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आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका ने खर्च किए 8 ट्रिलियन डॉलर, भारतीय जीडीपी का तीन गुना

9/11 की आतंकी घटना के बाद लगातार दो दशकों तक आतंक के खिलाफ युद्ध में अमेरिका ने करीब 8 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए हैं. यह भारत की वर्तमान जीडीपी से करीब तीन गुना अधिक है. इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है? पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट.

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Published : Sep 3, 2021, 3:47 PM IST

नई दिल्ली : पिछले 20 वर्षों में आतंक के खिलाफ लड़ाई में अमेरिकी खजाने को करीब 8 ट्रिलियन डॉलर की चपत लगी है. यह भारी-भरकम धनराशि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया, इराक और अफ्रीका सहित दुनिया भर के विभिन्न देशों में आतंक के खिलाफ अमेरिकी मुहिम में खर्च हुआ है. ब्राउन यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है.

भारत के हिसाब से देखें तो अमेरिका का खर्च लगभग 58400000 करोड़ रुपये या भारत की मौजूदा जीडीपी का लगभग तीन गुना है. यह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के 16 अगस्त 2021 को दिए बयान से कहीं अधिक है, जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से जल्दबाजी में निकलना शुरु कर चुकी थी.

उन्होंने कहा था कि हमने एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक खर्च किए हैं. जाहिर है राष्ट्रपति के मन में वही बात रही होगी जो अमेरिकी रक्षा विभाग (डीओडी) ने अफगानिस्तान युद्ध पर खर्च किया था. इसमें अन्य लागत नहीं जुड़ा होगा जो कि 9/11 के बाद विभिन्न कारणों से खर्च किए हैं.

ब्राउन यूनिवर्सिटी के वॉटसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स ने 2010 के बाद से 'कॉस्ट ऑफ वॉर प्रोजेक्ट' नामक एक प्रोजेक्ट तैयार किया है. जिसमें 50 से अधिक विद्वानों, कानूनी विशेषज्ञों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व चिकित्सकों को शामिल करते हुए 9/11 के बाद काउंटर टेरर वॉर में होने वाली लागत का अनुमान लगाया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया कि इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका में 9/11 के बाद युद्ध क्षेत्रों में खर्च की अनुमानित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागत, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मातृभूमि सुरक्षा प्रयास व युद्ध के लिए विभिन्न तरह का भुगतान शामिल है.

इसमें 9/11 के बाद के युद्धों के पूर्व सैनिकों के लिए चिकित्सा देखभाल और विकलांगता भुगतान की लागत भी शामिल है, जो कि भविष्य के दायित्वों के अलावा संघीय खर्च में $ 2.2 ट्रिलियन से अधिक आंका गया है. अध्ययन में कहा गया है कि इराक युद्ध पिछले 20 वर्षों में सबसे कठिन था.

अफगानिस्तान के लिए खर्च जहां 2011 में चरम पर था, तब इराक युद्ध के खर्च को पार कर गया. वित्त वर्ष 2011 के दौरान अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए डीओडी और विदेश विभाग का कुल विनियोग लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर था.

मई 2021 के बजट में बाइडेन प्रशासन ने वित्त वर्ष 2022 के लिए $ 8.9 बिलियन का अनुमान किया है. FY2021 के माध्यम से इराक और सीरिया के लिए कुल खर्च $ 886 बिलियन है, जिसमें $ 5.4 बिलियन के साथ बाइडेन प्रशासन द्वारा FY2022 के लिए अनुमान किया गया है.

इन ओवरसीज कंटीजेंसी ऑपरेशंस (OCO) में से अब तक का सबसे लंबा युद्ध अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हुआ था. इसके दो नाम थे. पहला, जनवरी 2015 में ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम व ऑपरेशन फ्रीडम सेंटिनल. इराक में युद्ध को मार्च 2003 से ऑपरेशन इराकी फ्रीडम नाम दिया गया था. अगस्त 2010 तक यह ऑपरेशन न्यू डॉन बन गया. सीरिया और इराक में ISIS के खिलाफ लड़ाई को अगस्त 2014 में ऑपरेशन इनहेरेंट रिजॉल्यूशन का नाम दिया गया.

