नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: गौतमबुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा में बिल्डर और एनपीसीएल की मिलीभगत के कारण निवेशकों को अपनी जेब से बेवजह का खर्चा वहन करना पड़ता है. ये वो खर्चा है जो उसे ना चाह कर भी देना पड़ता है. बिजली की सप्लाई को लेकर बिल्डर और एनपीसीएल का एक बड़ा खेल दिल्ली एनसीआर में चल रहा है.
हालांकि, एनपीसीएल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि बिल्डर की मनमानी के कारण ही निवेशकों को एक मोटी चपत लग रही है. निवेशकों को बिजली बैकअप देने के नाम पर मोटी चपत लग रही है.
पावर बैकअप के नाम पर निवेशकों से लेते हैं ₹20 प्रति यूनिट
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ऊंची-ऊंची इमारतें हैं और उन इमारतों में रहने के लिए निवेशकों ने अपना खून पसीने की कमाई जमा करके उनमें घर लिया है. निवेशक ये चाहता है कि उसे सोसायटी में रहने में कोई समस्या ना हो. यही सोचकर वो हाई राइज बिल्डिंग और सोसायटी में रहना पसंद करता है. लेकिन उसे ये नहीं पता कि उस सोसायटी में रहने के लिए उसे मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है. चाहे वो फ्लैट लेने से लेकर बिजली की सप्लाई लेने तक की रकम हो.
दरअसल, बिल्डर और एनपीसीएल की मिलीभगत से सोसायटियों में उपभोक्ताओं से बिजली सप्लाई के नाम पर और बिजली जाने के बाद पावर बैकअप देने के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है. इस खेल में अगर सबसे बड़ा नुकसान होता है. तो सीधे-सीधे वो उपभोक्ताओं को ही होता है. बिल्डर निवेशक को से पावर बैकअप के नाम पर ₹20 से ₹25 प्रति यूनिट का चार्ज लगाता है. जबकि वहीं सप्लाई की यूनिट पर यूनिट ₹7 प्रति यूनिट रहती है. यानी कि बिल्डर हर यूनिट के लिए ₹13 से लेकर ₹18 का अतिरिक्त चार्ज लेता है. इसके अलावा बिल्डर एनपीसीएल की ओर से दी गई बिजली होने के बावजूद भी सोसायटी में पावर बैकअप चालू रखता है. जिससे उसे मुनाफा मिलता है. ये मुनाफा या तो बंदरबांट होता है या फिर खुद बिल्डर अपने पास रखता है.
एनपीसीएल उपभोक्ता से ले रही है नियमानुसार पैसे
वहीं, एनपीसीएल के अधिकारी इसपर अपना पक्ष रखते हुए बता रहे हैं कि वो कोई भी काम गलत तरीके से नहीं कर सकते. एनपीसीएल या उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन यूपीपीसीएल की एक अपनी विधि कमेटी बनी हुई है. जिसमें सारे नियम और कायदे तय किए जाते हैं. साल 2003 में बनाए गए नियम के मुताबिक नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर सरकार उपभोक्ताओं को बिजली देती है. जिसमें उपभोक्ताओं से पर यूनिट सरकार की ओर से तय किए गए दाम पर ही दिया जाता है. लेकिन बिल्डर एनपीसीएल की बिजली विभाग से सोसाइटी में सप्लाई देने के नाम पर उपभोक्ताओं से ही मोटी रकम वसूलते हैं.
एनपीसीएल के अधिकारी ने का कहना है कि बिल्डर कॉमन एरिया में लाइट देने का चार्ज, इसके अलावा बेसमेंट में लाइट देने का चार्ज अतिरिक्त लगाते हैं. इतना ही नहीं बिल्डर सोसायटी में लाइट चली जाने के बाद पावर बैकअप के नाम पर प्रति यूनिट ₹20 उपभोक्ता से चार्ज करते हैं. बिजली की सप्लाई एनपीसीएल से सोसायटी में होने के बावजूद भी बिल्डर उपभोक्ताओं को बैकअप देता है. जिससे उपभोक्ताओं को पता नहीं चलता कि बिजली आ रही है या नहीं और उपभोक्ता उस बिजली को लेने के लिए प्रति यूनिट ₹20 बिल्डर को देता है.
पावर बैकअप और बिजली सप्लाई के बीच में एक डिवाइस
उनका कहना है कि बिल्डर उस एक्स्ट्रा पैसे को अपने पास ही रखता है. हालांकि अब एनपीसीएल ऐसे बिल्डरों के खिलाफ कसने की पूरी तैयारी कर चुकी है. पावर बैकअप और बिजली सप्लाई के बीच में एक डिवाइस लगाया जा रहा है. जिसमें सिर्फ लाइट जाने पर ही पावर बैकअप दिया जा सकता है. अगर बिजली आ रही है, तो सोसायटी में उपभोक्ताओं से पावर बैकअप नहीं लिया जाएगा. ये डिवाइस तैयार की है.
आरडब्लूए बिल्डर और बिजली विभाग के बीच का है बंदरबांट
पैसे कमाने की अंधी दौड़ में बिल्डर उपभोक्ताओं की गाढ़ी कमाई के साथ-साथ अपनी चालाकी से उपभोक्ताओं से ही अतिरिक्त रुपए लेने में भी गुरेज नहीं करता. चाहे उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े. हालांकि इस पूरे मामले पर बिल्डरों की तरफ से पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन बिल्डरों की तरफ से किसी ने भी अपना पक्ष नहीं रखा. इस बात से साफ जाहिर होता है कि बिल्डरों की कथनी और करनी में फर्क है. जिसका सीधा प्रभाव उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है, क्योंकि आखिर पैसा तो उपभोक्ता की जेब से ही जा रहा है.