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लॉकडाउन के कारण बंद पड़ी मिड-डे मील योजना, कोरोना के बीच मासूमों के सामने पेट भरने का संकट

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Published : May 22, 2021, 10:33 PM IST

देश का हर एक बच्चा स्वस्थ और शिक्षित हो, इस मकसद से साल 1995 में केंद्र सरकार ने मिड डे मील योजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन कोरोना काल और लॉकडाउन की वजह से हरियाणा के स्कूलों को भी बंद किया गया है. जिसकी वजह से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों को मिड डे मील योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

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लॉकडाउन के कारण बंद पड़ी मिड-डे मील योजना, कोरोना के बीच मासूमों के सामने पेट भरने का संकट

नई दिल्ली/नूंह: कोरोना वायरस की वजह से सरकारी और निजी स्कूलों पर ताला लटका है. इससे ना सिर्फ बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है बल्कि उन गरीब परिवारों के बच्चे भी पौष्टिक आहार से वंछित हो गए हैं, जिन्हें मिड डे मील के जरिए ही सही एक वक्त का पौष्टिक और भरपेट भोजन मिला करता था.

लॉकडाउन के कारण बंद पड़ी मिड-डे मील योजना, कोरोना के बीच मासूमों के सामने पेट भरने का संकट

पौष्टिक खाने को तरसे बच्चे

अगर बात करें हरियाणा के नूंह जिला की, जिसे नीति आयोग ने भी देश के सबसे पिछड़े जिलों में शामिल किया है. नूंह के ज्यादातर गरीब बच्चे जो स्कूल जाकर पौष्टिक खाना खाया करते थे. आज वो भी लॉकडाउन की वजह से भूखे रहने को मजबूर हैं. बच्चों ने बताया कि पहले स्कूल में उन्हें खीर, दूध, चावल और रोटी मिला करती थी, लेकिन अब सब बंद है. उन्हें घर में स्कूल जैसा पौष्टिक खाना नहीं मिल पा रहा है.

घर तक सूखा राशन पहुंचाने की मांग

अभिभावकों ने बताया कि पिछले साल तो बच्चों को सूखा राशन शिक्षा विभाग की ओर से वितरित किया गया था, लेकिन इस बार कोरोना कि दूसरी लहर में बच्चों को ना तो पका हुआ भोजन मिल पा रहा है और ना ही सूखा राशन उनके घर पर वितरित किया जा रहा है. ऐसे में उनकी मांग है कि सरकार की ओर ध्यान दे, ताकि उनके बच्चे फिर से पौष्टिक भोजन खा सके.

समाजसेवी राजुद्दीन ने कहा कि गरीबी के साथ-साथ हरियाणा का नूंह जिला उन जिलों में भी शामिल हैं. जहां महिलाओं से लेकर बच्चों में कुपोषण बहुत ज्यादा पाया जाता है. ऐसे में शिक्षा विभाग को ये सुनिश्चत जरूर करना चाहिए कि दोपहर का भोजन बच्चों को मिल जाए.

ये भी पढ़िए: दिल्ली में कोरोना: 31 मार्च के बाद सबसे कम केस, 17 अप्रैल के बाद सबसे कम मौत

कुल मिलाकर कोरोना ने वैसे तो सारे सिस्टम को प्रभावित किया है, लेकिन पहली से आठवीं तक के बच्चों के मिड डे मील के भोजन पर भी इसका गहरा असर पड़ा है. बच्चों को पिछले कई महीने से स्कूल बंद होने के कारण पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है. अभिभावकों की भी माली हालत भी इतनी अच्छी नहीं है कि वो अपने बच्चों को पौष्टिक खाना खिला सकें. ऐसे में कोरोना के दूरगामी परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं. लिहाजा सरकार को बच्चों के स्वास्थ्य को देखते हुए जल्द से जल्द पिछले साल की तरह सूखा राशन घरों में वितरण करना चाहिए.

