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आस्ट्रेलिया के लोग जलवायु परिवर्तन को लेकर कोविड से तीन गुना ज्यादा चिंतित

जब हम इस लेख को लिख रहे हैं तो कोविड-19 का डेल्टा स्ट्रेन दुनिया को यह याद दिला रहा है कि महामारी अभी खत्म होने से बहुत दूर है. लाखों आस्ट्रेलियाई लॉकडाउन में हैं और संक्रमण दर वैश्विक टीकाकरण को पीछे छोड़ चुकी है.

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Published : Aug 6, 2021, 6:24 PM IST

विक्टोरिया : उत्तरी गोलार्ध में भारी गर्मी के रूप में रिकॉर्ड तोड़ने वाला तापमान हाल ही में बेकाबू आग का कारण बना, जबकि अभूतपूर्व बाढ़ ने लाखों लोगों को परेशान किया. गर्मी के प्रकोप, डूबने और आग के कारण सैकड़ों लोगों की जान चली गई.

जलवायु परिवर्तन के दोहरे विनाशकारी खतरों और महामारी ने इस समय को अविश्वसनीयता का युग बना दिया है. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कई ऑस्ट्रेलियाई इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

2020 में महामारी की पहली लहर के दौरान हमने पूरे ऑस्ट्रेलिया में 5,483 वयस्कों से राष्ट्रव्यापी डेटा एकत्र किया कि जलवायु परिवर्तन उनके मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है. हमारे नए पेपर में हमने पाया कि जहां ऑस्ट्रेलियाई लोग कोविड-19 के बारे में चिंतित हैं, वहीं वे जलवायु परिवर्तन के बारे में इससे लगभग तीन गुना अधिक चिंतित थे.

ऑस्ट्रेलिया के लोग जलवायु परिवर्तन को लेकर बहुत चिंतित हैं. यह कोई नई खोज नहीं है लेकिन हमारा अध्ययन इससे आगे बढ़ता है. यह मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों जैसे कि पर्यावरण-चिंता, जलवायु आपदा से संबंधित अभिघातजन्य तनाव विकार (पीटीएसडी), और भविष्य-उन्मुख निराशा की आसन्न महामारी की चेतावनी देता है.

कौन से ऑस्ट्रेलियाई सबसे ज्यादा चिंतित हैं?

हमने आस्ट्रेलियाई लोगों से जलवायु परिवर्तन, कोविड, सेवानिवृत्ति, स्वास्थ्य, उम्र बढ़ने और रोजगार के बारे में अपनी चिंताओं की तुलना चार सूत्री पैमाने (समस्या नहीं से लेकर बहुत अधिक समस्या तक) का उपयोग करने को कहा.

लिंग, आयु, या आवासीय स्थान (शहर या ग्रामीण, वंचित या समृद्ध क्षेत्रों) के किसी फर्क के बिना पूरी आबादी में जलवायु परिवर्तन के बारे में एक उच्च स्तर की चिंता की सूचना मिली. महिलाओं, युवाओं, संपन्न लोगों और मध्य आयु वर्ग (35 से 54 वर्ष की आयु) के लोगों में जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंता का उच्चतम स्तर दिखाई दिया.

बाद वाला समूह (35 से 54 वर्ष की आयु) शायद इसलिए ज्यादा चिंतित हो सकता है क्योंकि वे माता-पिता हैं, या बनने की योजना बना रहे हैं और अपने बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित हो सकते हैं.

युवा ऑस्ट्रेलियाई (18 से 34 वर्ष की आयु) के बीच उच्च स्तर की चिंता आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि वे किसी भी पीढ़ी द्वारा सामना किए जाने वाले सबसे बड़े अस्तित्व संबंधी संकट को विरासत में प्राप्त कर रहे हैं.

इस आयु वर्ग ने स्कूल स्ट्राइक 4 क्लाइमेट जैसे अभियानों और कई सफल मुकदमों के माध्यम से इस संबंध में अपनी चिंता दिखाई है. अधिक समृद्ध समूह से ताल्लुक रखने वाले जिन लोगों का हमने सर्वेक्षण किया, उनमें से 78% ने उच्च स्तर की चिंता की सूचना दी लेकिन कोविड से संबंधित चिंता (27%) की तुलना में इस समूह से बाहर के लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन (42%) अभी भी बहुत अधिक समस्या थी.

