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'चीन ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भी ज्यादा जमीन हड़पी'

ईटीवी भारत ने मालदीव के स्पीकर मोहम्मद नशीद से चीन, सार्क (SAARC) और नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों पर बातचीत की. मालदीव की मजलिस स्पीकर ने कहा कि चीन ईस्ट इंडिया कंपनी की तुलना में अधिक भूमि हड़पने में कामयाब रहा है.

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मोहम्मद नशीद
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Published : Dec 15, 2019, 6:17 PM IST

नई दिल्ली : द्वीप राष्ट्र मालदीव में पूर्व राष्ट्रपति के प्रति तनाव फिर से बढ़ता जा रहा है और अब चीन पर मजलिस (संसद) के अध्यक्ष मोहम्मद नशीद के भाषण ने इस आग को और ज्यादा हवा दे दी है. राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह और उनके विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के विपरीत, जो इस परेशानी से बचने के लिए बीजिंग पर सतर्क बयान दे रहे हैं, नशीद ने शुक्रवार को सावधानी बरते बगैर चीन द्वारा लगातार भूमि हड़पने की तुलना औपनिवेशिक ईस्ट इंडिया कंपनी से कर दी.

मालदीव के प्रमुख नेता, जो कई वर्षों तक निर्वासन में रहने के लिए मजबूर थे और 2018 का चुनाव नहीं लड़ सके, जिसमें उनकी पार्टी एमडीपी ने सोलिह के साथ विपक्षी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में आश्चर्यजनक जीत हासिल की, वे प्रवक्ता का प्रभार संभालने के बाद अपनी पहली यात्रा पर भारत आए थे. प्रधानमंत्री मोदी और अन्य नेताओं के साथ बैठकों के बाद मीडिया से बात करते हुए, नशीद ने कहा कि चीन अपने ऋण या विकास सहायता को जानबूझकर छोटे राष्ट्रों को कर्ज में फंसाने के लिए तैयार करता है.

उन्होंने आग्रह किया कि चीन को उन ऋणों का पुनर्गठन करना चाहिए जो हिंद महासागर पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लेकिन छोटे भू-भाग वाले देशों पर बकाया हैं. 'चीन ने ईस्ट इंडिया कंपनी से अधिक जमीन हड़प ली है… उन्होंने हमें विकास करने के लिए सहायता नहीं दी है. यह कर्ज एक जाल है. हमें अब समझौते कर लेने चाहिए. हम उसे रोक नहीं सकते हमें पैसों का भुगतान करना ही होगा. लेकिन चीन सरकार को कर्ज का पुनर्गठन करना चाहिए.' नशीद ने कहा.

मोहम्मद नशीद के साथ खास बातचीत

नशीद ने कहा कि द्वीप राष्ट्र जो पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर है, तानाशाह राष्ट्रपति यामीन के पिछले शासन में बीजिंग द्वारा निर्मित पुलों और सड़कों सहित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए चीन का लगभग 3.5 बिलियन अमरीकी डालर का बकाया है. 'ऋण वापस करना असंभव है. पैसा हमारे पास कभी आया ही नहीं. लेकिन हमारे पास भुगतान करने के लिए एक बड़ा ऋण है और हम इसका भुगतान करेंगे. कई राजनेता (मालदीव में) इसके लिए भुगतान नहीं करते हैं,' उन्होंने कहा.

पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पूर्व राष्ट्रपति जिन्होंने अपने निष्कासन, तख्तापलट और निर्वासन को अंतरराष्ट्रीय अदालत में चुनौती दी थी, उन्होंने आगाह किया कि अगले कुछ वर्षों में यदि चीन कर्ज के जाल फैलाने की नीति में सुधार नहीं करता है, तो मालदीव इसे मानवाधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता तक खींचने पर विचार कर सकता है. उन्होंने यामीन शासन द्वारा हस्ताक्षरित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को 2018 में किसी भी विरोध की अनुपस्थिति में मजलिस के माध्यम से बुलडोजर के रूप में बुलाया और इसे 'मृत' कहा.

