हैदराबाद : इजराइल-फलस्तीन के बीच दशकों से जारी विवाद को हल करने के मकसद से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पश्चिम एशिया योजना का खाका पेश करते हुए हाल ही में कहा था कि 'यरुशलम इजराइल की अविभाजित राजधानी' रहेगी. उन्होंने पूर्वी यरुशलम में फलस्तीन की राजधानी बनाए जाने का प्रस्ताव पेश किया. हालांकि फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इसे सिरे से खारिज कर दिया.
वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब इसराइल और फलस्तीन के बीच विवाद को सुलाझाने की कोशिश की गई हो. इससे पहले भी कई बार इस विवाद को निबटाने के प्रयत्न किए गए. दोनों देशों के बीच जारी संघर्ष का इतिहास करीब एक सदी पुराना है.
दरअसल, 1917 से पहले जब तुर्की में उस्मानिया हुकूमत थी, जो यहूदी और अरब समुदाय पर राज कर रही थी और आज जिसे फलस्तीन कहा जाता है, वह यहूदियों के लिए पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है.
नवंबर 1917 में ब्रिटेन ने तुर्की के साथ प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फलस्तीन में यहूदी देश बनाने का समर्थन करते हुए बालफोर घोषणा की. इसमें गैर यहूदियों के साथ पक्षपात किया गया था. यहीं से इजराइल व फलस्तीन के बीच विवाद शुरू हुआ.
इसके बाद जून 1967 में मध्य पूर्व में अरब और इजराइल के बीच युद्ध हुआ और इजराइल ने पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया.
युद्ध के बाद अरब देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 242 में इजराइल से संघर्ष में कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस लेने का आह्वान किया.
इसके बाद मिस्त्र के राष्ट्रपति अनवर सादात और इजराइल के प्रधानमंत्री मेनाचेम बेगिन द्वारा 17 सितंबर 1978 को कैंप डेविड समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. यह समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की देखरेख में हुआ. हालांकि यह समझौता फलस्तीनियों की भागीदारी के बिना लिखा गया और संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसकी निंदा की गई.
आखिरकार 1988 में PLO (फलस्तीन मुक्ति संगठन) यासर अराफ़ात वेस्ट बैंक और गाजा के फलस्तीनी दावों पर केंद्रित समाधान पर विचार करने के लिए राजी हुए. इस दौरान जॉर्डन ने वैस्ट बैंक पर किया गया अपना दावा PLO को दिया.
1991 में खाड़ी युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने मैड्रिड सम्मेलन में अरब-इजराइल (इजराइल-फिलिस्तीनी सहित) शांति वार्ता शुरू करने में मदद की.
पढ़ें - मध्य-पूर्व योजना पर ट्रंप का नक्शा एक दुस्वप्न : ईरान
सितंबर1993 में इजराइल-फिलिस्तीनियों ने ओस्लो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए और शांति स्थापित करने के लिए फ्रेमवर्क तैयार किया गया. इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों - 242 और 338 पर आधारित एक शांति संधि को प्राप्त करना था और फलस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को पूरा करना था.
1994 में फलस्तीनी प्राधिकरण (PA) गाजा-जेरिको समझौते के माध्यम से बनाया गया, जो इजराइल द्वारा हस्ताक्षरित था.
पढ़ें- इजरायल-फिलिस्तीन में शांति को लेकर प्रतिबद्ध है संयुक्त राष्ट्र : गुतारेस
2000 के कैंप डेविड शिखर सम्मेलन में इजराइल-पीएलओ के अंतिम समझौते तक पहुंचने में विफल रहा और यहीं से दूसरा फलस्तीनी इंतिफादा शुरू होता है. इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इजराइल-पीएलओ को अंतिम रूपरेखा देने वाले मापदंडों को जारी किया.
2002 में सऊदी अरब ने अरब शांति-पहल का प्रस्ताव रखा. इसके साथ ही अरब लीग ने जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा दो राज्यों की नीति मान ली.
2007-2008 बुश प्रशासन इजराइल और पीएलओ के बीच अन्नापोलिस वार्ता शुरू की, लेकिन कोई समझौता नहीं हुआ.
2013-2014 ओबामा प्रशासन ने इजराइल-PLA वार्ता शुरू की, लेकिन इस बार भी कोई समझौता नहीं हुआ.