कोलंबो : श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने कहा है कि तमिलों के मुख्य दल तमिल नेशनल एलायंस (टीएनए) को चुनाव के जरिए वह हासिल नहीं करने दिया जाएगा, जो लिट्टे और उसके मारे जा चुके नेता वी. प्रभाकरन ने बंदूक की नोक पर हासिल करने की नाकाम कोशिश की थी.
राजपक्षे ने आगामी पांच अगस्त को होने वाले संसदीय चुनाव से पहले बुधवार को एक चुनावी रैली में कहा कि तीन दशक तक चले लिट्टे के हिंसक अभियान को खत्म करने के लिए की गई उनकी कार्रवाई के चलते देश को आतंकवाद से मुक्ति मिली थी.
प्रधानमंत्री ने कहा,'हम तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) को अपने मंसूबे पूरा नहीं करने देंगे.'
राजपक्षे ने कहा, 'दक्षिण के सिंहली देश के उत्तरी हिस्सों और उत्तर के तमिल कहीं भी आ जा सकते हैं.' उन्होंने कहा कि टीएनए ने अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए कुछ राजनीतिक दलों से समझौता किया था.
राजपक्षे ने पूर्व विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा के नेतृत्व वाले विपक्षी समूह पर इशारों ही इशारों में निशाना साधते हुए कहा, 'हम ऐसा नहीं होने देंगे.'
प्रेमदासा की पार्टी एसजेबी ने प्रांतीय परिषदों को शक्ति प्रदान करने के लिए संविधान में किए गए 13वें संशोधन को संरक्षित रखने का संकल्प लिया था, जिसे भारत का समर्थन हासिल है.
श्रीलंका में हिंसक जातीय संघर्ष के बीच जुलाई 1987 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के बीच भारत-श्रीलंका समझौता होने के बाद भारत के प्रभाव से श्रीलंका में 13वां संविधान संशोधन हुआ था. इसमें प्रांतों तक शक्तियों का विकेंद्रीकरण करने पर बल दिया गया था. भारत, श्रीलंका पर 13वां संविधान संशोधन लागू करने पर दबाव बनाता रहा है ताकि तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके.
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तमिलों की शिकायत है कि 13वें संशोधन के 30 साल बाद भी प्रांतों तक शक्तियों के विकेंद्रीकरण को अमल में नहीं लाया जा सका है.
टीएनए 225 सदस्यीय संसद की उत्तर और पूर्व में स्थित 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. गठबंधन ने आत्मनिर्णय के लिए संघर्ष के जरिए इसका संघीय समाधान तलाशने का वादा किया है.