डीओडी ने कभी युद्ध क्षेत्रों और ऑपरेशन के बड़े स्थानों पर तैनात कर्मियों की संख्या की स्पष्ट रूप से रिपोर्ट नहीं की है. 2017 में डीओडी ने अफगानिस्तान और इराक में तैनात सैनिकों की संख्या की रिपोर्ट करना बंद कर दिया. पारदर्शिता का एक और नुकसान हुआ जब डीओडी ने फरवरी 2020 के बाद अफगानिस्तान में अपने हवाई हमलों और हथियारों को रिपोर्ट करना बंद कर दिया.

2020 में अफगानिस्तान पुनर्निर्माण के लिए विशेष महानिरीक्षक (SIGAR) ने अमेरिकी कांग्रेस को रिपोर्ट किया था. SIGAR अफगानिस्तान पुनर्निर्माण प्रक्रिया पर अमेरिकी सरकार का प्रमुख निगरानी प्राधिकरण है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आतंकवाद विरोधी युद्ध के बजटीय प्रभाव पर रिपोर्ट में 9/11 के बाद के युद्धों की लागत और परिणामों की पूरी कहानी नहीं है.

यह भी पढ़ें-अफगानिस्तान: जुमे की नमाज के बाद तालिबान आज करेगा सरकार का एलान

लेकिन यह कहता है कि इन संख्याओं में मृत्यु की स्वीकृति शामिल है. युद्ध में सेना के 7,040 पुरुषों और महिलाओं के मृत्यु उपादान पर $704 मिलियन खर्च किए गए हैं. इन युद्धों में घायल और मारे गए नागरिकों को मुआवजे के रूप में अमेरिका ने पैसा दिया है. इस लागत में 14 से 31 अगस्त 2021 तक अफगानिस्तान में किए गए बड़े पैमाने पर एयरलिफ्ट प्रयास का खर्च शामिल नहीं है, जिसमें काबुल से 122,000 लोगों को एयरलिफ्ट किया गया.

नई दिल्ली : पिछले 20 वर्षों में आतंक के खिलाफ लड़ाई में अमेरिकी खजाने को करीब 8 ट्रिलियन डॉलर की चपत लगी है. यह भारी-भरकम धनराशि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया, इराक और अफ्रीका सहित दुनिया भर के विभिन्न देशों में आतंक के खिलाफ अमेरिकी मुहिम में खर्च हुआ है. ब्राउन यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है.

भारत के हिसाब से देखें तो अमेरिका का खर्च लगभग 58400000 करोड़ रुपये या भारत की मौजूदा जीडीपी का लगभग तीन गुना है. यह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के 16 अगस्त 2021 को दिए बयान से कहीं अधिक है, जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से जल्दबाजी में निकलना शुरु कर चुकी थी.

उन्होंने कहा था कि हमने एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक खर्च किए हैं. जाहिर है राष्ट्रपति के मन में वही बात रही होगी जो अमेरिकी रक्षा विभाग (डीओडी) ने अफगानिस्तान युद्ध पर खर्च किया था. इसमें अन्य लागत नहीं जुड़ा होगा जो कि 9/11 के बाद विभिन्न कारणों से खर्च किए हैं.

ब्राउन यूनिवर्सिटी के वॉटसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स ने 2010 के बाद से 'कॉस्ट ऑफ वॉर प्रोजेक्ट' नामक एक प्रोजेक्ट तैयार किया है. जिसमें 50 से अधिक विद्वानों, कानूनी विशेषज्ञों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व चिकित्सकों को शामिल करते हुए 9/11 के बाद काउंटर टेरर वॉर में होने वाली लागत का अनुमान लगाया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया कि इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका में 9/11 के बाद युद्ध क्षेत्रों में खर्च की अनुमानित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागत, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मातृभूमि सुरक्षा प्रयास व युद्ध के लिए विभिन्न तरह का भुगतान शामिल है.

