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किसानों के खिलाफ कैसे वापस होंगे पुलिस केस, जानिए कानूनी प्रक्रिया - दिल्ली किसान आंदोलन पुलिस केस

किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज हुए विभिन्न आपराधिक मामलों को सरकार वापस लेने का ऐलान कर चुकी है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि किसी मामले को वापस लेने की प्रक्रिया के बारे में सीआरपीसी की धारा 123 में विस्तार से बताया गया है. इसमें यह साफ कहा गया है कि जनता के हित में अगर किसी मामले को सरकार वापस लेना चाहे तो सरकारी वकील इसके लिए अदालत में अपील कर सकता है.

किसानों के खिलाफ पुलिस केस वापस होंगे
किसानों के खिलाफ पुलिस केस वापस होंगे
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Published : Dec 21, 2021, 1:03 PM IST

Updated : Dec 21, 2021, 8:05 PM IST

नई दिल्लीः किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज हुए विभिन्न आपराधिक मामलों को सरकार वापस लेने का ऐलान कर चुकी है. इनमें लाल किला हिंसा का मामला भी शामिल है, जिसमें 400 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए थे. इन मामलों को वापस लेने के लिए, उन्हें पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा, जिसमें कई महीनों का समय लग सकता है. इसके बाद जिन पर आरोपपत्र दाखिल हुए हैं, वह बरी होंगे. वहीं, जिन पर आरोपपत्र दाखिल नहीं हुए हैं, वह डिस्चार्ज करवाये जाएंगे.


सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि किसी मामले को वापस लेने की प्रक्रिया के बारे में सीआरपीसी की धारा 321 में विस्तार से बताया गया है. इसमें यह साफ कहा गया है कि जनता के हित में अगर किसी मामले को सरकार वापस लेना चाहे तो सरकारी वकील इसके लिए अदालत में अपील कर सकता है. लेकिन सरकारी वकील को यह बताना होगा कि यह मामला वापस लेना कैसे जनता के हित में है. अगर अदालत अपील से संतुष्ट होती है तो वह उसे मंजूर कर लेती है. लेकिन अगर अदालत को यह जनता के हित का मामला नहीं लगता तो वह उसे नकार भी सकती है.

किसानों के खिलाफ पुलिस केस वापस होंगे
दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि फूलन देवी के मामले में ऐसा ही हुआ था. यूपी की तत्कालीन सरकार फूलन देवी पर लगे सभी अपराधों की एफआईआर को वापस लेना चाहती थी. उनकी तरफ से सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि फूलन देवी ने किस तरह अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे. इन मामलों को वापस लेना जनता के हित में होगा. लेकिन अदालत ने उनकी इस मांग को अस्वीकार करते हुए इन मामलों को वापस नहीं होने दिया था. इसलिए सरकारी वकील मामले वापस लेने के लिए अपील कर सकते हैं. यह जनहित में है या नहीं, इसका निर्णय अदालत करेगी. अधिवक्ता दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि इस मामले में सरकार केसों को वापस लेने का निर्णय ले चुकी है. इसलिए उपराज्यपाल द्वारा इसे लेकर सरकारी वकील को निर्देश जारी किए जाएंगे. अदालत में सरकार नहीं बल्कि सरकारी वकील इन मामलों को वापस लेने के लिए अपील करेंगे. इस अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत तय करेगी कि जिन एफआईआर को वापस लेने की मांग है वह जनहित में है या नहीं. उन्हें उम्मीद है कि इस मामले में किसानों से जुड़ा यह मामला जनहित में मानते हुए अदालत स्वीकार कर लेगी. अदालत के इसे स्वीकार करने पर वह सभी आरोपी बरी हो जाएंगे जिनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल है. वहीं जिन लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल नहीं हुआ है, वह भी आरोपमुक्त हो जाएंगे. अधिवक्ता दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि किसी भी अपराध में शिकायतकर्ता केस को नहीं लड़ता है. उसकी जगह राज्य केस को लड़ता है. इसलिए शिकायतकर्ता की मर्जी हो या नहीं, सरकार उसे वापस लेने के लिए अदालत से अपील कर सकती है. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में यह देखने में आता है कि पीड़ित को इंसाफ नहीं मिलता है. इस मामले में भी लाल किला हिंसा के दौरान घायल हुए 400 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को इंसाफ नहीं मिलेगा. लेकिन उन्हें लगता है कि यह जनहित में है, इसलिए सरकार इन केसों को वापस ले रही है.

