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सीएए के खिलाफ प्रदर्शनकारी कार्यकर्ताओं को रिहा करे भारत : यूएससीआईआरएफ

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता पर निगरानी रखने वाले अमेरिकी एजेंसी यूएससीआईआरएफ ने भारत में कोरोना वायरस महामारी के दौरान विवादास्पद नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर चिंता जताते हुए मानवीय आधार पर कैदियों को रिहा करने का प्रयास किया जाना चाहिए.

यूएससीआईआरएफ
यूएससीआईआरएफ
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Published : May 15, 2020, 12:09 PM IST

वॉशिंगटन : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी रखने वाली अमेरिकी एजेंसी यू एस कमीशन फॉर इंटरनेशनल रिलिजस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) ने भारत में कोरोना वायरस महामारी के दौरान विवादास्पद संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर चिंता जताई है.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के उच्चायुक्त और यूरोपीय संसद के आंतरिक अनुसंधान केंद्र ने भारत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे उत्पीड़न पर बार-बार चिंता व्यक्त की थी.

यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट
यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट
यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट
यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट

इसी वर्ष फरवरी में, अमेरिकी आयोग ने भारत को उन देशों की सूची में भी शामिल किया था, जहां धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जा रहा है और अब गुरुवार को आयोग द्वारा एक और रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें कहा गया है कि जब दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही है तो ऐसे समय में मानवीय आधार पर कैदियों को रिहा करने का प्रयास किया जाना चाहिए, भारत मुस्लिम नेताओं के लिए सिर्फ इसलिए मुश्किल पैदा कर रहा है कि उन्होंने एक कानून का विरोध करने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग किया था.

अमेरिकी आयोग ने ट्वीट में कहा, 'भारत को इस समय राजनीतिक कैदियों को रिहा करना चाहिए, न कि उनको विरोध करने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए निशाना बनाना चाहिए.' कमीशन ने अपने बयान में विशेषकर सफूरा जरगार का जिक्र किया है, जिसको तीन महीने की गर्भवती होने के बावजूद दिल्ली हिंसा मामले में गिरफ्तार किया गया था.

यूएससीआईआरएफ का ट्वीट
यूएससीआईआरएफ का ट्वीट

खबरों के मुताबिक, 27 वर्षीय महिला को 10 अप्रैल को एंटी-इललीगल एक्टिविटीज (UPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था. हिरासत में लिए जाने के समय वह तीन महीने की गर्भवती थी. सफूरा दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया में रिसर्च स्कॉलर है. जो पिछले साल पारित किए गए नागरिकता कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन में शामिल थी.

एक अन्य ट्वीट में, अमेरिकी आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2020 का हवाला देते हुए कहा कि आयोग ने भारत को उन देशों की श्रेणी में रखा था, जहां 2019 में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया था और दुख की बात है कि यह प्रवृत्ति 2020 में भी जारी रही.

पढ़ें- कोरोना के कारण ट्रंप ने चीन से सारे रिश्ते तोड़ने की धमकी दी

आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 2004 के बाद यह पहली बार है, जब भारत को धार्मिक स्वतंत्रता की श्रेणी में ब्लैकलिस्ट किए जाने की सिफारिश की गई है.

रिपोर्ट ने पहले ही कहा था कि 2019 के आम चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के बाद मोदी की हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और उनके धार्मिक स्थलों को अंधाधुंध निशाना बनाने के लिए अनुमति दी है.

इसके अलावा, मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा को उकसाने वाले बयानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. रिपोर्ट में दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों का भी जिक्र है, जहां तीन दिन तक हिंसा होती रही.

वॉशिंगटन : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी रखने वाली अमेरिकी एजेंसी यू एस कमीशन फॉर इंटरनेशनल रिलिजस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) ने भारत में कोरोना वायरस महामारी के दौरान विवादास्पद संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर चिंता जताई है.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के उच्चायुक्त और यूरोपीय संसद के आंतरिक अनुसंधान केंद्र ने भारत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे उत्पीड़न पर बार-बार चिंता व्यक्त की थी.

यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट
यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट
यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट
यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट

इसी वर्ष फरवरी में, अमेरिकी आयोग ने भारत को उन देशों की सूची में भी शामिल किया था, जहां धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जा रहा है और अब गुरुवार को आयोग द्वारा एक और रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें कहा गया है कि जब दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही है तो ऐसे समय में मानवीय आधार पर कैदियों को रिहा करने का प्रयास किया जाना चाहिए, भारत मुस्लिम नेताओं के लिए सिर्फ इसलिए मुश्किल पैदा कर रहा है कि उन्होंने एक कानून का विरोध करने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग किया था.

अमेरिकी आयोग ने ट्वीट में कहा, 'भारत को इस समय राजनीतिक कैदियों को रिहा करना चाहिए, न कि उनको विरोध करने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए निशाना बनाना चाहिए.' कमीशन ने अपने बयान में विशेषकर सफूरा जरगार का जिक्र किया है, जिसको तीन महीने की गर्भवती होने के बावजूद दिल्ली हिंसा मामले में गिरफ्तार किया गया था.

यूएससीआईआरएफ का ट्वीट
यूएससीआईआरएफ का ट्वीट

खबरों के मुताबिक, 27 वर्षीय महिला को 10 अप्रैल को एंटी-इललीगल एक्टिविटीज (UPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था. हिरासत में लिए जाने के समय वह तीन महीने की गर्भवती थी. सफूरा दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया में रिसर्च स्कॉलर है. जो पिछले साल पारित किए गए नागरिकता कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन में शामिल थी.

एक अन्य ट्वीट में, अमेरिकी आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2020 का हवाला देते हुए कहा कि आयोग ने भारत को उन देशों की श्रेणी में रखा था, जहां 2019 में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया था और दुख की बात है कि यह प्रवृत्ति 2020 में भी जारी रही.

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आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 2004 के बाद यह पहली बार है, जब भारत को धार्मिक स्वतंत्रता की श्रेणी में ब्लैकलिस्ट किए जाने की सिफारिश की गई है.

रिपोर्ट ने पहले ही कहा था कि 2019 के आम चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के बाद मोदी की हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और उनके धार्मिक स्थलों को अंधाधुंध निशाना बनाने के लिए अनुमति दी है.

इसके अलावा, मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा को उकसाने वाले बयानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. रिपोर्ट में दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों का भी जिक्र है, जहां तीन दिन तक हिंसा होती रही.

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