इसमें 9/11 के बाद के युद्धों के पूर्व सैनिकों के लिए चिकित्सा देखभाल और विकलांगता भुगतान की लागत भी शामिल है, जो कि भविष्य के दायित्वों के अलावा संघीय खर्च में $ 2.2 ट्रिलियन से अधिक आंका गया है. अध्ययन में कहा गया है कि इराक युद्ध पिछले 20 वर्षों में सबसे कठिन था.

अफगानिस्तान के लिए खर्च जहां 2011 में चरम पर था, तब इराक युद्ध के खर्च को पार कर गया. वित्त वर्ष 2011 के दौरान अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए डीओडी और विदेश विभाग का कुल विनियोग लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर था.

मई 2021 के बजट में बाइडेन प्रशासन ने वित्त वर्ष 2022 के लिए $ 8.9 बिलियन का अनुमान किया है. FY2021 के माध्यम से इराक और सीरिया के लिए कुल खर्च $ 886 बिलियन है, जिसमें $ 5.4 बिलियन के साथ बाइडेन प्रशासन द्वारा FY2022 के लिए अनुमान किया गया है.

इन ओवरसीज कंटीजेंसी ऑपरेशंस (OCO) में से अब तक का सबसे लंबा युद्ध अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हुआ था. इसके दो नाम थे. पहला, जनवरी 2015 में ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम व ऑपरेशन फ्रीडम सेंटिनल. इराक में युद्ध को मार्च 2003 से ऑपरेशन इराकी फ्रीडम नाम दिया गया था. अगस्त 2010 तक यह ऑपरेशन न्यू डॉन बन गया. सीरिया और इराक में ISIS के खिलाफ लड़ाई को अगस्त 2014 में ऑपरेशन इनहेरेंट रिजॉल्यूशन का नाम दिया गया.

डीओडी ने कभी युद्ध क्षेत्रों और ऑपरेशन के बड़े स्थानों पर तैनात कर्मियों की संख्या की स्पष्ट रूप से रिपोर्ट नहीं की है. 2017 में डीओडी ने अफगानिस्तान और इराक में तैनात सैनिकों की संख्या की रिपोर्ट करना बंद कर दिया. पारदर्शिता का एक और नुकसान हुआ जब डीओडी ने फरवरी 2020 के बाद अफगानिस्तान में अपने हवाई हमलों और हथियारों को रिपोर्ट करना बंद कर दिया.

2020 में अफगानिस्तान पुनर्निर्माण के लिए विशेष महानिरीक्षक (SIGAR) ने अमेरिकी कांग्रेस को रिपोर्ट किया था. SIGAR अफगानिस्तान पुनर्निर्माण प्रक्रिया पर अमेरिकी सरकार का प्रमुख निगरानी प्राधिकरण है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आतंकवाद विरोधी युद्ध के बजटीय प्रभाव पर रिपोर्ट में 9/11 के बाद के युद्धों की लागत और परिणामों की पूरी कहानी नहीं है.

यह भी पढ़ें-अफगानिस्तान: जुमे की नमाज के बाद तालिबान आज करेगा सरकार का एलान

लेकिन यह कहता है कि इन संख्याओं में मृत्यु की स्वीकृति शामिल है. युद्ध में सेना के 7,040 पुरुषों और महिलाओं के मृत्यु उपादान पर $704 मिलियन खर्च किए गए हैं. इन युद्धों में घायल और मारे गए नागरिकों को मुआवजे के रूप में अमेरिका ने पैसा दिया है. इस लागत में 14 से 31 अगस्त 2021 तक अफगानिस्तान में किए गए बड़े पैमाने पर एयरलिफ्ट प्रयास का खर्च शामिल नहीं है, जिसमें काबुल से 122,000 लोगों को एयरलिफ्ट किया गया.

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