इस्लामाबाद : तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के प्रतिनिधियों के बीच यह पहली सीधी वार्ता है. वार्ता में राजनेताओं के बीच कई मुद्दों पर चर्चा हो रही है. यह चर्चा दोनों के बीच सालों से चल रहे युद्ध को खत्म करने और शांति स्थापित करने का मौका देगी.
29 फरवरी को जब अमेरिका ने तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे तब अमेरिका को उम्मीद थी की दो सप्ताह के भीतर वार्ता शुरू हो जाएगी. समझौते ने प्रत्यक्ष अंतर-अफगान वार्ता का आह्वान किया, लेकिन दोनों पक्षों को बातचीत से पहले विश्वास का संकेत देने के लिए दोनों तरफ के कैदियों को रिहा करने की आवश्यकता थी.
अफगान सरकार, जो पिछले सितंबर में हुए एक विवादित राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक संकट से घीरी हुई थी, को पांच हजार तालिबानी कैदियों को मुक्त करने के लिए कहा गया था, जिसे सरकार ने मान लिया.
अमेरिकी शांति दूत जल्माय खालीलजाद, जिन्होंने लगभग डेढ़ साल तक शांति समझौते पर बातचीत की, ने इस बातचीत को शांति के लिए एक ऐतिहासिक अवसर बतया जो अफगानिस्तान के हित में होगा. साथ ही यह वैश्विक सुरक्षा में योगदान देगा.
दोनों पक्षों के बीत जैसे ही बातचीत शुरू होती है, वैसे ही दोनों को इसग करने वाले कई मुद्दे सामने आ जाते हैं. दोनों के बीच अविश्वास गहरा हो जाता है और शांति की ओर आगे बढ़ने के तरीके अनिश्चितता से भर जाते हैं.
इन मुद्दों पर होगी चर्चा :-
स्थायी संघर्ष विराम
वार्ता का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा स्थायी संघर्ष विराम है. अफगान सरकार इसको लेकर अथक प्रयास कर रही है. तालिबान भी इस बात को दोहराता आया है कि वार्ता का पहला मुद्दा यही होगा. हालांकि हज़ारों सशस्त्र तालिबान लड़ाकों और सरकार के प्रति प्रतिबद्ध सेना के साथ क्या किया जाए यह एक बाधा है.
महिला अधिकार
अधिकारों का संरक्षण विशेषकर महिलाओं के अधिकार का एजेंडा भी महत्वपूर्ण होगा. अफगानिस्तान सरकार रूढ़िवादी है जिसने पिछले 19 सालों में महिला अधिकार विधेयक पारित नहीं किया है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नजर इस मुद्दे पर है, जोकि महिलाओं को उनका हक दिलाने में प्रेरक साबित हो सकती है.
तालिबान पहले ही महिलाओं और लड़कियों के स्कूल जाने, काम करने को लेकर हामी भर चुका है. हालांकि, वे कहते हैं कि महिलाएं राजनीति में आ सकती है, वकील बन सकती हैं, न्यायाधीश बन सकती हैं लेकिन एक महिला, राष्ट्रपति या सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश नहीं हो सकती है. हालांकि अफगानिस्तान की मानवाधिकार आयोग की पूर्व प्रमुख सिमा समर इससे सहमत नहीं हैं.
संवैधानिक परिवर्तन
वार्ता में संवैधानिक परिवर्तन भी अधिक होने की उम्मीद है और इसमें कई अफगानी नेताओं के दिमाग में तालिबान के इस्लामिक नियमों की व्याख्या होगी. इसमें देश के नाम पर निर्णय लेना भी शामिल हो सकता है जैसे देश का क्या नाम रखा जाए- इस्लामिक रिपब्लिक या इस्लामिक अमीरात?
शांति वार्ता
बैठक में तालिबान की ओर से 20 सदस्यीय वार्ता दल उपस्थित होगा. इसमें लिडरशिप काउंसिल के13 सदस्य शामिल हैं. इसका नेतृत्व तालिबान के मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हकीम कर रहे हैं, जिनकी नियुक्ति पिछले सप्ताहा ही हुई है. उन्होंने शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई की जगह ली, जो अब तालिबान टीम के उप प्रमुख हैं.
तालिबान प्रमुख मौलवी हैबतुल्लाह अखुनदजादा ने अगस्त में वार्ता समिति में फेरबदल किया और अफगानिस्तान के पड़ोसी पाकिस्तान के करीबी माने जाने वाले प्रमुख वार्ताकार मौलवी अमीर खान मुत्ताकी को हटा दिया.