हमें बहुत लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने सीधे तौर पर जलवायु से संबंधित आपदा-झाड़ियों की आग, बाढ़, अत्यधिक गर्मी का अनुभव किया. इन्होंने पीटीएसडी के अनुरूप लक्षणों की सूचना दी. इसमें आघात की घटना की याद बार बार आना, डरना, बैठे बैठे अचानक चौंक जाना और बुरे सपने शामिल हैं.

दूसरों ने महत्वपूर्ण पूर्व-आघात और पर्यावरण-चिंता के लक्षणों की सूचना दी. इनमें भविष्य के आघात, खराब एकाग्रता, अनिद्रा, अशांति, निराशा और रिश्ते तथा काम की कठिनाइयों के बारे में आवर्ती दुःस्वप्न शामिल हैं. कुल मिलाकर हमने पाया कि जलवायु खतरों की अनिवार्यता ऑस्ट्रेलियाई लोगों की अपने भविष्य के बारे में आशावादी महसूस करने की क्षमता को सीमित करती है, कोविड के बारे में उनकी चिंताओं से कहीं अधिक.

लोग अपनी जलवायु चिंता का प्रबंधन कैसे कर रहे?

हमारा शोध इस बात की अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है कि जलवायु परिवर्तन के आसन्न खतरे का सामना करने के लिए लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन करने के लिए क्या कर रहे हैं. काउंसलर या मनोवैज्ञानिक जैसे पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सहायको के पास जाने के बजाय, कई ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने कहा कि वे अपने स्वयं के उपचारों को स्वयं निर्धारित कर रहे थे, जैसे कि प्राकृतिक वातावरण (67%) में होना और जहां संभव हो सकारात्मक जलवायु कार्य (83%) करना.

कई लोगों ने कहा कि वे व्यक्तिगत प्रयास (जैसे प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करना), सामुदायिक प्रयास (जैसे स्वयंसेवा) में शामिल होना, या नीति को प्रभावित करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए परामर्श प्रयासों में शामिल होने के माध्यम से अपने तनाव और चिंता को कम करते हैं.

दरअसल, इस साल की शुरुआत में किए गए हमारे शोध से पता चला है कि पर्यावरण स्वयंसेवा के मानसिक स्वास्थ्य लाभ हैं. जैसे कि जगह से जुड़ाव में सुधार करना और पर्यावरण के बारे में अधिक सीखना. यह बात अपने आप में समझने योग्य है कि ऑस्ट्रेलियाई अपनी जलवायु संबंधी चिंता को कम करने के लिए प्राकृतिक वातावरण में रहना चाहते हैं.

2019 और 2020 में आग लगने की बड़ी घटनाएं ऑस्ट्रेलियाई लोगों की समझ और उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में प्रकृति के योगदान के महत्व को नये सिरे से रेखांकित कर रही हैं. अब इस बात के पर्याप्त शोध है जो दिखाते हैं कि हरे भरे स्थान मनोवैज्ञानिक सेहत को सुधारते हैं.

एक आसन्न महामारी हमारा शोध आस्ट्रेलियाई लोगों पर बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य बोझ पर प्रकाश डालता है. जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा और जलवायु से संबंधित आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता में बढ़ोतरी होगी, यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ को और भी बढ़ाएंगी.

ऐसे में अधिक लोगों को पीटीएसडी, पर्यावरण-चिंता, और अन्य लक्षण भुगतने होंगे. बड़ी चिंता की बात यह है कि लोग जलवायु परिवर्तन की चिंता से निपटने के लिए पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की मांग नहीं कर रहे हैं. वे अपने स्वयं के समाधान ढूंढ रहे हैं.

प्रभावी जलवायु परिवर्तन नीति की कमी और ऑस्ट्रेलियाई सरकार की कार्रवाई भी सामूहिक निराशा को बढ़ा रही है. जैसा कि ब्रिटेन के एक न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट और मानव भूगोलवेत्ता हैरियट इंगले और माइकल मिकुलेविक्ज ने अपने 2020 के पेपर में लिखा है कि कई लोगों को, जलवायु परिवर्तन की अशुभ वास्तविकता हालात को न सुधार पाने की बेबसी की भावना से भर देती है, जिसमें वह नुकसान की भरपाई न कर पाने की लाचारी और हताशा महसूस करते हैं.

यह भी पढ़ें-गुटेरेस ने न्यूक्लीयर हथियार मुक्त दुनिया की दिशा में प्रगति का आह्वान किया

व्यक्ति, समुदाय और नीतिगत स्तरों पर जलवायु परिवर्तन को संबोधित करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं को लागू करना अनिवार्य है. सरकारों को एक आसन्न मानसिक स्वास्थ्य संकट को रोकने के लिए, स्वास्थ्य क्षेत्र के आह्वान पर जलवायु संबंधी प्रभावी उपाय करने की जरूरत है.

