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कोविड-19: हमें स्कूलों में परीक्षण क्यों बंद करना चाहिए

हमें स्कूल ‘बबल्स’ को जारी रखना चाहिए या अधिक लक्षित परीक्षण अपनाना चाहिए, यह इस नैतिक निर्णय पर निर्भर करता है कि हमारे लिए क्या अधिक मायने रखता है, शिक्षा पर प्रभाव को कम करना या वायरस के प्रसार को कम करना.

स्कूलों में परीक्षण
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Published : Jul 8, 2021, 1:55 PM IST

ऑक्सफोर्ड (यूके) : इंग्लैंड में स्कूल ‘बबल्स’ की 19 जुलाई से शिक्षा सचिव गेविन विलियमसन (Education Secretary Gavin Williamson) ने समाप्ति की घोषणा की है. यह फैसला इस खबर के बाद किया गया है कि जून में कोविड से संबंधित कारणों से 375,000 बच्चे स्कूल नहीं गए. मौजूदा व्यवस्था के तहत अगर कोई स्कूली बच्चा कोरोना वायरस (Corona Virus) से संक्रमित हो जाता है, तो उसके निकट संपर्क में रहने वाले विद्यार्थियों को दस दिन के लिए स्व-पृथकवास (self-isolation for 10 days) में रहना पड़ता है. कुछ मामलों में, पूरे वर्ष समूहों को स्व-पृथकवास में रहना पड़ सकता है.

इस तरह के सामूहिक स्व-पृथकवास के बहुत से प्रतिकूल परिणाम होते हैं. इसलिए इस बात की पुरजोर मांग के बावजूद कि एक संक्रमित छात्र के संपर्क में आने वाले सभी अन्य छात्रों के स्व-पृथकवास की बजाय अन्य सुरक्षात्मक उपायों जैसे उनका तेजी से परीक्षण कराया जाए, सार्वजनिक सेवा संघ यूनिसन ने स्व-पृथकवास को कोविड मामलों को नियंत्रण में रखने के कारगर तरीकों में से एक बताकर इसका समर्थन किया है.

स्व-पृथकवास दरअसल, संचरण को रोकने में प्रभावी हो सकता है, लेकिन यह एक त्रुटिपूर्ण तरीका है. यह भी तो संभव है कि एक बच्चा, जो किसी ऐसे व्यक्ति के निकट संपर्क में रहा है, जो वायरस से संक्रमित पाया गया है, स्वयं संक्रमित न हो. ऐसे हालात में छात्रों का अकारण घर बैठना उचित नहीं है. महामारी के कारण शिक्षा प्रक्रिया पहले ही काफी बाधित हो चुकी है और ऐसे में बच्चे अनावश्यक रूप से स्कूल से दूर रहना बर्दाश्त नहीं कर सकते.

प्रस्ताव यह है कि, बच्चों को स्कूल से दूर रखने की बजाय, एनएचएस परीक्षण और ट्रेस प्रणाली का स्कूल परीक्षण के साथ समन्वय अधिक बेहतर विकल्प हो सकता है. जो बच्चे किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में रहे हैं, उन्हें केवल स्वयं को तभी अलग करना होगा, यदि वे स्वयं भी वायरस से संक्रमित पाए जाते हैं. इस दृष्टिकोण से अनावश्यक रूप से घर भेजे जाने वाले बच्चों की संख्या कम होगी.

हमें स्कूल ‘‘बबल्स’’को जारी रखना चाहिए या अधिक लक्षित परीक्षण अपनाना चाहिए, यह इस नैतिक निर्णय पर निर्भर करता है कि हमारे लिए क्या अधिक मायने रखता है, शिक्षा पर प्रभाव को कम करना या वायरस के प्रसार को कम करना.

एक अधिक कट्टरपंथी दृष्टिकोण

लेकिन स्कूल में व्यवधान की समस्या का एक अधिक क्रांतिकारी समाधान है. हम बच्चों की कोविड जांच पूरी तरह बंद कर सकते हैं. अस्वस्थ होने पर ही बच्चों को स्कूल आने से रोका जाएगा. यदि वे बहुत अस्वस्थ हैं और उन्हें अस्पताल में इलाज की आवश्यकता है, तो उनका वायरस संक्रमण परीक्षण किया जाएगा. हमें यह दृष्टिकोण क्यों अपनाना चाहिए? इसका एक कारण यह है कि हम बच्चों में कोई भी वायरल संक्रमण होने पर सामान्य रूप से यही सोचते हैं. इन्फ्लूएंजा, आरएसवी और एंटरोवायरस जैसे वायरस हैं जो हर सर्दियों में (और वर्ष के अन्य समय में) स्कूलों में फैलते हैं. वे कुछ मामलों में गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने का कारण बन सकते हैं. हम बच्चों की जांच और उन्हें अलग-थलग करके संक्रमण के कुछ मामलों और कुछ मौतों को रोक सकते हैं, लेकिन हम आमतौर पर ऐसा नहीं करते.

