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बिडेन-हैरिस की जीत से अमेरिका की पेरिस जलवायु समझौते में हो सकती है वापसी - अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव

विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया एक बार फिर वॉशिंगटन को 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में प्रवेश करता देख सकती है. अगर इस वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बिडेन-कमला हैरिस की जीत होती है तो, जिससे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प छोड़ दिया था.

US back to Paris climate
अमेरिका की पेरिस जलवायु समझौते में वापसी हो सकती है
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Published : Aug 15, 2020, 9:57 AM IST

Updated : Aug 15, 2020, 10:42 AM IST

नई दिल्ली: इस वर्ष के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बिडेन-कमला हैरिस की जीत होती है, तो विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया एक बार फिर वॉशिंगटन को 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में प्रवेश करता देख सकती है जिससे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प छोड़ दिया था.

बिडेन और हैरिस दोनों जलवायु और पर्यावरण न्याय के प्रबल समर्थक हैं और जलवायु समझौते में फिर से प्रवेश कर सकते हैं जिसके लिए भारतीयों ने एक अहम भूमिका निभाई थी.

हैरिस, जिन्हें डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बिडेन द्वारा उप-राष्ट्रपति के पद के दावेदार के रूप में चुना गया और जो कैलिफोर्निया से अमेरिकी सीनेटर हैं, ने इस महीने के शुरू में न्यूयॉर्क एलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कॉर्टियो से अमेरिकी प्रतिनिधि के साथ जलवायु समानता अधिनियम (सीईए) की शुरुआत की है.

संयुक्त राज्य सरकार की जवाबदेही को इस बात पर सुनिश्चित करना चाहिए कि जब भी वह किसी जलवायु या पर्यावरण संबंधित नीति, नियमन या कानून पर फैसला ले तब वह अग्रपंक्ति के समुदायों को इस प्रक्रिया के केंद्र में रखे जिसमें सीधे तौर पर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए प्रत्यक्ष नीतियाँ हो सकती हैं मगर उनके साथ परिवहन, आवास, बुनियादी ढांचे, रोजगार, कार्यबल विकास, आदि को भी शामिल किया जाना चाहिए.सीईए मसौदा में कहा गया है.

यह 2017 में, 2015 के पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने के अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले से बिलकुल विपरीत है और अब उसके व्यवसायों, उसके श्रमिकों, उसके नागरिकों और उसके करदाताओं के हित ध्यान में रखते हुए अमरीका की शर्तों पर दोबारा इस संधि में वापसी की वार्ता की शुरूआत के तौर पर देखा जा सकता है. समझौते से बाहर निकलते हुए, ट्रम्प ने कहा था कि पेरिस समझौते से अमेरिकी अर्थव्यवस्था कमजोर होगी, और उनके देश को स्थायी नुकसान उठाना पड़ेगा. उन्होंने यह भी कहा था कि इस संधि से बाहर निकलने का फैसला उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ या अमरीका को पहली प्राथमिकता देने की निति के अनुरूप होगा.

2015 में पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी) के बाद हस्ताक्षरित मील के पत्थर के तौर पर देखे जाने वाले पेरिस जलवायु समझौते के तहत, 2020 से, विकसित देशों द्वारा सालाना 100 बिलियन डॉलर की न्यूनतम राशि विकासशील देशों को दी जानी तय हुई थी जिससे कि वह अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सक्षम बन सकें या जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को सौंपी गई उनकी राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (एनडीसी) के अनुरूप उनको मदद दी जा सके.

संधि के अनुसार, वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाएगा और देश 1.5 डिग्री सेल्सियस पर वृद्धि को बनाए रखने के प्रयासों पर अमल करेंगी.समझौते के तहत, भारत ने तीन प्रमुख संकल्प किए हैं: यह सुनिश्चित करना कि 2030 तक कम से कम 40 प्रतिशत बिजली गैर-जीवाश्म स्रोतों से उत्पन्न होगी; 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता को 2005 के स्तर से 33-35 प्रतिशत कम करना सुनिश्चित करेगा; और 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त 'कार्बन सिंक' का निर्माण करेगा.

2015 में पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी) के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने, तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रैंकोइस हॉलैंड के साथ सौर गठबंधन (आईएसए) की शुरुआत भी की थी, जो सौर ऊर्जा संपन्न देशों के बीच गठबंधन है, ताकि उनकी विशेष ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और एक मंच प्रदान किया जा सके जिसपर एक आम सहमति के दृष्टिकोण के माध्यम से पहचाने गए अंतराल से निपटने में एक दूसरे का सहयोग किया जा सके.

