मुंबई: कॉमेडियन कुणाल कामरा ने सूचना और प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम 2021 की मुंबई धारा 9 जो उस समाज के लिए एक बाधा पैदा करती है, जिसकी आजीविका और रोजी रोटी मीडिया पर निर्भर है. उक्त अधिनियमों की धारा 9 को निलंबित किया जाए. ऐसी डिमांड पिटीशन कुणाल कामरा ने लगाई है. नवरोज सेरवाई ने अपनी ओर से आज बॉम्बे उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष पेश होते हुए उपरोक्त बिंदु पर प्रकाश डाला है.
बता दें कि सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल सिंह ने तर्क दिया कि ये उचित नियम हैं और जनता पर कोई प्रतिबंध नहीं है. इसलिए इस नियम पर रोक लगाने की जरूरत नहीं है. इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा की गई मांग को खारिज किया जाना चाहिए. लेकिन कुणाल कामरा की ओर से अधिवक्ता नवरोज सेरवाई ने फिर कुछ उदाहरण दिए. अगर हम श्रेया सिंघल और कई अन्य मामलों को देखें जो सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुके हैं तो हम देख सकते हैं कि मौलिक अधिकार को अक्सर प्रतिबंधित किया गया है.
अनिल सिंह ने सरकार की ओर से इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जब सरकार ने इस अधिनियम में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की थी, उस समय नागरिकों को इस अधिनियम पर अपनी राय सुनने और प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था और अब इसकी कोई आवश्यकता नहीं है. उस पर फिर से समय बिताने के लिए नवरोज सेरवाई ने यह मुद्दा उठाया कि इस बात की संभावना है कि 2021 के अधिनियम से संविधान के अनुच्छेद 19 के मौलिक अधिकार पर उचित प्रतिबंध लग सकता है. उसी के अनुसार अनुच्छेद 9 लागू हो सकता है और इसलिए इस पर रोक लगाई जानी चाहिए.
यह है याचिकाकर्ता की मांग: देश में कई युवा आज अपनी आजीविका और रोजगार के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं. यदि इस अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाता है, तो वे अपनी भावनाओं और सूचनाओं को व्यक्त नहीं कर पाएंगे. यह उनके रोजगार के अधिकार को बाधित करेगा. इसे नवरोज सेरवाई ने सशक्त रूप से प्रस्तुत किया. लेकिन वरिष्ठ वकील और सरकार की ओर से पेश अनिल सी सिंह ने कहा कि इस मामले में अभी अंतरिम रोक लगाने की कोई जल्दी नहीं है. यदि उन्हें इस संबंध में कोई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पसंद नहीं है तो उन्हें तुरंत नोटिस दिया जाता है और उनका खाता बंद कर दिया जाता है, इस प्रकार उनकी आजीविका का प्रश्न पैदा हो जाता है. कोर्ट ने दोनों पक्षों के बयानों और दस्तावेजों की जांच और अवलोकन के बाद अगली सुनवाई 21 अप्रैल 2023 को तय की है.
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