नशीद ने कहा, 'एफटीए मर चुका है और इसे अब संसद की मंजूरी की आवश्यकता है और इसे मंजूरी नहीं दी जाएगी ... चीन ने हमें साम्राज्यवाद के रूप में, उपनिवेशवाद के रूप में और भूमि-अधिग्रहण के रूप में देखा.'

यह पूछे जाने पर कि क्या नशीद के चीन पर निशाना साधने और उनके राष्ट्रपति की नई दिल्ली से लेकर बीजिंग तक की ख़ामोशी में कोई अंतर्विरोध है तो नशीद ने इसे 'आंतरिक विरोधाभास' कहते हुए कहा कि वे इससे 'निराश नहीं' हैं और देश को पहले भी चलाने के उनके अनुभव से वे समझते हैं कि किसी अभियान संबंधी बयानबाजी की तुलना में चीजें 'रियलपोलिटिक' यानि व्यावहारिक राजनीति में अलग तरह से चलती हैं.

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी मुलाकात में पहले नशीद ने भारत से 1 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन के तहत मालदीव में शुरू की गई 'फास्ट ट्रैक' विकास परियोजनाओं का अनुरोध किया था. भारत में अपने संसदीय प्रतिनिधिमंडल सहित विचार-विमर्श में, नशीद ने मालदीव के समुद्र में अल-कायदा द्वारा कट्टरपंथी इस्लामवाद और इस्लामिक स्टेट की संभावना तलाशने जैसी चुनौतियों पर भी चिंता जताई. पिछले कुछ वर्षों में मालदीव के कुछ 250 लोगों का आईएस के लड़ाकों के रूप में शामिल होने का अनुमान है. विवादित उपदेशक जाकिर नाइक को आश्रय प्रदान करने वाले मुस्लिम बहुसंख्यक देश मलेशिया के बारे में पूछे जाने पर, नशीद ने चिंता व्यक्त की और कहा कि भारत द्वारा वांछित टेलीवेंजलिस्ट को मालदीव में प्रवेश से वंचित कर दिया गया है.

ईटीवी भारत को दिए अपने विशेष बयान में, नशीद ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर भारत सरकार की स्थिति का भी बचाव किया. 'यह भारतीय राजनीति का आंतरिक मुद्दा है. इसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है. हमें भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा है. जब आपकी संसद कुछ करती है तो हमारा मानना है कि यह एक उचित प्रक्रिया से गुजरा होगा. मैं समझता हूं कि यह एक प्रतिज्ञा थी जो सरकार ने अपने घोषणा पत्र में की थी. आप अपने घोषणा पत्र के कार्यान्वयन के लिए ही चुने गए हैं,' नशीद ने उस बिल के बारे में कहा, जिसके कारण उत्तर पूर्व के कई राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं है और इसे अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ भेदभाव के रूप में देखा जा रहा है.

इस संवाददाता से बात करते हुए नशीद ने इस बात पर भी जोर दिया कि क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक तंत्र की बहुत जरूरत है, हालांकि सार्क का भविष्य निराशाजनक है. उन्होंने मालदीव में अगले सार्क शिखर सम्मेलन का आयोजन करने का सुझाव दिया. भारत के नेतृत्व में, दक्षिण एशियाई पड़ोसियों ने 2016 में इस्लामाबाद में आयोजित सार्क सम्मेलन का बहिष्कार उरी आतंकी हमलों के मद्देनजर किया था और ये गतिरोध अभी भी जारी है.

'इसे जारी रखना बहुत मुश्किल है. जब तक हमें क्षेत्रीय सहयोग पर एक और व्यवस्था नहीं मिलती है, तब तक सार्क के साथ बने रहना हमारे लिए बहुत मुश्किल होगा. मुझे नहीं लगता कि अगली शिखर बैठक तब तक होगी जब तक सभी सार्क शिखर सम्मेलन मालदीव में नहीं आयोजित होते. ऐसे स्थल को ढूंढना मुश्किल हो रहा है जहां हर देश का नेता जाने के लिए सहज हो. मुझे लगता है कि इसमें कोई भी प्रगति हो रही है और इसपर सार्क को गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए, इसे कार्ययोजना में लाएं और देखें कि इसके बारे में क्या किया जा सकता है,' नशीद ने कहा.