पढ़ें : फाइजर, मॉडर्ना के टीकों ने कोरोना जोखिम को 91% तक कम किया: अध्ययन

महामारी के दौरान स्कूलों में टेस्टिंग को समुदाय में बीमारी के प्रकोप को धीमा करने और बीमारी के वक्र को समतल करने के तरीके के रूप में उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि बीमारी के खिलाफ सबसे कमजोर कड़ी माने जाने वाले लोगों के एक बड़े हिस्से को अब कोविड-19 (50 वर्ष से अधिक आयु वालों में से 93%) के खिलाफ टीका लगाया गया है. मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन टीकाकरण की दो खुराक अस्पताल में भर्ती होने से रोकने में अत्यधिक प्रभावी प्रतीत होती हैं. साथ ही, अधिकांश बच्चों को कोविड-19 से गंभीर नुकसान का कम जोखिम होता है.

दूसरी ओर, बच्चों को स्कूलों से बाहर करने का नुकसान कम नहीं हो पा रहा है. वास्तविक चिंता इस बात की है कि पिछले वर्ष के व्यवधान से स्कूली बच्चों की एक पीढ़ी को स्थायी शैक्षिक नुकसान होगा. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षकों को टीकाकरण का अवसर मिले. इससे न केवल बीमारी के खिलाफ उनकी सुरक्षा होगी, साथ ही उनके स्कूल में बने रहने की संभावना भी बढ़ेगी. अध्ययनों से पता चलता है कि महामारी के पहले चरणों में स्कूलों में प्रसार का मुख्य कारण स्कूल स्टाफ के बीच संचरण था.

क्या हमें परीक्षण जारी रखना चाहिए और स्कूलों में ‘‘बबल्स’’ होना कोई वैज्ञानिक प्रश्न नहीं है, बल्कि एक नैतिक प्रश्न है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी के मामलों को कम करने के लिए बच्चों की शिक्षा को बाधित रखना प्रासंगिक है या नहीं. एक बिंदु ऐसा है जहां ऐसे उपाय, भले ही वे प्रभावी हों, समग्र रूप से लाभ की बजाय हानि अधिक पहुंचाएंगे. हो सकता है अब हम उस मुकाम पर पहुंच गए हों. एक बात मजबूती से कही जानी चाहिए कि जब स्कूल खुलें, तो यह नियमित कोविड परीक्षणों के बिना होना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

ऑक्सफोर्ड (यूके) : इंग्लैंड में स्कूल ‘बबल्स’ की 19 जुलाई से शिक्षा सचिव गेविन विलियमसन (Education Secretary Gavin Williamson) ने समाप्ति की घोषणा की है. यह फैसला इस खबर के बाद किया गया है कि जून में कोविड से संबंधित कारणों से 375,000 बच्चे स्कूल नहीं गए. मौजूदा व्यवस्था के तहत अगर कोई स्कूली बच्चा कोरोना वायरस (Corona Virus) से संक्रमित हो जाता है, तो उसके निकट संपर्क में रहने वाले विद्यार्थियों को दस दिन के लिए स्व-पृथकवास (self-isolation for 10 days) में रहना पड़ता है. कुछ मामलों में, पूरे वर्ष समूहों को स्व-पृथकवास में रहना पड़ सकता है.

इस तरह के सामूहिक स्व-पृथकवास के बहुत से प्रतिकूल परिणाम होते हैं. इसलिए इस बात की पुरजोर मांग के बावजूद कि एक संक्रमित छात्र के संपर्क में आने वाले सभी अन्य छात्रों के स्व-पृथकवास की बजाय अन्य सुरक्षात्मक उपायों जैसे उनका तेजी से परीक्षण कराया जाए, सार्वजनिक सेवा संघ यूनिसन ने स्व-पृथकवास को कोविड मामलों को नियंत्रण में रखने के कारगर तरीकों में से एक बताकर इसका समर्थन किया है.

स्व-पृथकवास दरअसल, संचरण को रोकने में प्रभावी हो सकता है, लेकिन यह एक त्रुटिपूर्ण तरीका है. यह भी तो संभव है कि एक बच्चा, जो किसी ऐसे व्यक्ति के निकट संपर्क में रहा है, जो वायरस से संक्रमित पाया गया है, स्वयं संक्रमित न हो. ऐसे हालात में छात्रों का अकारण घर बैठना उचित नहीं है. महामारी के कारण शिक्षा प्रक्रिया पहले ही काफी बाधित हो चुकी है और ऐसे में बच्चे अनावश्यक रूप से स्कूल से दूर रहना बर्दाश्त नहीं कर सकते.

