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श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव में रिकॉर्ड 35 कैंडिडेट, भारत के नजरिए से समझें अहमियत - श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव 16 नवम्बर को प्रस्तावित

श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव 16 नवम्बर को प्रस्तावित है. यह चुनाव भारतीय दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है. जानें भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है श्रीलंका का राष्ट्रपति चुनाव. चुनाव में कौन हैं प्रमुख प्रमुख उम्मीदवार

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Published : Nov 14, 2019, 12:03 AM IST

Updated : Nov 15, 2019, 2:32 PM IST

नई दिल्ली : श्रीलंका में 16 नवम्बर को प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव भारतीय दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत को अपने पड़ोसी देश के साथ अच्छे कूटनीतिक संबंध बनाये रखने की जरूरत है. चूंकि चीन भी श्रीलंका के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है, इस लिहाज से नई दिल्ली के लिए कोलम्बो के साथ सौहार्दपूर्ण संतुलन बनाए रखना और भी विकट हो जाएगा.

महिंदा राजपक्षे को कांग्रेस समर्थक माना जाता है और वह चीन के प्रति नरम रुख रखने के लिए जाने जाते हैं. दूसरी ओर प्रेमदासा भारत सहित सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाये रखना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए एक टीम के रूप में काम करने के लिए प्रतिबद्ध है कि श्रीलंका अपनी स्वैच्छिक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करे.

श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

राजपक्षे की बात करें तो उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार पर श्रीलंका की चिंताओं को न समझने का आरोप लगाते हुए भारत के खिलाफ पहले ही कड़ा रुख अपना लिया है. उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि यदि वह चुनाव जीतते हैं तो चीन के साथ संबंधों को बहाल करने की दिशा में काम करेंगे. इसकी वजह भी है कि बीजिंग ने श्रीलंका को सबसे ज्यादा कर्ज दे रखा है.

ये भी पढ़ें: श्रीलंकाई राष्ट्रपति के सलाहकार से ईटीवी भारत की विशेष बातचीत

राजपक्षे ने कहा, 'भारत में पूर्ववर्ती सरकार, खासकर नौकरशाहों के साथ हमारी बहुत अच्छी समझ थी. लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) को हराने में हमें उनका पूर्ण समर्थन मिला था. लेकिन नई सरकार, विशेष रूप से नरेंद्र मोदी सरकार के नौकरशाह श्रीलंका को अलग नजरिये से देखते हैं.

ये भी पढ़ें: करीब 1.6 करोड़ वोटर तय करेंगे 35 उम्मीदवारों की किस्मत, सुर्खियों में हैं राजपक्षे और प्रेमदासा

राजपक्षे के सलाहकार पालिता कोहोना ने कहा, 'चीन हमारी ओर भिन्न दृष्टिकोण से देख रहा है. यदि गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बनते हैं तो वह रिकॉर्ड को सही करेंगे और उस संबंध को फिर से बहाल करेंगे, जो पहले था.'

ये भी पढ़ें : श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय के वोट निभाएंगे अहम किरदार

इसके विपरीत यूनाइटेड नेशनल पार्टी-(यूएनपी) नेता प्रेमदासा का कहना है, 'हमारी भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हमारी विदेश नीति सभी देशों के साथ मिलकर काम करने और श्रीलंका को हिन्द महासागर में एक ऐसे हब के रूप में तब्दील करने पर केंद्रित रहेगी, जो ज्ञान आधारित, प्रतिस्पर्धी व सामाजिक बाजार अर्थव्यवस्था से युक्त हो. इस उद्देश्य के लिए मुक्त व्यापार, पथ प्रदर्शन की स्वतंत्रता और नियम-आधारित विश्व व्यवस्था आवश्यक हैं. श्रीलंका इन सिद्धांतों पर दृढ़ता से प्रतिबद्ध रहेगा.'

नई दिल्ली : श्रीलंका में 16 नवम्बर को प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव भारतीय दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत को अपने पड़ोसी देश के साथ अच्छे कूटनीतिक संबंध बनाये रखने की जरूरत है. चूंकि चीन भी श्रीलंका के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है, इस लिहाज से नई दिल्ली के लिए कोलम्बो के साथ सौहार्दपूर्ण संतुलन बनाए रखना और भी विकट हो जाएगा.

महिंदा राजपक्षे को कांग्रेस समर्थक माना जाता है और वह चीन के प्रति नरम रुख रखने के लिए जाने जाते हैं. दूसरी ओर प्रेमदासा भारत सहित सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाये रखना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए एक टीम के रूप में काम करने के लिए प्रतिबद्ध है कि श्रीलंका अपनी स्वैच्छिक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करे.

श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

राजपक्षे की बात करें तो उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार पर श्रीलंका की चिंताओं को न समझने का आरोप लगाते हुए भारत के खिलाफ पहले ही कड़ा रुख अपना लिया है. उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि यदि वह चुनाव जीतते हैं तो चीन के साथ संबंधों को बहाल करने की दिशा में काम करेंगे. इसकी वजह भी है कि बीजिंग ने श्रीलंका को सबसे ज्यादा कर्ज दे रखा है.

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राजपक्षे ने कहा, 'भारत में पूर्ववर्ती सरकार, खासकर नौकरशाहों के साथ हमारी बहुत अच्छी समझ थी. लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) को हराने में हमें उनका पूर्ण समर्थन मिला था. लेकिन नई सरकार, विशेष रूप से नरेंद्र मोदी सरकार के नौकरशाह श्रीलंका को अलग नजरिये से देखते हैं.

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राजपक्षे के सलाहकार पालिता कोहोना ने कहा, 'चीन हमारी ओर भिन्न दृष्टिकोण से देख रहा है. यदि गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बनते हैं तो वह रिकॉर्ड को सही करेंगे और उस संबंध को फिर से बहाल करेंगे, जो पहले था.'

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इसके विपरीत यूनाइटेड नेशनल पार्टी-(यूएनपी) नेता प्रेमदासा का कहना है, 'हमारी भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हमारी विदेश नीति सभी देशों के साथ मिलकर काम करने और श्रीलंका को हिन्द महासागर में एक ऐसे हब के रूप में तब्दील करने पर केंद्रित रहेगी, जो ज्ञान आधारित, प्रतिस्पर्धी व सामाजिक बाजार अर्थव्यवस्था से युक्त हो. इस उद्देश्य के लिए मुक्त व्यापार, पथ प्रदर्शन की स्वतंत्रता और नियम-आधारित विश्व व्यवस्था आवश्यक हैं. श्रीलंका इन सिद्धांतों पर दृढ़ता से प्रतिबद्ध रहेगा.'

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Last Updated : Nov 15, 2019, 2:32 PM IST
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