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन कैंसर और मकर रेखा के बीच मौजूद सभी 121 भावी सदस्य देशों के लिए खुला है.अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का मुख्यालय भारत के गुरुग्राम में स्थित है, और नई दिल्ली ने 2016-17 से 2020-21 तक पाँच वर्षों में एक निकाय बनाने, बुनियादी ढांचे के निर्माण और आवर्ती व्यय के लिए गठबंधन को 125 करोड़ रुपये का समर्थन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्धता भी स्पष्ट की है.हालाँकि भारत की सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश कोविड -19 महामारी के प्रकोप से प्रभावित हुई है, फिर भी 30 जून, 2020 तक इसकी स्थापित क्षमता 35 गीगावॉट से अधिक हो गई.

हैरिस द्वारा सीईए को पेश करने पर, पर्यवेक्षकों का विचार है कि यदि बिडेन चुनाव जीतते है तो तो वह अमरीका को दोबारा पेरिस समझौते में शामिल होने की पहल कर सकती हैं जो नई दिल्ली के लिए एक अच्छी खबर के तौर पर काम करेगी.हैरिस को बिडेन द्वारा उनके सहयोगी के रूप में चुने जाने पर, क्लाइमेट होम न्यूज ने न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक प्रबुद्ध मंडल के प्रमुख निकल्स होन्ने के हवाले से कहा, यह निश्चित रूप से जलवायु कूटनीति के लिए एक अच्छा कदम है,

बिडेन-हैरिस प्रशासन जलवायु नीति और पेरिस समझौते के संबंध में दिन और रात की तरह साबित होगा,होहेन ने कहा.नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन नामक प्रबुद्ध मंडल में प्रतिष्ठित अध्येता और संसाधन प्रबंधन केंद्र की प्रमुख एग्री लिडिया पॉवेल इस बात से पूरी तरह सहमत हैं.ईटीवी भारत से बात करते हुए, पॉवेल ने याद किया कि बिडेन ने खुद बयान जारी किए हैं कि अमेरिका को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए कहां खड़ा होना चाहिए, जो कि ट्रम्प की नीति के विपरीत हैं.

अपने चुनाव अभियान के बयान में, बिडेन ने कहा है कि वे जानते हैं कि अमेरिका को अपने सहयोगियों के साथ कैसे खड़ा होना चाहिए, "विरोधियों के समक्ष खड़ा होना चाहिए, और आगे का रास्ता तय करने के लिए विश्व के किसी भी नेता के साथ किस स्तर पर बात करनी चाहिए.बिडेन के चुनावी अभियान की वेबसाइट में कहा गया है कि वे न केवल जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते में संयुक्त राज्य अमेरिका को पुनः शामिल करेंगे बल्कि उसके भी आगे जायेंगे.पावेल ने हालांकि कहा कि डेमोक्रेट नेता पूरी तरह से जीवाश्म ईंधन के खिलाफ नहीं होंगे क्योंकि इसमें अमेरिका में स्थानीय नौकरियां शामिल हैं.लेकिन दुनिया को स्वच्छ ईंधन की ओर क़दम बढ़ाना होगा, यह एक वास्तविकता है, उन्होंने कहा. वह (यदि बिडेन-हैरिस की जोड़ी जीत जाती है तो अमेरिका) निश्चित रूप से पेरिस संधि में दोबारा शामिल हो जायेगा. यह लगभग निश्चित है.

हैरिस, सीईए के द्वारा सबसे अधिक प्रभावित समुदायों के अग्रपंक्ति के नेताओं के साथ संघीय जलवायु और पर्यावरणीय अभियानों में जवाबदेही और बराबरी तय करते हुए कानून बनाते वक़्त उस मंच पर उनका स्थान सुनिश्चित करना चाहती हैं.सीईए के मसौदा में कहा गया है, "इस पतझड़ में औपचारिक शुरूआत से पहले, अग्रिम पंक्ति के समुदायों और उनके सहयोगियों के अधिवक्ताओं के पास इस मसौदा कानून पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने का मौका होगा ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि हम सबसे मजबूत नीति का निर्माण कर रहें हैं.

पढ़ें : जो बाइडेन ने कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति चुनने की वजह बताई

अमेरिकी उप राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित होने वाली भारतीय और अफ्रीकी मूल की पहली व्यक्ति, हैरिस ने अपने पूरे कार्यकाल में जलवायु और पर्यावरण न्याय पर जोर दिया है. सैन फ्रांसिस्को डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के रूप में, उन्होंने शहर के सबसे कमजोर समुदायों की मदद के लिए एक पर्यावरण न्याय इकाई की स्थापना भी की है.बिडेन यदि व्हाइट हाउस में जाते हैं तो पेरिस समझौते पर हर अमेरिकी कार्यवाही पर भारत अपनी नज़र बनाये रखेगा. रियल क्लियर पॉलिटिक्स पर आधारित नवीनतम फाइनेंशियल टाइम्स यूएस पोल ट्रैकर के अनुसार, बिडेन इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों में से 298 जीतेंगे जबकि ट्रम्प को केवल 119 वोट ही मिलेंगे. राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को ऐसे 270 वोट जीतने की आवश्यकता होती है.

