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दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चीन सरकार की मान्यता जरूरी : तिब्बत पर चीन का श्वेत पत्र - उत्तराधिकारी को चीन सरकार की मान्यता जरूरी

चीन ने कहा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मान्यता उसकी मंजूरी पर ही दी जाएगी. साथ ही उसने दलाई लामा या उनके अनुयायियों द्वारा नामित किसी व्यक्ति को मान्यता देने से इनकार किया है.

दलाई लामा
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Published : May 21, 2021, 4:21 PM IST

बीजिंग : चीन ने शुक्रवार को कहा कि उसकी मंजूरी पर ही मौजूदा दलाई लामा के किसी उत्तराधिकारी को मान्यता दी जाएगी. साथ ही, दलाई लामा या उनके अनुयायियों द्वारा नामित किसी व्यक्ति को मान्यता देने से इनकार किया.

चीनी सरकार द्वारा जारी एक आधिकारिक श्वेत पत्र में दावा किया गया कि किंग राजवंश (1677-1911) के बाद से केंद्र सरकार द्वारा दलाई लामा और अन्य आध्यात्मिक बौद्ध नेताओं को मान्यता दी जाती है.

दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि प्राचीन समय से ही तिब्बत चीन का अविभाज्य हिस्सा है. इसमें कहा गया है, '1793 में गोरखा आक्रमणकारियों के जाने के बाद से किंग सरकार ने तिब्बत में व्यवस्था बहाल की और तिब्बत में बेहतर शासन के लिए अध्यादेश को मंजूर किया.'

पढ़ें - पाकिस्तान और चीन के प्रधानमंत्रियों ने बातचीत की, द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने का संकल्प लिया

दस्तावेज के मुताबिक अध्यादेश में कहा गया कि दलाई लामा और अन्य बौद्ध धर्मगुरु के अवतार के संबंध में प्रक्रिया का पालन करना होता है और चुनिंदा उम्मीदवारों को मान्यता चीन की केंद्रीय सरकार के अधीन है.

तिब्बत में स्थानीय आबादी के आंदोलन पर चीन की कार्रवाई के बाद 14 वें दलाई लामा 1959 में भारत आ गए थे. भारत ने उन्हें राजनीतिक शरण दी थी और निर्वासित तिब्बती सरकार तब से हिमाचल के धर्मशाला में हैं.

दलाई लामा अब 85 साल के हो चुके हैं और उनकी बढ़ती उम्र के कारण पिछले कुछ वर्षों में उनके उत्तराधिकारी का मुद्दा उठने लगा है. यह मुद्दा पिछले कुछ वर्षों में तब और सुर्खियों में आया जब अमेरिका ने अभियान चलाया कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी के संबंध में फैसला करने का अधिकार दलाई लामा और तिब्बत के लोगों के पास होना चाहिए.

बीजिंग : चीन ने शुक्रवार को कहा कि उसकी मंजूरी पर ही मौजूदा दलाई लामा के किसी उत्तराधिकारी को मान्यता दी जाएगी. साथ ही, दलाई लामा या उनके अनुयायियों द्वारा नामित किसी व्यक्ति को मान्यता देने से इनकार किया.

चीनी सरकार द्वारा जारी एक आधिकारिक श्वेत पत्र में दावा किया गया कि किंग राजवंश (1677-1911) के बाद से केंद्र सरकार द्वारा दलाई लामा और अन्य आध्यात्मिक बौद्ध नेताओं को मान्यता दी जाती है.

दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि प्राचीन समय से ही तिब्बत चीन का अविभाज्य हिस्सा है. इसमें कहा गया है, '1793 में गोरखा आक्रमणकारियों के जाने के बाद से किंग सरकार ने तिब्बत में व्यवस्था बहाल की और तिब्बत में बेहतर शासन के लिए अध्यादेश को मंजूर किया.'

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दस्तावेज के मुताबिक अध्यादेश में कहा गया कि दलाई लामा और अन्य बौद्ध धर्मगुरु के अवतार के संबंध में प्रक्रिया का पालन करना होता है और चुनिंदा उम्मीदवारों को मान्यता चीन की केंद्रीय सरकार के अधीन है.

तिब्बत में स्थानीय आबादी के आंदोलन पर चीन की कार्रवाई के बाद 14 वें दलाई लामा 1959 में भारत आ गए थे. भारत ने उन्हें राजनीतिक शरण दी थी और निर्वासित तिब्बती सरकार तब से हिमाचल के धर्मशाला में हैं.

दलाई लामा अब 85 साल के हो चुके हैं और उनकी बढ़ती उम्र के कारण पिछले कुछ वर्षों में उनके उत्तराधिकारी का मुद्दा उठने लगा है. यह मुद्दा पिछले कुछ वर्षों में तब और सुर्खियों में आया जब अमेरिका ने अभियान चलाया कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी के संबंध में फैसला करने का अधिकार दलाई लामा और तिब्बत के लोगों के पास होना चाहिए.

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