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आज के दुश्मन इजराइल और ईरान में कभी थी गहरी दोस्ती

हाल ही में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए ईरानी सेना के शीर्ष कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के पीछे इजराइल का हाथ होने की खबरें सामने आने के बाद ईरान और इजराइल के बीच दशकों से जारी तल्खी और अधिक बढ़ गई है.दोनों देशों के बीच दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन शायद यह सच्चाई आपको न पता हो कि इजराइल व ईरान कभी एक दूसरे के गहरे दोस्त हुआ करते थे.

खुमैनी और नेतन्याहू
खुमैनी और नेतन्याहू
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Published : Jan 18, 2020, 9:46 PM IST

Updated : Jan 18, 2020, 9:55 PM IST

नई दिल्ली : हाल ही में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए ईरानी सेना के शीर्ष कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के पीछे इजराइल का हाथ होने की खबरें सामने आई हैं. इसके बाद दशकों से ईरान और इजराइल के बीच जारी दुश्मनी एक बाक फिर पूरी दुनिया के सामने आ गई है.

दोनों देशों के बीच दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन शायद यह सच्चाई आपको न पता हो कि इजराइल व ईरान कभी एक दूसरे के गहरे दोस्त हुआ करते थे.

बात साल 1948 की है, जब इजराइल संयुक्त राष्ट्र में अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा था. उस समय ईरान ने इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता दी थी.

इतना ही नहीं तेहरान ने तेल अवीव को सैन्य, तकनीकी, कृषि और पेट्रोलियम मुद्दों पर घनिष्ठ सहयोग के आधार पर एक अनौपचारिक साझेदारी से जोड़ा.

इंफोग्राफिक
इंफोग्राफिक

दोनों देशों के बीच करीब तीन दशकों तक घनिष्ठ संबंध बने रहे, लेकिन 1979 में ईरान में आई इस्लामिक क्रांति ने दोनों दोशों की मित्रता को कट्टर दुश्मनी में बदल दिया.

दोनों देशों के बीच दुश्मनी 1979 में ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी के उखाड़ फेंकने और अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी द्वारा एक शिया लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना से शुरू हुई.

अपने पहले भाषणों में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता, खोमैनी ने ईरान के दो मुख्य शत्रुओं -अमेरिका को महान शैतान और इस क्षेत्र के मुख्य सहयोगी इजराइल को छोटा शैतान घोषित किया.

खास बात यह है कि दोनों देशों के बीच न तो कोई सीमा विवाद है और न ही रणनीतिक दुश्मनी, फिर भी दोनों देश एक दूसरे के दुश्मन हैं.

इसके अलावा मुस्लिम दुनिया में इस्लामी क्रांति के प्रभाव को बढ़ाने और शिया धर्मगुरुओं की ताकत को वैध बनाने के लिए, ईरानी नेता, कई जायोनी (यहूदी) विरोधी कार्यों के लेखकों ने ईरान को फिलिस्तीनी के रक्षक के रूप में पेश किया.

साथ ही ईरान ने इजराइल से 75 मिलियन डॉलर के हथियार खरीदे और इन हथियारों से 1982 में खुमैनी ने लेबनान में एक इस्लामिक मिलिशिया, हेब्बुल्लाह के निर्माण किया.

इसके बाद 1990 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर इजराइल का फोकस शुरू किया. 90 के दशक के मध्य में, इजराइल ईरानी नागरिक परमाणु कार्यक्रम के रूसी मदद से फिर से शुरू होने के बारे में चिंतित था.

हालांकि ईरान के इनकार के बावजूद, इजराइल ईरान पर परमाणु हथियार बनाने की मांग पर संदेह जताता रहा.

1994 में दोनों देशों के बीच उस समय तनाव और बढ़ गया, जब इजराइल ने ईरान के समर्थन वाले हिजबुल्लाह पर ब्यूनस आयर्स में एक यहूदी केंद्र पर बमबारी का आरोप लगाया. इस हमले में 85 लोग मारे गए थे.

पढ़ें- ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता को दी नसीहत, बोले- 'संभलकर बात करें'

दिसंबर 2000 में अयातुल्ला अली खोमैनी ने इजराइल को एक कैंसर ट्यूमर कहा, जिसे इस क्षेत्र से हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने साथ ही इजराइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे

विवाद को लेकर फिलिस्तीन का समर्थन किया और कहा कि फिलिस्तीन फिलिस्तीनियों का है, और फिलिस्तीन का भाग्य भी फिलिस्तीनी लोगों द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए.

2005 में ईरान ने इजराइल को धमकी देते हुए कहा कि वह इजराइल को दुनिया के नक्शे से मिटा देगा .

2006 में जब लेबनान में हिजबुल्लाह के खिलाफ इजराइल की सेना ने युद्ध छेड़ा तो यहूदी राज्य ने ईरान पर हिजबुल्लाह की मदद करने और इस्लामिक गणराज्य पर हसन नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह को हथियार की आपूर्ति करने का आरोप लगाया.

कई अवसरों पर, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सुझाव दिया कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने जिम्मेदारी नहीं ली तो इजराइल ईरान पर हमला कर सकता है.

30 जनवरी 2013 को, इजराइली विमानों ने कथित तौर पर हिजबुल्लाह को ईरानी हथियारों का परिवहन करने वाले एक सीरियाई काफिले को मार गिराया

5 मार्च 2014 को, इजराइली नौसेना ने क्लोस-सी कार्गो जहाज को रोक दिया. इजराइल ने कहा कि ईरान गाजा में सीरिया में निर्मित एम -302 रॉकेट सहित लंबी दूरी के दर्जनों रॉकेटों की तस्करी करने के लिए जहाज का उपयोग कर रहा था.