प्रस्ताव यह है कि, बच्चों को स्कूल से दूर रखने की बजाय, एनएचएस परीक्षण और ट्रेस प्रणाली का स्कूल परीक्षण के साथ समन्वय अधिक बेहतर विकल्प हो सकता है. जो बच्चे किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में रहे हैं, उन्हें केवल स्वयं को तभी अलग करना होगा, यदि वे स्वयं भी वायरस से संक्रमित पाए जाते हैं. इस दृष्टिकोण से अनावश्यक रूप से घर भेजे जाने वाले बच्चों की संख्या कम होगी.

हमें स्कूल ‘‘बबल्स’’को जारी रखना चाहिए या अधिक लक्षित परीक्षण अपनाना चाहिए, यह इस नैतिक निर्णय पर निर्भर करता है कि हमारे लिए क्या अधिक मायने रखता है, शिक्षा पर प्रभाव को कम करना या वायरस के प्रसार को कम करना.

एक अधिक कट्टरपंथी दृष्टिकोण

लेकिन स्कूल में व्यवधान की समस्या का एक अधिक क्रांतिकारी समाधान है. हम बच्चों की कोविड जांच पूरी तरह बंद कर सकते हैं. अस्वस्थ होने पर ही बच्चों को स्कूल आने से रोका जाएगा. यदि वे बहुत अस्वस्थ हैं और उन्हें अस्पताल में इलाज की आवश्यकता है, तो उनका वायरस संक्रमण परीक्षण किया जाएगा. हमें यह दृष्टिकोण क्यों अपनाना चाहिए? इसका एक कारण यह है कि हम बच्चों में कोई भी वायरल संक्रमण होने पर सामान्य रूप से यही सोचते हैं. इन्फ्लूएंजा, आरएसवी और एंटरोवायरस जैसे वायरस हैं जो हर सर्दियों में (और वर्ष के अन्य समय में) स्कूलों में फैलते हैं. वे कुछ मामलों में गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने का कारण बन सकते हैं. हम बच्चों की जांच और उन्हें अलग-थलग करके संक्रमण के कुछ मामलों और कुछ मौतों को रोक सकते हैं, लेकिन हम आमतौर पर ऐसा नहीं करते.

पढ़ें : फाइजर, मॉडर्ना के टीकों ने कोरोना जोखिम को 91% तक कम किया: अध्ययन

महामारी के दौरान स्कूलों में टेस्टिंग को समुदाय में बीमारी के प्रकोप को धीमा करने और बीमारी के वक्र को समतल करने के तरीके के रूप में उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि बीमारी के खिलाफ सबसे कमजोर कड़ी माने जाने वाले लोगों के एक बड़े हिस्से को अब कोविड-19 (50 वर्ष से अधिक आयु वालों में से 93%) के खिलाफ टीका लगाया गया है. मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन टीकाकरण की दो खुराक अस्पताल में भर्ती होने से रोकने में अत्यधिक प्रभावी प्रतीत होती हैं. साथ ही, अधिकांश बच्चों को कोविड-19 से गंभीर नुकसान का कम जोखिम होता है.

दूसरी ओर, बच्चों को स्कूलों से बाहर करने का नुकसान कम नहीं हो पा रहा है. वास्तविक चिंता इस बात की है कि पिछले वर्ष के व्यवधान से स्कूली बच्चों की एक पीढ़ी को स्थायी शैक्षिक नुकसान होगा. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षकों को टीकाकरण का अवसर मिले. इससे न केवल बीमारी के खिलाफ उनकी सुरक्षा होगी, साथ ही उनके स्कूल में बने रहने की संभावना भी बढ़ेगी. अध्ययनों से पता चलता है कि महामारी के पहले चरणों में स्कूलों में प्रसार का मुख्य कारण स्कूल स्टाफ के बीच संचरण था.

क्या हमें परीक्षण जारी रखना चाहिए और स्कूलों में ‘‘बबल्स’’ होना कोई वैज्ञानिक प्रश्न नहीं है, बल्कि एक नैतिक प्रश्न है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी के मामलों को कम करने के लिए बच्चों की शिक्षा को बाधित रखना प्रासंगिक है या नहीं. एक बिंदु ऐसा है जहां ऐसे उपाय, भले ही वे प्रभावी हों, समग्र रूप से लाभ की बजाय हानि अधिक पहुंचाएंगे. हो सकता है अब हम उस मुकाम पर पहुंच गए हों. एक बात मजबूती से कही जानी चाहिए कि जब स्कूल खुलें, तो यह नियमित कोविड परीक्षणों के बिना होना चाहिए.

(पीटीआई-भाषा)

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