(पीटीआई-भाषा)

विक्टोरिया : उत्तरी गोलार्ध में भारी गर्मी के रूप में रिकॉर्ड तोड़ने वाला तापमान हाल ही में बेकाबू आग का कारण बना, जबकि अभूतपूर्व बाढ़ ने लाखों लोगों को परेशान किया. गर्मी के प्रकोप, डूबने और आग के कारण सैकड़ों लोगों की जान चली गई.

जलवायु परिवर्तन के दोहरे विनाशकारी खतरों और महामारी ने इस समय को अविश्वसनीयता का युग बना दिया है. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कई ऑस्ट्रेलियाई इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

2020 में महामारी की पहली लहर के दौरान हमने पूरे ऑस्ट्रेलिया में 5,483 वयस्कों से राष्ट्रव्यापी डेटा एकत्र किया कि जलवायु परिवर्तन उनके मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है. हमारे नए पेपर में हमने पाया कि जहां ऑस्ट्रेलियाई लोग कोविड-19 के बारे में चिंतित हैं, वहीं वे जलवायु परिवर्तन के बारे में इससे लगभग तीन गुना अधिक चिंतित थे.

ऑस्ट्रेलिया के लोग जलवायु परिवर्तन को लेकर बहुत चिंतित हैं. यह कोई नई खोज नहीं है लेकिन हमारा अध्ययन इससे आगे बढ़ता है. यह मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों जैसे कि पर्यावरण-चिंता, जलवायु आपदा से संबंधित अभिघातजन्य तनाव विकार (पीटीएसडी), और भविष्य-उन्मुख निराशा की आसन्न महामारी की चेतावनी देता है.

कौन से ऑस्ट्रेलियाई सबसे ज्यादा चिंतित हैं?

हमने आस्ट्रेलियाई लोगों से जलवायु परिवर्तन, कोविड, सेवानिवृत्ति, स्वास्थ्य, उम्र बढ़ने और रोजगार के बारे में अपनी चिंताओं की तुलना चार सूत्री पैमाने (समस्या नहीं से लेकर बहुत अधिक समस्या तक) का उपयोग करने को कहा.

लिंग, आयु, या आवासीय स्थान (शहर या ग्रामीण, वंचित या समृद्ध क्षेत्रों) के किसी फर्क के बिना पूरी आबादी में जलवायु परिवर्तन के बारे में एक उच्च स्तर की चिंता की सूचना मिली. महिलाओं, युवाओं, संपन्न लोगों और मध्य आयु वर्ग (35 से 54 वर्ष की आयु) के लोगों में जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंता का उच्चतम स्तर दिखाई दिया.

बाद वाला समूह (35 से 54 वर्ष की आयु) शायद इसलिए ज्यादा चिंतित हो सकता है क्योंकि वे माता-पिता हैं, या बनने की योजना बना रहे हैं और अपने बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित हो सकते हैं.

युवा ऑस्ट्रेलियाई (18 से 34 वर्ष की आयु) के बीच उच्च स्तर की चिंता आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि वे किसी भी पीढ़ी द्वारा सामना किए जाने वाले सबसे बड़े अस्तित्व संबंधी संकट को विरासत में प्राप्त कर रहे हैं.

इस आयु वर्ग ने स्कूल स्ट्राइक 4 क्लाइमेट जैसे अभियानों और कई सफल मुकदमों के माध्यम से इस संबंध में अपनी चिंता दिखाई है. अधिक समृद्ध समूह से ताल्लुक रखने वाले जिन लोगों का हमने सर्वेक्षण किया, उनमें से 78% ने उच्च स्तर की चिंता की सूचना दी लेकिन कोविड से संबंधित चिंता (27%) की तुलना में इस समूह से बाहर के लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन (42%) अभी भी बहुत अधिक समस्या थी.

हमें बहुत लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने सीधे तौर पर जलवायु से संबंधित आपदा-झाड़ियों की आग, बाढ़, अत्यधिक गर्मी का अनुभव किया. इन्होंने पीटीएसडी के अनुरूप लक्षणों की सूचना दी. इसमें आघात की घटना की याद बार बार आना, डरना, बैठे बैठे अचानक चौंक जाना और बुरे सपने शामिल हैं.

