ दो स्थानों पर ही हैं ऐसी मूर्ति

इसके अलावा, जापान में बिनायक को बुराई का नाश करने वाला, नैतिकता की किरण कहा जाता है. कहा जाता है कि गणेश के लिए एक और उपनाम है ... शो-तेन या आर्यदेव, सौभाग्य और भाग्य के अग्रदूत. प्रारंभिक बौद्ध धर्म हिंदू धर्म के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था. दिलचस्प बात यह है कि भगवान गणेश के जापानी अवतार को मोदक पसंदीदा नहीं है. उनका पसंदीदा प्रसाद मूली है! मत्सुचियामा के मंदिर को चारों ओर जापानी मूली से सजायी जाती है. कहा जाता है कि जापान में कंगितेन बाधाओं का सृजन करते है, जो प्रार्थना के माध्यम से आसानी से शांत हो जाते हैं और बाधाओं को दूर करने में बदल जाते हैं. और वह मूली से प्रसन्न होते हैं.

टोक्यो: जापान में भगवान गणेश को 'कांगितेन' के नाम से जाना जाता है, जो जापानी बौद्ध धर्म से संबंध रखते हैं. कांगितेन कई रूपों में पूजे जाते हैं, लेकिन इनका दो शरीर वाला स्वरूप सबसे अधिक प्रचलित है. चार भुजाओं वाले गणपति का भी वर्णन यहां मिलता है. जापान के मंदिरों में भगवान गणेश की तरह दिखने वाले देवताओं की मूर्ति उस समय की ओर इशारा करती है जब बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म आपस में जुड़े हुए थे.

टोक्यो के असाकुसा में एक बहुत ही लोकप्रिय बौद्ध मंदिर है. इसे 7वीं शताब्दी में बनाया गया था. मात्सुचियामा शोडेन जिसे होनरियोइन मंदिर भी कहा जाता है एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. पर्यटक सूचना बोर्ड के अनुसार बौद्ध धर्म के तेंदई संप्रदाय का यह मंदिर संभवतः 601 ईस्वी में स्थापित किया गया था. अन्य अभिलेखों के अनुसार इसे शायद 595 ईस्वी में स्थापित किया गया. यह असाकुसा के मुख्य सेंसो-जी मंदिर से भी पुराना है जो संभवतः 645 ईस्वी में स्थापित किया गया था. मात्सुचियामा शोडेन एक मंदिर है जो कांगितेन को समर्पित है.

देवता
देवता

जापानी देवता कांगितेन को हिंदू भगवान गणेश से कई नाम और विशेषताएं विरासत में मिली हैं. वह हिंदू विनायक के समान बिनायक के रूप में जाने जाते हैं. भगवान के लिए जापानी नाम गणबाची और गणवा बहुत ही गणेश के समान हैं. गणेश की तरह, बिनायक भी बाधाओं को दूर करने वाले हैं, और जब उनसे प्रार्थना की जाती है, तो वे भक्तों को अच्छे भाग्य, समृद्धि , सभी को सफलता और अच्छे स्वास्थ्य प्रदान करने वाले माने जाते हैं.

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इसके अलावा, जापान में बिनायक को बुराई का नाश करने वाला, नैतिकता की किरण कहा जाता है. कहा जाता है कि गणेश के लिए एक और उपनाम है ... शो-तेन या आर्यदेव, सौभाग्य और भाग्य के अग्रदूत. प्रारंभिक बौद्ध धर्म हिंदू धर्म के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था. दिलचस्प बात यह है कि भगवान गणेश के जापानी अवतार को मोदक पसंदीदा नहीं है. उनका पसंदीदा प्रसाद मूली है! मत्सुचियामा के मंदिर को चारों ओर जापानी मूली से सजायी जाती है. कहा जाता है कि जापान में कंगितेन बाधाओं का सृजन करते है, जो प्रार्थना के माध्यम से आसानी से शांत हो जाते हैं और बाधाओं को दूर करने में बदल जाते हैं. और वह मूली से प्रसन्न होते हैं.

Last Updated : Sep 2, 2022, 2:25 PM IST
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