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नई दिल्लीः किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज हुए विभिन्न आपराधिक मामलों को सरकार वापस लेने का ऐलान कर चुकी है. इनमें लाल किला हिंसा का मामला भी शामिल है, जिसमें 400 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए थे. इन मामलों को वापस लेने के लिए, उन्हें पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा, जिसमें कई महीनों का समय लग सकता है. इसके बाद जिन पर आरोपपत्र दाखिल हुए हैं, वह बरी होंगे. वहीं, जिन पर आरोपपत्र दाखिल नहीं हुए हैं, वह डिस्चार्ज करवाये जाएंगे.


सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि किसी मामले को वापस लेने की प्रक्रिया के बारे में सीआरपीसी की धारा 321 में विस्तार से बताया गया है. इसमें यह साफ कहा गया है कि जनता के हित में अगर किसी मामले को सरकार वापस लेना चाहे तो सरकारी वकील इसके लिए अदालत में अपील कर सकता है. लेकिन सरकारी वकील को यह बताना होगा कि यह मामला वापस लेना कैसे जनता के हित में है. अगर अदालत अपील से संतुष्ट होती है तो वह उसे मंजूर कर लेती है. लेकिन अगर अदालत को यह जनता के हित का मामला नहीं लगता तो वह उसे नकार भी सकती है.

किसानों के खिलाफ पुलिस केस वापस होंगे
दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि फूलन देवी के मामले में ऐसा ही हुआ था. यूपी की तत्कालीन सरकार फूलन देवी पर लगे सभी अपराधों की एफआईआर को वापस लेना चाहती थी. उनकी तरफ से सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि फूलन देवी ने किस तरह अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे. इन मामलों को वापस लेना जनता के हित में होगा. लेकिन अदालत ने उनकी इस मांग को अस्वीकार करते हुए इन मामलों को वापस नहीं होने दिया था. इसलिए सरकारी वकील मामले वापस लेने के लिए अपील कर सकते हैं. यह जनहित में है या नहीं, इसका निर्णय अदालत करेगी. अधिवक्ता दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि इस मामले में सरकार केसों को वापस लेने का निर्णय ले चुकी है. इसलिए उपराज्यपाल द्वारा इसे लेकर सरकारी वकील को निर्देश जारी किए जाएंगे. अदालत में सरकार नहीं बल्कि सरकारी वकील इन मामलों को वापस लेने के लिए अपील करेंगे. इस अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत तय करेगी कि जिन एफआईआर को वापस लेने की मांग है वह जनहित में है या नहीं. उन्हें उम्मीद है कि इस मामले में किसानों से जुड़ा यह मामला जनहित में मानते हुए अदालत स्वीकार कर लेगी. अदालत के इसे स्वीकार करने पर वह सभी आरोपी बरी हो जाएंगे जिनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल है. वहीं जिन लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल नहीं हुआ है, वह भी आरोपमुक्त हो जाएंगे. अधिवक्ता दिव्यांशु पांडेय ने बताया कि किसी भी अपराध में शिकायतकर्ता केस को नहीं लड़ता है. उसकी जगह राज्य केस को लड़ता है. इसलिए शिकायतकर्ता की मर्जी हो या नहीं, सरकार उसे वापस लेने के लिए अदालत से अपील कर सकती है. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में यह देखने में आता है कि पीड़ित को इंसाफ नहीं मिलता है. इस मामले में भी लाल किला हिंसा के दौरान घायल हुए 400 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को इंसाफ नहीं मिलेगा. लेकिन उन्हें लगता है कि यह जनहित में है, इसलिए सरकार इन केसों को वापस ले रही है.

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Last Updated : Dec 21, 2021, 8:05 PM IST
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