दुबई : तालिबान ने दिशा निर्देश जारी किए हैं कि मीडिया इस्लामिक कानूनों के विरोधाभासी कार्यक्रम न दिखाए या राष्ट्रीय हितों को नुकसान न पहुंचाए. इसके बाद टीवी कार्यक्रमों में बदलावों का दौर शुरु हो गया है.
इसके बावजूद अफगानिस्तान के स्वतंत्र समाचार स्टेशन महिला एंकरों को दिखा रहे हैं और इस तालिबान के शासन में मीडिया की आजादी की सीमाओं की परीक्षा ले रहे हैं. तालिबान के आतंकवादियों ने पूर्व में पत्रकारों की हत्या की थी लेकिन अगस्त में सत्ता में आने के बाद से उदार व समावेशी रुख अपनाने का वादा किया है.
तालिबान के नरम रुख अपनाने का पहला संकेत देने की कोशिश करते हुए उसका एक प्रवक्ता काबुल पर कब्जा जमाने के महज दो दिन बाद अप्रत्याशित रूप से एक निजी समाचार चैनल टोलो न्यूज के स्टूडियो पर चला गया था. वहां उसने महिला एंकर बेहिश्ता अर्घान्द को साक्षात्कार दिया था.
एंकर अर्घान्द (22) ने बताया था कि जब उन्होंने तालिबानी प्रवक्ता को स्टूडियो में घुसते देखा तो वह घबरा गई थीं लेकिन उनका बर्ताव और जिस तरीके से उन्होंने सवालों के जवाब दिए उससे वह थोड़ी सहज हुईं. वह उन सैकड़ों पत्रकारों में से एक हैं जो तालिबान के कब्जा जमाने के बाद देश छोड़कर चले गए हैं.
टोलो न्यूज के मालिकाना हक वाले मॉबी समूह के अध्यक्ष और सीईओ साद मोहसेनी ने कहा कि उनका मानना है कि तालिबान मीडिया को इसलिए बर्दाश्त कर रहा है क्योंकि वे मानते हैं कि उन्हें लोगों के दिल जीतने हैं और अपने शासन के प्रति उन्हें विश्वास दिलाना है. उन्होंने दुबई से कहा कि मीडिया उनके लिए महत्वपूर्ण है लेकिन एक या दो महीने में वे मीडिया के साथ क्या करते हैं यह देखना होगा.
अपने समाचार और मनोरंजन कार्यक्रमों के लिए पहचाने जाने वाले टोलो ने संगीत कार्यक्रमों और धारावाहिकों को खुद से हटाने का फैसला किया है. मोहसेनी ने कहा कि हमें नही लगता कि नये शासन को ये स्वीकार्य होंगे. प्रेम-प्रसंग वाले धारावाहिकों के स्थान पर तुर्किश टीवी की एक सीरीज दिखायी गयी है.
तुर्क काल की इस सीरीज में अभिनेत्रियों ने अधिक शालीन ढंग से कपड़े पहने हुए हैं. अफगानिस्तान के सरकारी प्रसारणकर्ता आरटीए ने अगले नोटिस तक महिला प्रस्तोताओं को हटा दिया है. महिला द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्र जेन टीवी ने नए कार्यक्रमों को दिखाना बंद कर दिया है. बहरहाल निजी एरियाना समाचार चैनल ने अपनी महिला प्रस्तोताओं के कार्यक्रमों का प्रसारण जारी रखा है.
इस बीच तालिबान, पत्रकारों को पाकिस्तान से अफगानिस्तान में प्रवेश करने और दिशा निर्देशों के तहत काबुल में मीडिया संगठनों को काम जारी रखने की अनुमति दे रहा है. उन्होंने कहा है कि खबरें इस्लामिक मूल्यों के विरोधाभासी नहीं होनी चाहिए और उसमें राष्ट्रीय हितों को चुनौती नहीं दी जानी चाहिए.
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अफगानिस्तान लंबे समय से पत्रकारों के लिए खतरनाक स्थान रहा है. सीपीजे के अनुसार अफगानिस्तान में 2001 से अब तक 53 पत्रकार मारे गए और उनमें से 33 की मौत तो 2018 से लेकर अब तक हुई. इस साल जुलाई में तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच झड़पों को कवर करते वक्त रॉयटर्स का पुलित्जर पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर मारा गया था.
(पीटीआई-भाषा)