दूसरों ने महत्वपूर्ण पूर्व-आघात और पर्यावरण-चिंता के लक्षणों की सूचना दी. इनमें भविष्य के आघात, खराब एकाग्रता, अनिद्रा, अशांति, निराशा और रिश्ते तथा काम की कठिनाइयों के बारे में आवर्ती दुःस्वप्न शामिल हैं. कुल मिलाकर हमने पाया कि जलवायु खतरों की अनिवार्यता ऑस्ट्रेलियाई लोगों की अपने भविष्य के बारे में आशावादी महसूस करने की क्षमता को सीमित करती है, कोविड के बारे में उनकी चिंताओं से कहीं अधिक.

लोग अपनी जलवायु चिंता का प्रबंधन कैसे कर रहे?

हमारा शोध इस बात की अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है कि जलवायु परिवर्तन के आसन्न खतरे का सामना करने के लिए लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन करने के लिए क्या कर रहे हैं. काउंसलर या मनोवैज्ञानिक जैसे पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सहायको के पास जाने के बजाय, कई ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने कहा कि वे अपने स्वयं के उपचारों को स्वयं निर्धारित कर रहे थे, जैसे कि प्राकृतिक वातावरण (67%) में होना और जहां संभव हो सकारात्मक जलवायु कार्य (83%) करना.

कई लोगों ने कहा कि वे व्यक्तिगत प्रयास (जैसे प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करना), सामुदायिक प्रयास (जैसे स्वयंसेवा) में शामिल होना, या नीति को प्रभावित करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए परामर्श प्रयासों में शामिल होने के माध्यम से अपने तनाव और चिंता को कम करते हैं.

दरअसल, इस साल की शुरुआत में किए गए हमारे शोध से पता चला है कि पर्यावरण स्वयंसेवा के मानसिक स्वास्थ्य लाभ हैं. जैसे कि जगह से जुड़ाव में सुधार करना और पर्यावरण के बारे में अधिक सीखना. यह बात अपने आप में समझने योग्य है कि ऑस्ट्रेलियाई अपनी जलवायु संबंधी चिंता को कम करने के लिए प्राकृतिक वातावरण में रहना चाहते हैं.

2019 और 2020 में आग लगने की बड़ी घटनाएं ऑस्ट्रेलियाई लोगों की समझ और उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में प्रकृति के योगदान के महत्व को नये सिरे से रेखांकित कर रही हैं. अब इस बात के पर्याप्त शोध है जो दिखाते हैं कि हरे भरे स्थान मनोवैज्ञानिक सेहत को सुधारते हैं.

एक आसन्न महामारी हमारा शोध आस्ट्रेलियाई लोगों पर बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य बोझ पर प्रकाश डालता है. जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा और जलवायु से संबंधित आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता में बढ़ोतरी होगी, यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ को और भी बढ़ाएंगी.

ऐसे में अधिक लोगों को पीटीएसडी, पर्यावरण-चिंता, और अन्य लक्षण भुगतने होंगे. बड़ी चिंता की बात यह है कि लोग जलवायु परिवर्तन की चिंता से निपटने के लिए पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की मांग नहीं कर रहे हैं. वे अपने स्वयं के समाधान ढूंढ रहे हैं.

प्रभावी जलवायु परिवर्तन नीति की कमी और ऑस्ट्रेलियाई सरकार की कार्रवाई भी सामूहिक निराशा को बढ़ा रही है. जैसा कि ब्रिटेन के एक न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट और मानव भूगोलवेत्ता हैरियट इंगले और माइकल मिकुलेविक्ज ने अपने 2020 के पेपर में लिखा है कि कई लोगों को, जलवायु परिवर्तन की अशुभ वास्तविकता हालात को न सुधार पाने की बेबसी की भावना से भर देती है, जिसमें वह नुकसान की भरपाई न कर पाने की लाचारी और हताशा महसूस करते हैं.

यह भी पढ़ें-गुटेरेस ने न्यूक्लीयर हथियार मुक्त दुनिया की दिशा में प्रगति का आह्वान किया

व्यक्ति, समुदाय और नीतिगत स्तरों पर जलवायु परिवर्तन को संबोधित करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं को लागू करना अनिवार्य है. सरकारों को एक आसन्न मानसिक स्वास्थ्य संकट को रोकने के लिए, स्वास्थ्य क्षेत्र के आह्वान पर जलवायु संबंधी प्रभावी उपाय करने की जरूरत है.

(पीटीआई-भाषा)

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