2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) पर अमेरिका व ईरान ने हस्ताक्षर किए, जिसे ईरान परमाणु समझौते के रूप में जाना जाता है. लेकिन नेतन्याहू ने उस समझौते को रद कर दिया.

नई दिल्ली : हाल ही में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए ईरानी सेना के शीर्ष कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के पीछे इजराइल का हाथ होने की खबरें सामने आई हैं. इसके बाद दशकों से ईरान और इजराइल के बीच जारी दुश्मनी एक बाक फिर पूरी दुनिया के सामने आ गई है.

दोनों देशों के बीच दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन शायद यह सच्चाई आपको न पता हो कि इजराइल व ईरान कभी एक दूसरे के गहरे दोस्त हुआ करते थे.

बात साल 1948 की है, जब इजराइल संयुक्त राष्ट्र में अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा था. उस समय ईरान ने इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता दी थी.

इतना ही नहीं तेहरान ने तेल अवीव को सैन्य, तकनीकी, कृषि और पेट्रोलियम मुद्दों पर घनिष्ठ सहयोग के आधार पर एक अनौपचारिक साझेदारी से जोड़ा.

इंफोग्राफिक
इंफोग्राफिक

दोनों देशों के बीच करीब तीन दशकों तक घनिष्ठ संबंध बने रहे, लेकिन 1979 में ईरान में आई इस्लामिक क्रांति ने दोनों दोशों की मित्रता को कट्टर दुश्मनी में बदल दिया.

दोनों देशों के बीच दुश्मनी 1979 में ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी के उखाड़ फेंकने और अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी द्वारा एक शिया लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना से शुरू हुई.

अपने पहले भाषणों में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता, खोमैनी ने ईरान के दो मुख्य शत्रुओं -अमेरिका को महान शैतान और इस क्षेत्र के मुख्य सहयोगी इजराइल को छोटा शैतान घोषित किया.

खास बात यह है कि दोनों देशों के बीच न तो कोई सीमा विवाद है और न ही रणनीतिक दुश्मनी, फिर भी दोनों देश एक दूसरे के दुश्मन हैं.

इसके अलावा मुस्लिम दुनिया में इस्लामी क्रांति के प्रभाव को बढ़ाने और शिया धर्मगुरुओं की ताकत को वैध बनाने के लिए, ईरानी नेता, कई जायोनी (यहूदी) विरोधी कार्यों के लेखकों ने ईरान को फिलिस्तीनी के रक्षक के रूप में पेश किया.

साथ ही ईरान ने इजराइल से 75 मिलियन डॉलर के हथियार खरीदे और इन हथियारों से 1982 में खुमैनी ने लेबनान में एक इस्लामिक मिलिशिया, हेब्बुल्लाह के निर्माण किया.

इसके बाद 1990 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर इजराइल का फोकस शुरू किया. 90 के दशक के मध्य में, इजराइल ईरानी नागरिक परमाणु कार्यक्रम के रूसी मदद से फिर से शुरू होने के बारे में चिंतित था.

हालांकि ईरान के इनकार के बावजूद, इजराइल ईरान पर परमाणु हथियार बनाने की मांग पर संदेह जताता रहा.

1994 में दोनों देशों के बीच उस समय तनाव और बढ़ गया, जब इजराइल ने ईरान के समर्थन वाले हिजबुल्लाह पर ब्यूनस आयर्स में एक यहूदी केंद्र पर बमबारी का आरोप लगाया. इस हमले में 85 लोग मारे गए थे.

पढ़ें- ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता को दी नसीहत, बोले- 'संभलकर बात करें'

दिसंबर 2000 में अयातुल्ला अली खोमैनी ने इजराइल को एक कैंसर ट्यूमर कहा, जिसे इस क्षेत्र से हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने साथ ही इजराइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे

विवाद को लेकर फिलिस्तीन का समर्थन किया और कहा कि फिलिस्तीन फिलिस्तीनियों का है, और फिलिस्तीन का भाग्य भी फिलिस्तीनी लोगों द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए.

2005 में ईरान ने इजराइल को धमकी देते हुए कहा कि वह इजराइल को दुनिया के नक्शे से मिटा देगा .

2006 में जब लेबनान में हिजबुल्लाह के खिलाफ इजराइल की सेना ने युद्ध छेड़ा तो यहूदी राज्य ने ईरान पर हिजबुल्लाह की मदद करने और इस्लामिक गणराज्य पर हसन नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह को हथियार की आपूर्ति करने का आरोप लगाया.

कई अवसरों पर, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सुझाव दिया कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने जिम्मेदारी नहीं ली तो इजराइल ईरान पर हमला कर सकता है.

30 जनवरी 2013 को, इजराइली विमानों ने कथित तौर पर हिजबुल्लाह को ईरानी हथियारों का परिवहन करने वाले एक सीरियाई काफिले को मार गिराया

5 मार्च 2014 को, इजराइली नौसेना ने क्लोस-सी कार्गो जहाज को रोक दिया. इजराइल ने कहा कि ईरान गाजा में सीरिया में निर्मित एम -302 रॉकेट सहित लंबी दूरी के दर्जनों रॉकेटों की तस्करी करने के लिए जहाज का उपयोग कर रहा था.

2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) पर अमेरिका व ईरान ने हस्ताक्षर किए, जिसे ईरान परमाणु समझौते के रूप में जाना जाता है. लेकिन नेतन्याहू ने उस समझौते को रद कर दिया.

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Last Updated : Jan 18, 2020, 9:55 PM IST
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