बीजिंग: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि दोनों देशों को आपसी तालमेल मजबूत करने वाले क्षेत्रों का पता लगाने के साथ-साथ एक-दूसरे की चिंताओं का सम्मान करना चाहिए. साथ ही मतभेदों को भी दूर करना चाहिए.
उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि एशिया की इन दोनों शक्तियों के बीच संबंध 'विशाल' हो गए हैं कि इसने 'वैश्विक आयाम' हासिल कर लिए हैं.
जयशंकर ने सोमवार को बीजिंग की अपनी तीन दिवसीय यात्रा संपन्न कर ली. उन्होंने भारत-चीन संबंधों के सभी पहलुओं पर अपने समकक्ष वांग यी के साथ व्यापक वार्ता की.
जयशंकर ने रविवार को यहां सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि दो सबसे बड़े विकासशील देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में भारत और चीन के बीच सहयोग दुनिया के लिए काफी अहमियत रखता है.
चीन और भारत विश्व की ऐसी दो उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं जिनकी आबादी एक अरब से अधिक है.
शिन्हुआ ने जयशंकर को उद्धृत करते हुए कहा, 'हमारे संबंध इतने विशाल हैं कि यह अब महज द्विपक्षीय संबंध नहीं रह गया है। इसके वैश्विक आयाम हैं.'
उन्होंने बदलती हुई वैश्विक व्यवस्था में विश्व को बहुध्रुवीय बताते हुए कहा कि भारत और चीन को वैश्विक शांति, स्थिरता एवं विकास में योगदान देने के लिए संचार और सहयोग बढ़ाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि दोनों देशों को तालमेल वाले मजबूत क्षेत्रों का पता लगाना चाहिए, एक दूसरे की मुख्य चिंताओं का सम्मान करना चाहिए, अपने मतभेदों को दूर करने के रास्ते तलाशने चाहिए और द्विपक्षीय संबंधों की दिशा पर एक रणनीतिक नजर रखना चाहिए.
जयशंकर साल 2009 से 2013 तक चीन में भारत के राजदूत रहे थे. बीजिंग में किसी भारतीय राजनयिक का यह सबसे लंबा कार्यकाल था.
उन्होंने कहा कि वह भारत के विदेश मंत्री के तौर पर अपनी नयी भूमिका की शुरूआत करने के लिए चीन आने से खुश हैं.
उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि इस जिम्मेदारी के साथ मैं एक बार फिर भारत-चीन संबंधों में योगदान दे सकता हूं. मेरे लिए यह मेरी संपूर्ण विदेश नीति जिम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा है.'
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विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों पड़ोसी देशों का हजारों साल पुराना इतिहास है और दोनों देशों की सभ्यताएं सबसे पुरानी है, जो पूर्व की सभ्यता के दो स्तंभों को दर्शाती है.
उन्होंने कहा, 'इतिहास के जरिए कहीं अधिक व्यापक जागरूकता को बढ़ावा देना दोनों देशों के लिए एक अहम कार्य है.'
जयशंकर ने कहा, 'जब हम पीछे देखते हैं (पिछले 69 साल को), ऐसे कई सबक हैं जो हम उससे सीख सकते हैं। यदि 'एशियाई सदी' को साकार करना है तो पहला सबक यह है कि भारत और चीन के बीच करीबी सहयोग हो.'
भारत और चीन पिछले साल अप्रैल में लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ाने के लिए उच्च स्तरीय तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए थे और इस संबंध में पहली बैठक दिसंबर में नयी दिल्ली में हुई थी.
इस कदम को 'द्विपक्षीय संबंधों को संकीर्ण कूटनीतिक क्षेत्र से एक व्यापक सामाजिक संबंध पर ले जाने' वाला बताते हुए जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के लोग एक-दूसरे से मिल कर जितनी बातचीत करेंगे, उतना ही ज्यादा एक-दूसरे से जुड़े होने की भावना बढ़ेगी.
उन्होंने दोनों देशों के लोगों के बीच चीन-भारत उच्च स्तरीय तंत्र की दूसरी बैठक की वांग यी के साथ सह अध्यक्षता भी की.
वह चीन के उपराष्ट्रपति वांग किशान से भी मिले जिन्हें राष्ट्रपति शी चिनफिंग का करीबी माना जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दूसरी औपचारिक शिखर वार्ता के लिए इस साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के लिए तैयारियों पर भी जयशंकर ने चर्चा की.
वांग यी के साथ बैठक में जयशंकर ने कहा कि जम्मू कश्मीर पर भारत का फैसला देश का 'आंतरिक' विषय है और इसका भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं तथा चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के लिए कोई निहितार्थ नहीं है.
जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को रद्द करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के भारत के फैसले की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, 'भारत किसी अतिरिक्त क्षेत्र पर दावा नहीं कर रहा है. इस सिलसिले में चीनी चिंताएं गलत हैं.'