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पाकिस्तान : बलूच लेखक ने साहित्यिक पुरस्कार लेने से किया इनकार - बलूच साहित्य के लेखक अकबर बरकजई

बलूच लेखक अकबर बराकजई ने पाक की दमनकारी नीतियों के कारण पाकिस्तान से साहित्यिक पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया. अकबर बराकजई की पुस्तक 'जबान जांती-यू-बालोची जबान जांती' को सैयद जहूर शाह हाशमी पुरस्कार के लिए नामित किया गया था. पढ़ें पूरी खबर...

बलूच लेखक ने साहित्यिक पुरस्कार लेने से किया इंकार
बलूच लेखक ने साहित्यिक पुरस्कार लेने से किया इंकार
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Published : Jun 28, 2020, 10:25 AM IST

बलूचिस्तान : बलूच साहित्य के लेखक अकबर बरकजई (Akbar Barakzai) ने बलूचिस्तान में बेहतरीन काम के लिए पाकिस्तान से अकादमिक पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने पुरस्कार न स्वीकार करने के पीछे बलूचिस्तान को अधीन रखने वाली पाकिस्तान सरकार की दमनकारी नीतियों का हवाला दिया है.

बता दें, बरकजई की पुस्तक 'जबान जांती-यू-बालोची जबान जांती' को सैयद जहूर शाह हाशमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. इसका नाम एक और बलूच विद्वान दार्शनिक और कवि के नाम पर रखा गया है.

जब बरकजई को नामांकन, शैक्षिक पुरस्कार और दो लाख रुपये नकद पुरस्कार के बारे में जानकारी दी गई, तो उन्होंने पाकिस्तानी अकैडमी ऑफ लेटर (पाल) के अध्यक्ष यूसुफ खुश को ई-मेल के माध्यम से नामांकन के लिए धन्यवाद दिया.

साथ ही उन्होंने ई-मेल में कहा कि वह इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं कर सकते. इसके पीछे उन्होंने बलूचिस्तान में जमीन से जुड़े लोगों को अधीन करने वाले पाकिस्तानी की नीतियों का हवाला दिया.

पढ़ें- पाक : सिख श्रद्धालुओं के लिए दोबारा खोला जा सकता है करतारपुर गलियारा

गौर हो कि अकबर बरकजाई ल्यारी कराची से ताल्लुक रखते हैं. 1970 के दशक में वह वामपंथी राजनीति के एक सक्रिय और मुखर वकील थे.

उसी समय वह स्थाई रूप से लंदन, यूनाइटेड किंगडम चले गए. उन्होंने एक कविता संग्रह 'रोचा केव कुंथ कंठ' भी लिखी है. वर्तमान में वह 80 साल के हैं और आज भी बलूच साहित्य में सेवा दे रहे हैं.

बलूचिस्तान : बलूच साहित्य के लेखक अकबर बरकजई (Akbar Barakzai) ने बलूचिस्तान में बेहतरीन काम के लिए पाकिस्तान से अकादमिक पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने पुरस्कार न स्वीकार करने के पीछे बलूचिस्तान को अधीन रखने वाली पाकिस्तान सरकार की दमनकारी नीतियों का हवाला दिया है.

बता दें, बरकजई की पुस्तक 'जबान जांती-यू-बालोची जबान जांती' को सैयद जहूर शाह हाशमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. इसका नाम एक और बलूच विद्वान दार्शनिक और कवि के नाम पर रखा गया है.

जब बरकजई को नामांकन, शैक्षिक पुरस्कार और दो लाख रुपये नकद पुरस्कार के बारे में जानकारी दी गई, तो उन्होंने पाकिस्तानी अकैडमी ऑफ लेटर (पाल) के अध्यक्ष यूसुफ खुश को ई-मेल के माध्यम से नामांकन के लिए धन्यवाद दिया.

साथ ही उन्होंने ई-मेल में कहा कि वह इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं कर सकते. इसके पीछे उन्होंने बलूचिस्तान में जमीन से जुड़े लोगों को अधीन करने वाले पाकिस्तानी की नीतियों का हवाला दिया.

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गौर हो कि अकबर बरकजाई ल्यारी कराची से ताल्लुक रखते हैं. 1970 के दशक में वह वामपंथी राजनीति के एक सक्रिय और मुखर वकील थे.

उसी समय वह स्थाई रूप से लंदन, यूनाइटेड किंगडम चले गए. उन्होंने एक कविता संग्रह 'रोचा केव कुंथ कंठ' भी लिखी है. वर्तमान में वह 80 साल के हैं और आज भी बलूच साहित्य में सेवा दे रहे हैं.

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