नई दिल्ली/नोएडा: 'जब पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढेगा इंडिया' नारा तो अच्छा है. लेकिन जब पढ़ाने वाले शिक्षक ही परेशान है तो कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे बढ़ेगा इंडिया ?. उत्तर प्रदेश का हाईटेक शहर कहलाए जाने वाला नोएडा में जहां छोटे अधिकारी से लेकर बड़े अधिकारी एसी की हवा ले रहे हैं तो वहीं बच्चों का भविष्य बनाने वाले अध्यापक अपनी हवा खुद अपने हाथ से करने को मजबूर है. क्योंकि स्कूलों में बिजली तक मयस्सर नहीं है. आखिर ये अध्यापक हाथों से हवा करने को क्यों मजबूर है ये बड़ा सवाल है.
145 प्राथमिक विद्यालयों की बिजली एपीसील ने काटी
दरअसल एनपीसीएल ने बिल जमा न करने के कारण गौतमबुध नगर के करीब 145 स्कूलों की बिजली काट दी. बिजली विभाग के अधीकारी आधे से ज़्यादा स्कूलों के मीटर तक उखाड़ कर ले गए. क्योंकि शिक्षा विभाग ने कई वर्षों से बिजली विभाग का बिल जमा नही किया था. ये बिल करीब 5 करोड़ है जिसको लेकर खींचतान जारी है.
कई बार शिक्षा विभाग को लिखा पत्र
ग्रेटर नोएडा के तुगलपुर प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक और शिक्षिका गर्मी के मौसम में अपने हाथ से अपनी हवा कर रहे हैं और अपना कर्तव्य भी निभा रहे हैं. कोरोना जैसी महामारी में भी शिक्षक अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभा रहे है. भीषण गर्मी के बाबजूद भी गौतमबुध नगर के शिक्षक बिना बिजली के 2 साल से यूं ही शिक्षा दे रहे हैं. बता दें कि गर्मी में बेहाल शिक्षक बिना पंखे के एक हाथ से हवा कर रहे है तो वहीं दूसरे हाथ से अपने कार्य का निर्वाह कर रहे हैं. दो विभागों की कारगुजारी में बेचारे अध्यापक पिस रहे हैं. आखिर करें तो करें क्या यह सवाल अभी तक गौतमबुध नगर के शिक्षा विभाग पर बना हुआ है.
विभाग की लापरवाही से शिक्षक, बच्चे परेशान
वहीं एनपीसीएल का कोई भी अधिकारी इसपर कुछ भी बोलने को तैयार नही है. कई बार एनपीसीएल के वाईस प्रेसिडेंट सारनाथ गांगुली से सम्पर्क साधा गया है लेकिन वो इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. विभागों के आपसी विवाद का दंड अध्यापक भुगत रहे है. बिजली के बिल जमा न होने के चलते शिक्षक इस गर्मी में परेशान हैं और इनका हाल बेहाल है. लेकिन सवाल आखिर खड़ा होता है तो शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों पर या फिर शिक्षा का दावा करने वाली सूबे की सरकार पर. हाल फिलहाल अधिकारियों ने तो शासन की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है. लेकिन क्या ये शिक्षक हाईटेक गौतमबुध नगर में यूं ही बिना बिजली के बच्चों को शिक्षा देते रहेंगे या फिर इस पर विभाग कोई सुनवाई करेगा यह सवाल ज्यों का त्यों बना हुआ है.