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जुंटा के अंत के एक दशक बाद म्यांमार सेना के हाथों में फिर आया देश का नियंत्रण

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Published : Feb 2, 2021, 11:38 AM IST

Updated : Feb 2, 2021, 12:13 PM IST

सेना ने सोमवार को देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद सेना ने मिंट स्वे को राष्ट्रपति नामित किया. इस तरह जुंटा के अंत के एक दशक बाद म्यांमार की सत्ता की बागडोर एक बार फिर सेना के हाथों में चली गई है.

मिंट स्वे
मिंट स्वे

बैंकॉक : म्यांमार में सोमवार को सैन्य तख्तापलट के बाद सैन्य नेतृत्व द्वारा राष्ट्रपति बनाए गए व्यक्ति को 2007 में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में उसकी भूमिका और ताकतवर सैन्य नेताओं के साथ संबंधों के लिए जाना जाता है.

सेना ने सोमवार को देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद सेना ने मिंट स्वे को राष्ट्रपति नामित किया. इससे पहले वह सेना द्वारा नियुक्त उपराष्ट्रपति थे.

राष्ट्रपति नामित किए जाने के तुरंत बाद मिंट स्वे ने देश के शीर्ष सैन्य कमांडर सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग को सत्ता की कमान सौंप दी.

म्यांमार के 2008 में बने संविधान के तहत, आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति सैन्य कमांडर को सत्ता की कमान सौंप सकता है.

लाइंग (64) 2011 से सैन्य बलों के कमांडर हैं और जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं, यानी यदि जुंटा वादे के अनुसार एक साल में चुनाव करातें हैं, तो उनके असैन्य नेतृत्व की भूमिका संभालने का रास्ता साफ हो जाएगा.

सेना ने यह कहकर तख्तापलट को सही ठहराया है कि सरकार चुनाव में धोखाधड़ी के उसके दावों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है. चुनाव में सेना के समर्थन वाली 'यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डवलपमेंट पार्टी' को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था.

'एशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट' के गेरार्ड मैकार्थी ने कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि इस बात का एहसास हो गया है कि मिन आंग लाइंग सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उन्हें एक बड़ी भूमिका दिए जाने की संभावना है.'

अमेरिका सरकार ने 'गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन' में शामिल होने के कारण लाइंग को 2019 में काली सूची में डाल दिया था. लाइंग ने राखिने क्षेत्र में सुरक्षा अभियानों के दौरान सेना का नेतृत्व किया था.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार जांचकर्ताओं का कहना है कि अभियान के दौरान सेना की कार्रवाई के कारण रोहिंग्या समुदाय के करीब सात लाख लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा था.

स्वे ने 2017 में एक जांच का नेतृत्व किया था, जिसमें सेना पर लगे इन आरोपों को खारिज किया गया था और कहा गया था कि सेना ने 'वैध तरीके' से काम किया. लाइंग म्यांमार के दर्जन से अधिक उन अधिकारियों में शामिल हैं, जिन्हें 2008 में फेसबुक से हटा दिया गया था. उनका ट्विटर अकाउंट भी बंद कर दिया गया था.

पढ़ें - म्यांमार तख्तापलट : आंग सान सू का शिमला से रहा गहरा नाता, यहीं लिखी थी चर्चित पुस्तक

स्वे (69) पूर्व जुंटा नेता थान श्वे के निकट सहयोगी हैं. श्वे ने 2011 में अर्द्ध-सैन्य सरकार की शुरुआत के लिए सत्ता हस्तांतरण की अनुमति दी थी. इस सत्ता हस्तांतरण के बाद म्यांमार पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हट गए थे, जिनके कारण यह देश वर्षों तक अलग-थलग रहा था और विदेशी निवेश से वंचित रहा था.

उल्लेखनीय है कि म्यांमार में सेना ने सोमवार को तख्तापलट कर दिया और शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया. पांच दशकों तक सैन्य शासन में रहे इस देश में सैन्य तख्तापलट की दुनिया के विभिन्न देशों और संगठनों ने निंदा की है और हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने की मांग की है.

बैंकॉक : म्यांमार में सोमवार को सैन्य तख्तापलट के बाद सैन्य नेतृत्व द्वारा राष्ट्रपति बनाए गए व्यक्ति को 2007 में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में उसकी भूमिका और ताकतवर सैन्य नेताओं के साथ संबंधों के लिए जाना जाता है.

सेना ने सोमवार को देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद सेना ने मिंट स्वे को राष्ट्रपति नामित किया. इससे पहले वह सेना द्वारा नियुक्त उपराष्ट्रपति थे.

राष्ट्रपति नामित किए जाने के तुरंत बाद मिंट स्वे ने देश के शीर्ष सैन्य कमांडर सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग को सत्ता की कमान सौंप दी.

म्यांमार के 2008 में बने संविधान के तहत, आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति सैन्य कमांडर को सत्ता की कमान सौंप सकता है.

लाइंग (64) 2011 से सैन्य बलों के कमांडर हैं और जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं, यानी यदि जुंटा वादे के अनुसार एक साल में चुनाव करातें हैं, तो उनके असैन्य नेतृत्व की भूमिका संभालने का रास्ता साफ हो जाएगा.

सेना ने यह कहकर तख्तापलट को सही ठहराया है कि सरकार चुनाव में धोखाधड़ी के उसके दावों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है. चुनाव में सेना के समर्थन वाली 'यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डवलपमेंट पार्टी' को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था.

'एशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट' के गेरार्ड मैकार्थी ने कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि इस बात का एहसास हो गया है कि मिन आंग लाइंग सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उन्हें एक बड़ी भूमिका दिए जाने की संभावना है.'

अमेरिका सरकार ने 'गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन' में शामिल होने के कारण लाइंग को 2019 में काली सूची में डाल दिया था. लाइंग ने राखिने क्षेत्र में सुरक्षा अभियानों के दौरान सेना का नेतृत्व किया था.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार जांचकर्ताओं का कहना है कि अभियान के दौरान सेना की कार्रवाई के कारण रोहिंग्या समुदाय के करीब सात लाख लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा था.

स्वे ने 2017 में एक जांच का नेतृत्व किया था, जिसमें सेना पर लगे इन आरोपों को खारिज किया गया था और कहा गया था कि सेना ने 'वैध तरीके' से काम किया. लाइंग म्यांमार के दर्जन से अधिक उन अधिकारियों में शामिल हैं, जिन्हें 2008 में फेसबुक से हटा दिया गया था. उनका ट्विटर अकाउंट भी बंद कर दिया गया था.

पढ़ें - म्यांमार तख्तापलट : आंग सान सू का शिमला से रहा गहरा नाता, यहीं लिखी थी चर्चित पुस्तक

स्वे (69) पूर्व जुंटा नेता थान श्वे के निकट सहयोगी हैं. श्वे ने 2011 में अर्द्ध-सैन्य सरकार की शुरुआत के लिए सत्ता हस्तांतरण की अनुमति दी थी. इस सत्ता हस्तांतरण के बाद म्यांमार पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हट गए थे, जिनके कारण यह देश वर्षों तक अलग-थलग रहा था और विदेशी निवेश से वंचित रहा था.

उल्लेखनीय है कि म्यांमार में सेना ने सोमवार को तख्तापलट कर दिया और शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया. पांच दशकों तक सैन्य शासन में रहे इस देश में सैन्य तख्तापलट की दुनिया के विभिन्न देशों और संगठनों ने निंदा की है और हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने की मांग की है.

Last Updated : Feb 2, 2021, 12:13 PM IST
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