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अफगानिस्तान : हिंसा के कारण नागरिकों को शांति प्रक्रिया की उम्मीद कम

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Published : Dec 11, 2020, 6:00 PM IST

काबुल स्थित एक थिंक टैंक द्वारा अफगानों का एक सर्वेक्षण कहता है कि देश की शांति प्रक्रिया के बारे में आशावाद काफी कम हो गया है. पढ़ें विस्तार से...

peace process
शांति प्रक्रिया

काबुल : अफगानिस्तान में हाल के महीनों में बढ़ी हिंसा के कारण अफगान नागरिकों का देश की शांति प्रक्रिया के प्रति उम्मीद काफी हद तक घटी है. 'द इंस्टीट्यूट ऑफ वार एंड पीस स्टडिज' ने शुक्रवार को जारी अपने नए सर्वेक्षण में कहा, 29 सितंबर से 18 अक्टूबर के बीच हुए सर्वे में आशावाद 57 प्रतिशत रह गया है.

उन्होंने कहा, इससे पहले इंस्टीट्यूट ने गर्मियों में किए गए सर्वेक्षण का निष्कर्ष अगस्त में जारी किया था, उस वक्त आशावाद 86 प्रतिशत था.

दोनों पक्षों में बातचीत
अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच कतर में जारी शांति वार्ता में पिछले सप्तह तक गतिरोध की स्थिति बनी हुई थी, उसके बाद मिली सफलता में दोनों पक्षों में बातचीत के नियमों और प्रक्रिया को लेकर सहमति बन गई है, लेकिन सितंबर से शुरू हुई इस शांति वार्ता के बाद से देश में हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं.

तालिबान ने एक ओर जहां अमेरिकी और नाटो बलों पर हमला नहीं करने के अपने वादे को निभाया है, वहीं वह अफगान बलों पर लगातार जानलेवा हमले कर रहा है.

पढ़ें: 2020 में इजरायल से संबंधों को सामान्य करने वाला चौथा राष्ट्र बना मोरक्को

राष्ट्रपति अशरफ गनी ने की आलोचना
काबुल के इस थिंक टैंक ने अपने सर्वे में पाया कि 75.9 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि सरकार और तालिबान के बीच बातचीत में संघर्षविराम समझौता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. वहीं, 71 प्रतिशत लोगों का मानना है कि देश को शांति समझौते के बाद अपनी सेना और सुरक्षा बलों को समाप्त नहीं करना चाहिए. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने हालांकि इस विचार की आलोचना की है.

काबुल : अफगानिस्तान में हाल के महीनों में बढ़ी हिंसा के कारण अफगान नागरिकों का देश की शांति प्रक्रिया के प्रति उम्मीद काफी हद तक घटी है. 'द इंस्टीट्यूट ऑफ वार एंड पीस स्टडिज' ने शुक्रवार को जारी अपने नए सर्वेक्षण में कहा, 29 सितंबर से 18 अक्टूबर के बीच हुए सर्वे में आशावाद 57 प्रतिशत रह गया है.

उन्होंने कहा, इससे पहले इंस्टीट्यूट ने गर्मियों में किए गए सर्वेक्षण का निष्कर्ष अगस्त में जारी किया था, उस वक्त आशावाद 86 प्रतिशत था.

दोनों पक्षों में बातचीत
अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच कतर में जारी शांति वार्ता में पिछले सप्तह तक गतिरोध की स्थिति बनी हुई थी, उसके बाद मिली सफलता में दोनों पक्षों में बातचीत के नियमों और प्रक्रिया को लेकर सहमति बन गई है, लेकिन सितंबर से शुरू हुई इस शांति वार्ता के बाद से देश में हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं.

तालिबान ने एक ओर जहां अमेरिकी और नाटो बलों पर हमला नहीं करने के अपने वादे को निभाया है, वहीं वह अफगान बलों पर लगातार जानलेवा हमले कर रहा है.

पढ़ें: 2020 में इजरायल से संबंधों को सामान्य करने वाला चौथा राष्ट्र बना मोरक्को

राष्ट्रपति अशरफ गनी ने की आलोचना
काबुल के इस थिंक टैंक ने अपने सर्वे में पाया कि 75.9 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि सरकार और तालिबान के बीच बातचीत में संघर्षविराम समझौता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. वहीं, 71 प्रतिशत लोगों का मानना है कि देश को शांति समझौते के बाद अपनी सेना और सुरक्षा बलों को समाप्त नहीं करना चाहिए. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने हालांकि इस विचार की आलोचना की है.

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