(लेखक-अरुणिम भुयान)

नई दिल्ली: इस वर्ष के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बिडेन-कमला हैरिस की जीत होती है, तो विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया एक बार फिर वॉशिंगटन को 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में प्रवेश करता देख सकती है जिससे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प छोड़ दिया था.

बिडेन और हैरिस दोनों जलवायु और पर्यावरण न्याय के प्रबल समर्थक हैं और जलवायु समझौते में फिर से प्रवेश कर सकते हैं जिसके लिए भारतीयों ने एक अहम भूमिका निभाई थी.

हैरिस, जिन्हें डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बिडेन द्वारा उप-राष्ट्रपति के पद के दावेदार के रूप में चुना गया और जो कैलिफोर्निया से अमेरिकी सीनेटर हैं, ने इस महीने के शुरू में न्यूयॉर्क एलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कॉर्टियो से अमेरिकी प्रतिनिधि के साथ जलवायु समानता अधिनियम (सीईए) की शुरुआत की है.

संयुक्त राज्य सरकार की जवाबदेही को इस बात पर सुनिश्चित करना चाहिए कि जब भी वह किसी जलवायु या पर्यावरण संबंधित नीति, नियमन या कानून पर फैसला ले तब वह अग्रपंक्ति के समुदायों को इस प्रक्रिया के केंद्र में रखे जिसमें सीधे तौर पर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए प्रत्यक्ष नीतियाँ हो सकती हैं मगर उनके साथ परिवहन, आवास, बुनियादी ढांचे, रोजगार, कार्यबल विकास, आदि को भी शामिल किया जाना चाहिए.सीईए मसौदा में कहा गया है.

यह 2017 में, 2015 के पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने के अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले से बिलकुल विपरीत है और अब उसके व्यवसायों, उसके श्रमिकों, उसके नागरिकों और उसके करदाताओं के हित ध्यान में रखते हुए अमरीका की शर्तों पर दोबारा इस संधि में वापसी की वार्ता की शुरूआत के तौर पर देखा जा सकता है. समझौते से बाहर निकलते हुए, ट्रम्प ने कहा था कि पेरिस समझौते से अमेरिकी अर्थव्यवस्था कमजोर होगी, और उनके देश को स्थायी नुकसान उठाना पड़ेगा. उन्होंने यह भी कहा था कि इस संधि से बाहर निकलने का फैसला उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ या अमरीका को पहली प्राथमिकता देने की निति के अनुरूप होगा.

2015 में पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी) के बाद हस्ताक्षरित मील के पत्थर के तौर पर देखे जाने वाले पेरिस जलवायु समझौते के तहत, 2020 से, विकसित देशों द्वारा सालाना 100 बिलियन डॉलर की न्यूनतम राशि विकासशील देशों को दी जानी तय हुई थी जिससे कि वह अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सक्षम बन सकें या जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को सौंपी गई उनकी राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (एनडीसी) के अनुरूप उनको मदद दी जा सके.

संधि के अनुसार, वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाएगा और देश 1.5 डिग्री सेल्सियस पर वृद्धि को बनाए रखने के प्रयासों पर अमल करेंगी.समझौते के तहत, भारत ने तीन प्रमुख संकल्प किए हैं: यह सुनिश्चित करना कि 2030 तक कम से कम 40 प्रतिशत बिजली गैर-जीवाश्म स्रोतों से उत्पन्न होगी; 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता को 2005 के स्तर से 33-35 प्रतिशत कम करना सुनिश्चित करेगा; और 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त 'कार्बन सिंक' का निर्माण करेगा.

2015 में पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी) के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने, तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रैंकोइस हॉलैंड के साथ सौर गठबंधन (आईएसए) की शुरुआत भी की थी, जो सौर ऊर्जा संपन्न देशों के बीच गठबंधन है, ताकि उनकी विशेष ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और एक मंच प्रदान किया जा सके जिसपर एक आम सहमति के दृष्टिकोण के माध्यम से पहचाने गए अंतराल से निपटने में एक दूसरे का सहयोग किया जा सके.

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन कैंसर और मकर रेखा के बीच मौजूद सभी 121 भावी सदस्य देशों के लिए खुला है.अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का मुख्यालय भारत के गुरुग्राम में स्थित है, और नई दिल्ली ने 2016-17 से 2020-21 तक पाँच वर्षों में एक निकाय बनाने, बुनियादी ढांचे के निर्माण और आवर्ती व्यय के लिए गठबंधन को 125 करोड़ रुपये का समर्थन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्धता भी स्पष्ट की है.हालाँकि भारत की सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश कोविड -19 महामारी के प्रकोप से प्रभावित हुई है, फिर भी 30 जून, 2020 तक इसकी स्थापित क्षमता 35 गीगावॉट से अधिक हो गई.

