नई दिल्ली : चीन ताइवान को टीकों की सप्लाई करने के लिए तैयार है, लेकिन ताइवान इसे संदिग्ध नजरों से देखता है. ताइवान के लोगों का दावा है कि टीकों के अधिग्रहण और लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने में बीजिंग की ओर से रोड़े डाले जा रहे हैं, जिससे टीकाकरण अभियान में अड़चनें आ रही हैं. नम्रता रिसर्च एसोसिएट हैं और चीन-ताइवान के बीच रिश्तों और राजनीतिक समीकरणों की समझ रखती हैं. उन्होंने बताया कि चीन में रह रहे ताइवान के लोगों को कोरोना टीकाकरण में प्राथमिकता मिल रही है, ऐसे में चीन की नीति को लेकर ताइवान में संदेह पैदा होना स्वाभाविक है. उन्हें ऐसा लगता है कि चीन, ताइवान के लोगों का दिल जीतने की कोशिश कर रहा है.
महामारी से संघर्ष के बावजूद चीन और ताइवान के बीच किन मामलों को लेकर संशय बना हुआ है, इस मामले को समझने के लिए ईटीवी भारत ने कुछ प्रमुख सवालों पर नम्रता हसीजा की राय जानी. हमने यह जानने का प्रयास किया कि ताइवान के घरेलू मामलों पर इसका क्या संभावित असर हो सकता है, क्योंकि चीनी कोरोना वैक्सीन के लिए हां कहना ताइवान के लिए एक आसान निर्णय नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों की छवि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की है. पढ़ें कुछ प्रमुख सवालों के जवाब-
सवाल : टीके की आपूर्ति को लेकर चीन और ताइवान के बीच एक प्रमुख राजनीतिक संघर्ष रहा है. हाल ही में, बीजिंग ने ताइवान को टीके की पेशकश की है, लेकिन ताइवान यह दावा करने पर अड़ा हुआ है कि चीन ने वैक्सीन की खरीद और वितरण करने की उसकी क्षमता में बाधा उत्पन्न की है. आपको क्या लगता है कि चीन ताइवान को वैक्सीन की आपूर्ति रोकने की कोशिश क्यों कर रहा है? जब दोनों के बीच संबंधों की बात आती है तो हम और क्या उम्मीद कर सकते हैं?
नम्रता हसीजा : पहला कारण बीजिंग की वह नीति है, चीन में रह रहे ताइवान के लोगों लिए COVID-19 टीकाकरण को प्राथमिकता देने की है. इससे ताइवान की सरकार के भीतर चिंता पैदा होती है. चीन द्वारा ताइवान के नागरिकों को टीकाकरण में प्राथमिकता दिए जाने को, ताइवान के लोग दिल जीतने के उपक्रम के रूप में देखते हैं.
चीन, ताइवान को अपना क्षेत्र बताता है और इस पर मजबूती से दावा भी करता रहा है. लोकतांत्रिक द्वीप के रूप में जाना जाने वाले ताइवान में अभी तक कोरोना टीकाकरण शुरू नहीं हुआ है और टीके खरीदने का सबसे बड़ा सौदा भी रद्द हो गया है.
ताइवान ने 26 जनवरी, 2021 को चीन में बने COVID-19 टीकों के आयात पर प्रतिबंध को दोहराया था. ऐसे में लगता है कि महामारी जैसे समय में चीन ने शायद ताइवान को एक सबक सिखाने के लिए भी यह कार्रवाई की है. हाल के दिनों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) द्वारा ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में बार-बार घुसपैठ की खबरें भी सामने आई थीं. रेडियो फ्री एशिया की रिपोर्ट के अनुसार इससे दोनों के बीच क्षेत्रीय तनाव बढ़े हैं.
चंद्रकला : ताइवान में वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य क्या है और क्या भारत को चीन की बढ़ती वर्चस्ववादी रणनीतियों और मुखरता से निपटने के लिए ताइवान के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करनी चाहिए?
नम्रता हसीजा : भारत को ताइवान के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करनी चाहिए लेकिन चीन की बढ़ती जिद के कारण नहीं. समय आ गया है कि भारत ताइवान को चीन के नजरिए से देखना बंद कर दे; मैं यह बात 9 साल से कह रही हूं. ताइवान को एक देश के रूप में देखें और ताइवान के साथ स्वतंत्र संबंध बनाए.
चंद्रकला : क्या आपको लगता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दोनों (चीन और ताइवान) के बीच संबंधों को सुधारने में भूमिका निभानी चाहिए.
