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कोरोना : वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा और रक्त में वायरस की मात्रा घटाने का तरीका किया विकसित

अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन के जरिए यह कर दिखाया है कि कोरोना वायरस को विटामिन रिबोफ्लेविन और पराबैंगनी किरणों के संपर्क में लाया जाए तो ये मानव प्लाज्मा और रक्त उत्पादों में वायरस की मात्रा को कम कर सकते है.

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रक्त उत्पादों में कोरोना वायरस की मात्रा घटाने का तरीका किया विकसित
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Published : Jun 1, 2020, 3:27 AM IST

ह्यूस्टन : कोरोना वायरस के संक्रमण से रोकथाम के लिए प्रशासन और अनुसंधानकर्ताओं कोरोना से जंग जीतने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे है. वही अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन के जरिए यह दिखाया है कि कोरोना वायरस को विटामिन रिबोफ्लेविन और पराबैंगनी किरणों के संपर्क में लाया जाए तो ये मानव प्लाज्मा और रक्त उत्पादों (इंसान के खून से बनने वाले उपचारात्मक पदार्थ जैसे रेड ब्लड सेल, प्लेटलेट्स, प्लाज्मा इत्यादि) में वायरस की मात्रा को कम करते है.

यह ऐसी उपलब्धि है जो खून चढ़ाए जाने के दौरान वायरस के प्रसार की आशंका को घटाने में मददगार साबित हो सकती है.

बता दें कि अमेरिका की कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी (सीएसयू) के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह अब भी पता नही चल सका है कि वैश्विक महामारी के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस या सार्स-सीओवी-2 खून चढ़ाए जाने से फैलता है या नहीं. अध्ययन में वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा के नौ और तीन रक्त उत्पादों के उपचार के लिए मिरासोल पैथोजन रिडक्शन टेक्नोलॉजी सिस्टम नामक उपकरण विकसित किया है.

पढ़े:स्ट्रीट वेंडर्स पर कोरोना-लॉकडाउन की दोहरी मार, सरकार ने खोजे यह उपाय

अध्ययन की सह-लेखिका इजाबेला रगान ने कहा, है कि 'हमने वायरस की बड़ी मात्रा को घटाया और इलाज के बाद हमें वायरस नहीं मिला.'

सीएसयू से अध्ययन के वरिष्ठ लेखक रे गुडरिच की ओर से आविष्कार यह उपकरण रक्त उत्पाद या प्लाज्मा को पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आकर काम करता है. गुडरिच ने कहा कि फिलहाल मिरासोल का इस्तेमाल केवल अमेरिका से बाहर खासकर यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में स्वीकृत है.

ह्यूस्टन : कोरोना वायरस के संक्रमण से रोकथाम के लिए प्रशासन और अनुसंधानकर्ताओं कोरोना से जंग जीतने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे है. वही अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन के जरिए यह दिखाया है कि कोरोना वायरस को विटामिन रिबोफ्लेविन और पराबैंगनी किरणों के संपर्क में लाया जाए तो ये मानव प्लाज्मा और रक्त उत्पादों (इंसान के खून से बनने वाले उपचारात्मक पदार्थ जैसे रेड ब्लड सेल, प्लेटलेट्स, प्लाज्मा इत्यादि) में वायरस की मात्रा को कम करते है.

यह ऐसी उपलब्धि है जो खून चढ़ाए जाने के दौरान वायरस के प्रसार की आशंका को घटाने में मददगार साबित हो सकती है.

बता दें कि अमेरिका की कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी (सीएसयू) के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह अब भी पता नही चल सका है कि वैश्विक महामारी के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस या सार्स-सीओवी-2 खून चढ़ाए जाने से फैलता है या नहीं. अध्ययन में वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा के नौ और तीन रक्त उत्पादों के उपचार के लिए मिरासोल पैथोजन रिडक्शन टेक्नोलॉजी सिस्टम नामक उपकरण विकसित किया है.

पढ़े:स्ट्रीट वेंडर्स पर कोरोना-लॉकडाउन की दोहरी मार, सरकार ने खोजे यह उपाय

अध्ययन की सह-लेखिका इजाबेला रगान ने कहा, है कि 'हमने वायरस की बड़ी मात्रा को घटाया और इलाज के बाद हमें वायरस नहीं मिला.'

सीएसयू से अध्ययन के वरिष्ठ लेखक रे गुडरिच की ओर से आविष्कार यह उपकरण रक्त उत्पाद या प्लाज्मा को पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आकर काम करता है. गुडरिच ने कहा कि फिलहाल मिरासोल का इस्तेमाल केवल अमेरिका से बाहर खासकर यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में स्वीकृत है.

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