ये भी पढ़िए: विराट कोहली को बल्लेबाजी सिखाने वाले कोच सुरेश बत्रा निधन

क्या है मिड डे मील योजना?

मिड डे मील के तहत सरकारी प्राइमरी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को 100 ग्राम और अपर प्राइमरी में 150 ग्राम खाद्यान्न मुहैया कराने का प्रावधान किया गया है. केंद्र सरकार के मुताबिक 15 अगस्त 1995 को शुरू हुई इस योजना से इस समय देश के 9 करोड़ स्कूली बच्चे लाभान्वित होते हैं.

नई दिल्ली/नूंह: कोरोना वायरस की वजह से सरकारी और निजी स्कूलों पर ताला लटका है. इससे ना सिर्फ बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है बल्कि उन गरीब परिवारों के बच्चे भी पौष्टिक आहार से वंछित हो गए हैं, जिन्हें मिड डे मील के जरिए ही सही एक वक्त का पौष्टिक और भरपेट भोजन मिला करता था.

लॉकडाउन के कारण बंद पड़ी मिड-डे मील योजना, कोरोना के बीच मासूमों के सामने पेट भरने का संकट

पौष्टिक खाने को तरसे बच्चे

अगर बात करें हरियाणा के नूंह जिला की, जिसे नीति आयोग ने भी देश के सबसे पिछड़े जिलों में शामिल किया है. नूंह के ज्यादातर गरीब बच्चे जो स्कूल जाकर पौष्टिक खाना खाया करते थे. आज वो भी लॉकडाउन की वजह से भूखे रहने को मजबूर हैं. बच्चों ने बताया कि पहले स्कूल में उन्हें खीर, दूध, चावल और रोटी मिला करती थी, लेकिन अब सब बंद है. उन्हें घर में स्कूल जैसा पौष्टिक खाना नहीं मिल पा रहा है.

घर तक सूखा राशन पहुंचाने की मांग

अभिभावकों ने बताया कि पिछले साल तो बच्चों को सूखा राशन शिक्षा विभाग की ओर से वितरित किया गया था, लेकिन इस बार कोरोना कि दूसरी लहर में बच्चों को ना तो पका हुआ भोजन मिल पा रहा है और ना ही सूखा राशन उनके घर पर वितरित किया जा रहा है. ऐसे में उनकी मांग है कि सरकार की ओर ध्यान दे, ताकि उनके बच्चे फिर से पौष्टिक भोजन खा सके.

समाजसेवी राजुद्दीन ने कहा कि गरीबी के साथ-साथ हरियाणा का नूंह जिला उन जिलों में भी शामिल हैं. जहां महिलाओं से लेकर बच्चों में कुपोषण बहुत ज्यादा पाया जाता है. ऐसे में शिक्षा विभाग को ये सुनिश्चत जरूर करना चाहिए कि दोपहर का भोजन बच्चों को मिल जाए.

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कुल मिलाकर कोरोना ने वैसे तो सारे सिस्टम को प्रभावित किया है, लेकिन पहली से आठवीं तक के बच्चों के मिड डे मील के भोजन पर भी इसका गहरा असर पड़ा है. बच्चों को पिछले कई महीने से स्कूल बंद होने के कारण पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है. अभिभावकों की भी माली हालत भी इतनी अच्छी नहीं है कि वो अपने बच्चों को पौष्टिक खाना खिला सकें. ऐसे में कोरोना के दूरगामी परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं. लिहाजा सरकार को बच्चों के स्वास्थ्य को देखते हुए जल्द से जल्द पिछले साल की तरह सूखा राशन घरों में वितरण करना चाहिए.

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क्या है मिड डे मील योजना?

मिड डे मील के तहत सरकारी प्राइमरी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को 100 ग्राम और अपर प्राइमरी में 150 ग्राम खाद्यान्न मुहैया कराने का प्रावधान किया गया है. केंद्र सरकार के मुताबिक 15 अगस्त 1995 को शुरू हुई इस योजना से इस समय देश के 9 करोड़ स्कूली बच्चे लाभान्वित होते हैं.

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