नम्रता हसीजा : ईमानदारी से कहूं तो जब तक डीपीपी (डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी) है, चीन ताइवान की सरकार से बात नहीं करेगा. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक सीमित भूमिका निभा सकता है, क्योंकि अभी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और चीन आमने-सामने खड़े हैं.
इसके अलावा, चीन ताइवान को प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं देखता है; यह इसे उनके एक प्रदेश के रूप में देखता है जो समीकरण को ही बदल देता है. दूसरी ओर, ताइवान के लोग खुद को चीनी नहीं मानते हैं और वे 'एक राष्ट्र दो व्यवस्था' को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं. उन्होंने देखा है कि हांगकांग के साथ क्या हुआ और चीन को इसके अलावा कुछ भी स्वीकार्य नहीं है.
यदि आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से पूछें तो ताइवान की एक विशिष्ट पहचान है और यह एक अलग देश है, भले ही वहां रहने वालों की संख्या कम हैं, मैंने ताइवान के लोगों को वहां बहुत करीब से देखा है.
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चंद्रकला : राजनीतिक दृष्टिकोण से, क्या हम ताइवान-चीन के बीच जल्द ही अच्छे और स्थिर संबंधों की उम्मीद कर सकते हैं?
नम्रता हसीजा : नहीं, शी जिनपिंग के सत्ता में रहते हुए तो नहीं. चीन हर गुजरते दिन के साथ आक्रामक होते जा रहा है.
चंद्रकला : क्या आप ताइवान के क्वाड का हिस्सा बनने की कोई संभावना देखते हैं या क्वाड ताइवान को अपनाएगा?
नम्रता हसीजा : हां, मैं हमेशा इस बात का समर्थन करती हूं कि क्वाड को सार्थक बनाने के लिए इंडोनेशिया, वियतनाम और अन्य देशों के अलावा ताइवान का होना जरूरी है. क्या देश स्वीकार करेंगे, यह थोड़ा मुश्किल है क्योंकि ताइवान के किसी भी देश के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं. क्वाड नहीं बल्कि ताइवान हिंद-प्रशांत रणनीति के लिए महत्वपूर्ण है.
चंद्रकला : महामारी के बीच ताइवान के स्वास्थ्य संकट के बारे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका पर आपका क्या कहना है?
नम्रता हसीजा : अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ताइवान के साथ खड़ा होना चाहिए; अब समय आ गया है कि वे डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में ताइवान के प्रवेश का समर्थन करें. दुनिया कैसे 23 मिलियन लोगों के स्वास्थ्य की अनदेखी कर सकती है जबकी ताइवान ने महामारी के दौरान और उससे पहले कई देशों की मदद की है?
पिछले सप्ताह में, बहुत बहस और चर्चा हुई है क्योंकि ताइवान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्यों की एक महत्वपूर्ण वार्षिक सभा, जो कोरोना वायरस महामारी को रोकने पर केंद्रित थी, से अपने निरंतर बहिष्कार पर चीन को की आलोचना की थी.
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चीन ने हमेशा ताइपे और उसके लोगों पर हावी होने की हर संभव कोशिश की है- जिसे वह अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा करता है, ताकि उसे अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में दूर रखा जा सके.
जानकारी के अनुसार, चीनी टीकों को स्वीकार नहीं करने के लिए ताइवान ने अब संयुक्त राज्य अमेरिका से टीकों की 20 मिलियन खुराकें मांगी है, जिसको जुलाई तक भिजवाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने की है.
गौरतलब है कि इस साल 17 फरवरी को ताइवान के स्वास्थ्य मंत्री ने यह सार्वजनिक किया था कि बायोएनटेक अंतिम समय में पीछे हट गया. अंतिम समय में पीछे हटने का एकमात्र कारण निश्चित रूप से, जर्मनी का चीनी भागीदार यानी शंघाई फोसुन फार्मास्युटिकल (Shanghai Fosun Pharmaceutical) है, जिसने सौदे का विरोध किया होगा.
भले ही ताइवान के स्वास्थ्य मंत्री ने फोसुन का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया था, यह बहुत स्पष्ट है जब उन्होंने कहा कि बायोएनटेक ने कोरोना वायरस वैक्सीन के वैश्विक वितरण और कंपनी के उच्च अधिकारियों के बीच आंतरिक असहमति का हवाला दिया था.
(नम्रता हसीजा सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटेजी में रिसर्च एसोसिएट होने के अलावा ताइवान अल्युमनाई एसोसिएशन की अध्यक्ष भी हैं)