नई दिल्ली : द्वीप राष्ट्र मालदीव में पूर्व राष्ट्रपति के प्रति तनाव फिर से बढ़ता जा रहा है और अब चीन पर मजलिस (संसद) के अध्यक्ष मोहम्मद नशीद के भाषण ने इस आग को और ज्यादा हवा दे दी है. राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह और उनके विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के विपरीत, जो इस परेशानी से बचने के लिए बीजिंग पर सतर्क बयान दे रहे हैं, नशीद ने शुक्रवार को सावधानी बरते बगैर चीन द्वारा लगातार भूमि हड़पने की तुलना औपनिवेशिक ईस्ट इंडिया कंपनी से कर दी.

मालदीव के प्रमुख नेता, जो कई वर्षों तक निर्वासन में रहने के लिए मजबूर थे और 2018 का चुनाव नहीं लड़ सके, जिसमें उनकी पार्टी एमडीपी ने सोलिह के साथ विपक्षी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में आश्चर्यजनक जीत हासिल की, वे प्रवक्ता का प्रभार संभालने के बाद अपनी पहली यात्रा पर भारत आए थे. प्रधानमंत्री मोदी और अन्य नेताओं के साथ बैठकों के बाद मीडिया से बात करते हुए, नशीद ने कहा कि चीन अपने ऋण या विकास सहायता को जानबूझकर छोटे राष्ट्रों को कर्ज में फंसाने के लिए तैयार करता है.

उन्होंने आग्रह किया कि चीन को उन ऋणों का पुनर्गठन करना चाहिए जो हिंद महासागर पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लेकिन छोटे भू-भाग वाले देशों पर बकाया हैं. 'चीन ने ईस्ट इंडिया कंपनी से अधिक जमीन हड़प ली है… उन्होंने हमें विकास करने के लिए सहायता नहीं दी है. यह कर्ज एक जाल है. हमें अब समझौते कर लेने चाहिए. हम उसे रोक नहीं सकते हमें पैसों का भुगतान करना ही होगा. लेकिन चीन सरकार को कर्ज का पुनर्गठन करना चाहिए.' नशीद ने कहा.

मोहम्मद नशीद के साथ खास बातचीत

नशीद ने कहा कि द्वीप राष्ट्र जो पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर है, तानाशाह राष्ट्रपति यामीन के पिछले शासन में बीजिंग द्वारा निर्मित पुलों और सड़कों सहित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए चीन का लगभग 3.5 बिलियन अमरीकी डालर का बकाया है. 'ऋण वापस करना असंभव है. पैसा हमारे पास कभी आया ही नहीं. लेकिन हमारे पास भुगतान करने के लिए एक बड़ा ऋण है और हम इसका भुगतान करेंगे. कई राजनेता (मालदीव में) इसके लिए भुगतान नहीं करते हैं,' उन्होंने कहा.

पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पूर्व राष्ट्रपति जिन्होंने अपने निष्कासन, तख्तापलट और निर्वासन को अंतरराष्ट्रीय अदालत में चुनौती दी थी, उन्होंने आगाह किया कि अगले कुछ वर्षों में यदि चीन कर्ज के जाल फैलाने की नीति में सुधार नहीं करता है, तो मालदीव इसे मानवाधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता तक खींचने पर विचार कर सकता है. उन्होंने यामीन शासन द्वारा हस्ताक्षरित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को 2018 में किसी भी विरोध की अनुपस्थिति में मजलिस के माध्यम से बुलडोजर के रूप में बुलाया और इसे 'मृत' कहा.

नशीद ने कहा, 'एफटीए मर चुका है और इसे अब संसद की मंजूरी की आवश्यकता है और इसे मंजूरी नहीं दी जाएगी ... चीन ने हमें साम्राज्यवाद के रूप में, उपनिवेशवाद के रूप में और भूमि-अधिग्रहण के रूप में देखा.'