अमेरिकियों के साथ शांति समझौते पर बातचीत करने वाले और आंदोलन के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल घानी बरादर कतर की राजधानी दोहा में संगठन के प्रमुख बन गए हैं.
अफगान सरकार के वार्ता दल का नेतृत्व मोहम्मद मामून स्टानिकजई कर रहे हैं. वह अफगान खुफिया विभाग का पूर्व प्रमुख है, जिन्हें आतंकवाद विरोधी खुफिया इकाई द्वारा नागरिक मृत्यु में फंसाए जाने के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था.
निर्णय लेने की वास्तविक शक्ति हाई काउंसिल फॉर नेशनल रीकंसीलिएशन का नेतृत्व करने वाले अब्दुल्ला अब्दुल्ला के पास होगी. अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली परिषद किसी भी समझौते पर पहुंचने से पहले कानूनी, धार्मिक और संवैधानिक मुद्दों पर विशेषज्ञों की राय लेगी.
आगे आने वाली चिंताएं
अफगान पर्यवेक्षकों और विश्लेषकों ने आशंका व्यक्त की है कि असंतुष्ट पूर्व तालिबान लड़ाके अन्य आतंकवादी समूहों में शामिल हो सकते हैं, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट समूह के सहयोगी बन सकते हैं.
कई तालिबान लड़ाके पहले ही कट्टरपंथी सुन्नी मुस्लिम समूह से जुड़ चुके हैं. शांति वार्ता में भाग लेने वाले नेताओं ने तालिबानी लड़ाकों को गुमराह कर रखा है. इसके चलते तालिबान के कई लड़ाकों का मानना है कि सैन्य रूप से जीत सकते हैं क्योंकि देश का लगभग 50% हिस्सा पहले से ही उनके नियंत्रण में है.
वाशिंगटन के वॉचडॉग स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगान रिकंस्ट्रक्शन ने चिंता व्यक्त की है कि अपने घरों को लौटते तालिबान लड़ाकों को भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा निशाना बनाया जा सकता है. उन्हें अधिकारियों द्वारा धमकी भी दी जा सकती है.
भारत से अच्छी मित्रता
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल किसी भी हाल में भारत के खिलाफ नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने अफगानिस्तान में अरसे से चली आ रही शांति की कोशिशों को देखते हुए फौरन संघर्षविराम की आवश्यकता का समर्थन किया.
उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान के विकास में भारत बड़ा भागीदार रहा है. भारत ने हाल के बरसों में अफगानिस्तान में लाखों टन खाद्यान्न की आपूर्ति की है. भारत ने अफगानी नागरिकों की यात्रा को बढ़ावा दिया है, जो इलाज के लिए भारत आते रहे हैं. ऐसे ही उदाहरणों से साबित होता है कि हम अफगानिस्तान की स्थिरता, समृद्धि और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने दोनों पक्षों से कहा कि महिलाओं, अल्पसंख्यकों और असहायों के हितों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए. जयशंकर ने कहा शांति प्रक्रिया अफगान के नेतृत्व वाली, अफगान के स्वामित्व वाली और अफगान नियंत्रित होनी चाहिए, जिसमें राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना, मानव अधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देना, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और कमजोर को आगे बढ़ाना, प्रभावी रूप से देश भर में हिंसा मुक्त करना शामिल है.
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत की मित्रता 'मजबूत और अडिग' है. हम हमेशा अच्छे पड़ोसी रहे हैं और हमेशा रहेंगे.
क्या कहता है पाकिस्तान
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक वीडियो लिंक के माध्यम से तालिबान अफगान वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि अफगानिस्तान के नेताओं को रचनात्मक रूप से एक साथ काम करने और अपने देश में वर्षों से चल रहे संघर्ष को खत्म करने के लिए एक व्यापक, समावेशी और राजनीतिक समझौते को सुरक्षित करने का अवसर मिल है.
कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में हिंसा को कम करने के लिए बातचीत की है और हर संभव प्रयास करते हुए अफगानिस्तान का साथ दिया है. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सभी पक्ष अपनी-अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करेंगे, सभी चुनौतियों और असफलताओं का सामना करेंगे और एक सकारात्मक परिणाम पर पहुंचेगे.