हेलसिंकी : सना मरिन के फिनलैंड की प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के साथ ही उत्तरी यूरोप का यह छोटा सा खूबसूरत देश पिछले दिनों इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. दरअसल सना 34 बरस की हैं और इतनी कम उम्र में उनसे पहले दुनिया में कभी कोई प्रधानमंत्री के शीर्ष पद तक नहीं पहुंचा है.
16 नवंबर 1985 को हेलसिंकी में जन्मी मरिन की तकदीर जैसे विधाता ने सोने की कलम से लिखी है. तभी तो जिस उम्र में लोग अपनी जिंदगी में कुछ बेहतर करने के लिए प्रयासरत रहते हैं, वह लगभग 53 लाख की आबादी वाले देश की प्रधानमंत्री बन गई हैं.
यह जान लेना अपने आप में दिलचस्प होगा कि सिर्फ सात बरस पहले सक्रिय राजनीति में अपना भाग्य आजमाने उतरीं मरिन फिनलैंड की राजनीति की डांवाडोल कश्ती को भंवर से निकालने का वादा कर रही हैं.
समलैंगिक जोड़े की संतान मरिन फिनलैंड की एक ऐसी गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने जा रही हैं, जिसमें चार अन्य दल शामिल होंगे और इन चारों दलों का नेतृत्व भी महिलाओं के ही हाथ में है और उनमें से तीन प्रधानमंत्री मरिन से भी छोटी हैं. इसका सीधा अर्थ है कि मरिन की सरकार में युवा महिला सदस्यों की भरमार होगी.
16 नवंबर 1985 को हेलसिंकी में जन्मी सना मरिन ने 2004 में हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद तमपेरे विश्वविद्यालय से प्रशासनिक विज्ञान में मास्टर्स किया और इस दौरान सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की युवा शाखा में शामिल हो गईं. 2008 में उन्होंने देश के स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाईं. वह 2012 से राजनीति में सक्रिय हुईं और 27 बरस की आयु में तामपेरे की सिटी काउंसिल में चुनी गईं.
मार्कस रेइकोनेन की पत्नी और एक बच्ची की मां सना का सियासत का सफर खूब सुनहरा रहा. 2013 से 2017 के बीच वह सिटी काउंसिल की अध्यक्ष बनीं. 2015 में वह संसद का चुनाव जीतकर पहली बार संसद की दहलीज पर पहुंची और चार साल बाद जून 2019 में संसद का चुनाव दोबारा जीतने के बाद उन्हें परिवहन और संचार मंत्री बनाया गया.
छह महीने बाद उनके सितारे फिर चमके जब सोशल डोमोक्रेटिक पार्टी ने अंती रिनी के स्थान पर फिनलैंड के प्रधानमंत्री के तौर पर सना मरिन का नाम प्रस्तावित किया. दरअसल, रिनी देश में चल रही डाक कर्मियों की हड़ताल को संभाल पाने में नाकाम रही थीं, जिसकी वजह से सना को दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री बनने का रिकार्ड अपने नाम करने का मौका मिला.
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बेहद सुहाने मौसम वाले खूबसूरत देश फिनलैंड की प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद आत्मविश्वास से लबरेज सना मरिन का कहना है कि उनकी उम्र या उनका महिला होना उनके लिए कोई मायने नहीं रखता और वह इस बारे में कभी नहीं सोचतीं. वह सिर्फ उन चीजों के बारे में सोचती हैं, जिनसे उन्हें राजनीति में आने और आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिली. वह उन लोगों के भरोसे के बारे में सोचती हैं, जिन्होंने चुनावी राजनीति में उनकी क्षमता पर भरोसा करके उनके हौसलों को उड़ान दी.
गर्मियों के मौसम में फिनलैंड में बहुत कम देर के लिए अंधेरा होता है और सना मरिन की किस्मत भी उनके देश की भौगालिक स्थिति जैसी ही है, जहां अंधेरे के लिए कोई जगह नहीं है. वैसे तो राजनीति में धूप छांव का कोई वक्त तय नहीं, लेकिन फिलहाल की हकीकत यही है कि सना को सुबह की उजली धूप सा यश मिला है.