यह पूछे जाने पर कि क्या नशीद के चीन पर निशाना साधने और उनके राष्ट्रपति की नई दिल्ली से लेकर बीजिंग तक की ख़ामोशी में कोई अंतर्विरोध है तो नशीद ने इसे 'आंतरिक विरोधाभास' कहते हुए कहा कि वे इससे 'निराश नहीं' हैं और देश को पहले भी चलाने के उनके अनुभव से वे समझते हैं कि किसी अभियान संबंधी बयानबाजी की तुलना में चीजें 'रियलपोलिटिक' यानि व्यावहारिक राजनीति में अलग तरह से चलती हैं.

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी मुलाकात में पहले नशीद ने भारत से 1 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन के तहत मालदीव में शुरू की गई 'फास्ट ट्रैक' विकास परियोजनाओं का अनुरोध किया था. भारत में अपने संसदीय प्रतिनिधिमंडल सहित विचार-विमर्श में, नशीद ने मालदीव के समुद्र में अल-कायदा द्वारा कट्टरपंथी इस्लामवाद और इस्लामिक स्टेट की संभावना तलाशने जैसी चुनौतियों पर भी चिंता जताई. पिछले कुछ वर्षों में मालदीव के कुछ 250 लोगों का आईएस के लड़ाकों के रूप में शामिल होने का अनुमान है. विवादित उपदेशक जाकिर नाइक को आश्रय प्रदान करने वाले मुस्लिम बहुसंख्यक देश मलेशिया के बारे में पूछे जाने पर, नशीद ने चिंता व्यक्त की और कहा कि भारत द्वारा वांछित टेलीवेंजलिस्ट को मालदीव में प्रवेश से वंचित कर दिया गया है.

ईटीवी भारत को दिए अपने विशेष बयान में, नशीद ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर भारत सरकार की स्थिति का भी बचाव किया. 'यह भारतीय राजनीति का आंतरिक मुद्दा है. इसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है. हमें भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा है. जब आपकी संसद कुछ करती है तो हमारा मानना है कि यह एक उचित प्रक्रिया से गुजरा होगा. मैं समझता हूं कि यह एक प्रतिज्ञा थी जो सरकार ने अपने घोषणा पत्र में की थी. आप अपने घोषणा पत्र के कार्यान्वयन के लिए ही चुने गए हैं,' नशीद ने उस बिल के बारे में कहा, जिसके कारण उत्तर पूर्व के कई राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं है और इसे अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ भेदभाव के रूप में देखा जा रहा है.

इस संवाददाता से बात करते हुए नशीद ने इस बात पर भी जोर दिया कि क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक तंत्र की बहुत जरूरत है, हालांकि सार्क का भविष्य निराशाजनक है. उन्होंने मालदीव में अगले सार्क शिखर सम्मेलन का आयोजन करने का सुझाव दिया. भारत के नेतृत्व में, दक्षिण एशियाई पड़ोसियों ने 2016 में इस्लामाबाद में आयोजित सार्क सम्मेलन का बहिष्कार उरी आतंकी हमलों के मद्देनजर किया था और ये गतिरोध अभी भी जारी है.

'इसे जारी रखना बहुत मुश्किल है. जब तक हमें क्षेत्रीय सहयोग पर एक और व्यवस्था नहीं मिलती है, तब तक सार्क के साथ बने रहना हमारे लिए बहुत मुश्किल होगा. मुझे नहीं लगता कि अगली शिखर बैठक तब तक होगी जब तक सभी सार्क शिखर सम्मेलन मालदीव में नहीं आयोजित होते. ऐसे स्थल को ढूंढना मुश्किल हो रहा है जहां हर देश का नेता जाने के लिए सहज हो. मुझे लगता है कि इसमें कोई भी प्रगति हो रही है और इसपर सार्क को गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए, इसे कार्ययोजना में लाएं और देखें कि इसके बारे में क्या किया जा सकता है,' नशीद ने कहा.

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