जिनेवा : संयुक्त राष्ट्र (UNO) की शरणार्थी एजेंसी ने कहा कि कोविड-19 संकट (Covid-19 Crisis) के कारण दुनियाभर में लोगों की आवाजाही बाधित होने के बावजूद युद्ध, हिंसा, उत्पीड़न और मानवाधिकार उल्लंघनों (Human Rights Violation) और अन्य कारणों से पिछले साल करीब 30 लाख लोगों को अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा.
यूएनएचआरसी (UNHRC) ने शुक्रवार को जारी अपनी ताजा 'ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट' (Global Trends Report) में कहा कि दुनियाभर में विस्थापितों की कुल संख्या बढ़कर 8.24 करोड़ हो गई है जो करीब-करीब जर्मनी (Germany) की आबादी जितनी है और यह द्वितीय विश्वयुद्ध (World War II) के बाद नया रिकार्ड है.
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संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थियों के लिए उच्चायुक्त फिलिप्पो ग्रांदी ने कहा कि मोजाम्बिक, इथियोपिया के टिग्रे क्षेत्र और अफ्रीका के साहेल इलाके जैसे स्थानों में संघर्ष और जलवायु परिवर्तन का असर 2020 में शरणार्थियों के विस्थापन की मुख्य वजहों में से एक है. लगातार नौवें साल मजबूरन विस्थापितों की संख्या में वार्षिक वृद्धि हुई है.
30 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा
ग्रांदी ने रिपोर्ट के जारी होने से पहले एक साक्षात्कार में कहा, 'ऐसे साल में जब हम सभी अपने शहरों, समुदायों में अपने घरों तक सिमटकर रह गए तो लगभग 30 लाख लोगों को असल में विस्थापित होना पड़ा क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था.'
उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि कोविड-19 का उन कुछ प्रमुख मूल कारणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, जो लोगों को भागने के लिए मजबूर करते हैं. युद्ध, हिंसा, भेदभाव, महामारी के दौरान जारी रहे.'
यूएनएचसीआर ने कहा कि पूरी मानवता में से अब एक प्रतिशत विस्थापित हो गए हैं और एक दशक पहले की तुलना में दोगुने जबरन विस्थापित लोग हैं. उनमें से कुछ 42 प्रतिशत की आयु 18 वर्ष से कम है और लगभग 10 लाख बच्चे 2018 और 2020 के बीच शरणार्थी के रूप में पैदा हुए.
99 देशों ने बंद की अपनी सीमा
एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है, 'उनमें से कई आने वाले वर्षों तक शरणार्थी बने रह सकते हैं.' यूएनएचसीआर ने कहा कि 160 से अधिक देशों में से 99 देशों ने कोविड-19 के कारण अपनी सीमाओं को बंद कर दिया. ग्रांदी ने कहा कि अपने देश में ही विस्थापित हुए लोग एक बार सीमाएं खुलने के बाद विदेश भागेंगे.
उन्होंने कहा, 'इसका अच्छा उदाहरण अमेरिका है जहां हाल के महीनों में हमने बड़ी संख्या में लोगों को आते देखा है.'
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अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की हाल की मध्य अमेरिका की यात्रा के दौरान शरणार्थियों को लेकर की गई टिप्पणी पर ग्रांदी ने उम्मीद जताई कि यह टिप्पणी संभवत: अमेरिका की संपूर्ण नीति को नहीं दर्शाती. हैरिस ने अमेरिका में प्रवास करने की उम्मीद कर रहे लोगों से कहा था 'मत आओ'.
(पीटीआई-भाषा)