हैरिस द्वारा सीईए को पेश करने पर, पर्यवेक्षकों का विचार है कि यदि बिडेन चुनाव जीतते है तो तो वह अमरीका को दोबारा पेरिस समझौते में शामिल होने की पहल कर सकती हैं जो नई दिल्ली के लिए एक अच्छी खबर के तौर पर काम करेगी.हैरिस को बिडेन द्वारा उनके सहयोगी के रूप में चुने जाने पर, क्लाइमेट होम न्यूज ने न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक प्रबुद्ध मंडल के प्रमुख निकल्स होन्ने के हवाले से कहा, यह निश्चित रूप से जलवायु कूटनीति के लिए एक अच्छा कदम है,

बिडेन-हैरिस प्रशासन जलवायु नीति और पेरिस समझौते के संबंध में दिन और रात की तरह साबित होगा,होहेन ने कहा.नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन नामक प्रबुद्ध मंडल में प्रतिष्ठित अध्येता और संसाधन प्रबंधन केंद्र की प्रमुख एग्री लिडिया पॉवेल इस बात से पूरी तरह सहमत हैं.ईटीवी भारत से बात करते हुए, पॉवेल ने याद किया कि बिडेन ने खुद बयान जारी किए हैं कि अमेरिका को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए कहां खड़ा होना चाहिए, जो कि ट्रम्प की नीति के विपरीत हैं.

अपने चुनाव अभियान के बयान में, बिडेन ने कहा है कि वे जानते हैं कि अमेरिका को अपने सहयोगियों के साथ कैसे खड़ा होना चाहिए, "विरोधियों के समक्ष खड़ा होना चाहिए, और आगे का रास्ता तय करने के लिए विश्व के किसी भी नेता के साथ किस स्तर पर बात करनी चाहिए.बिडेन के चुनावी अभियान की वेबसाइट में कहा गया है कि वे न केवल जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते में संयुक्त राज्य अमेरिका को पुनः शामिल करेंगे बल्कि उसके भी आगे जायेंगे.पावेल ने हालांकि कहा कि डेमोक्रेट नेता पूरी तरह से जीवाश्म ईंधन के खिलाफ नहीं होंगे क्योंकि इसमें अमेरिका में स्थानीय नौकरियां शामिल हैं.लेकिन दुनिया को स्वच्छ ईंधन की ओर क़दम बढ़ाना होगा, यह एक वास्तविकता है, उन्होंने कहा. वह (यदि बिडेन-हैरिस की जोड़ी जीत जाती है तो अमेरिका) निश्चित रूप से पेरिस संधि में दोबारा शामिल हो जायेगा. यह लगभग निश्चित है.

हैरिस, सीईए के द्वारा सबसे अधिक प्रभावित समुदायों के अग्रपंक्ति के नेताओं के साथ संघीय जलवायु और पर्यावरणीय अभियानों में जवाबदेही और बराबरी तय करते हुए कानून बनाते वक़्त उस मंच पर उनका स्थान सुनिश्चित करना चाहती हैं.सीईए के मसौदा में कहा गया है, "इस पतझड़ में औपचारिक शुरूआत से पहले, अग्रिम पंक्ति के समुदायों और उनके सहयोगियों के अधिवक्ताओं के पास इस मसौदा कानून पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने का मौका होगा ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि हम सबसे मजबूत नीति का निर्माण कर रहें हैं.

पढ़ें : जो बाइडेन ने कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति चुनने की वजह बताई

अमेरिकी उप राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित होने वाली भारतीय और अफ्रीकी मूल की पहली व्यक्ति, हैरिस ने अपने पूरे कार्यकाल में जलवायु और पर्यावरण न्याय पर जोर दिया है. सैन फ्रांसिस्को डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के रूप में, उन्होंने शहर के सबसे कमजोर समुदायों की मदद के लिए एक पर्यावरण न्याय इकाई की स्थापना भी की है.बिडेन यदि व्हाइट हाउस में जाते हैं तो पेरिस समझौते पर हर अमेरिकी कार्यवाही पर भारत अपनी नज़र बनाये रखेगा. रियल क्लियर पॉलिटिक्स पर आधारित नवीनतम फाइनेंशियल टाइम्स यूएस पोल ट्रैकर के अनुसार, बिडेन इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों में से 298 जीतेंगे जबकि ट्रम्प को केवल 119 वोट ही मिलेंगे. राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को ऐसे 270 वोट जीतने की आवश्यकता होती है.

(लेखक-अरुणिम भुयान)

Last Updated : Aug 15, 2020, 10:42 AM IST
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