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'पेट की आग सड़क पर खड़ा करवा देती है, रिक्शा चलाता था...खाने को एक दाना नहीं है' - Rickshaw driver

अर्थला इलाके में रहने वाले बुजुर्ग राजू के घर खाने पीने का भारी संकट गहरा गया है. राजू का कहना है कि पेट की आग काफी बढ़ी है लेकिन उसे बुझाने के लिए कोई इंतजाम नहीं है.

Rickshaw driver face problerm due to lockdown in ghaziabad
Rickshaw driver face problerm due to lockdown in ghaziabad
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Published : May 5, 2020, 11:46 AM IST

Updated : May 5, 2020, 12:19 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद के अर्थला इलाके में रहने वाले बुजुर्ग राजू के लिए लॉकडाउन कहर बनकर टूटा है. लॉकडाउन से पहले राजू रिक्शा चलाया करते थे. सुबह के समय उन्हें सब्जी लाने और ले जाने का काम भी मिल जाता था. लेकिन अब रिक्शा चलाने का काम पूरी तरह से ठप हो चुका है. सब्जी मंडी में उन्हें एंट्री भी नहीं मिल पाती है.

लॉकडाउन के चलते घर में खाने को राशन नहीं
4 बच्चों के परिवार में नहीं जल रहा चूल्हा


राजू के चार छोटे बच्चे हैं और खाने पीने के लिए भारी संकट गहरा गया है. अर्थला इलाके में एक टूटे-फूटे मकान में राजू और उनका परिवार रहता है. राजू का कहना है कि पेट की आग काफी बढ़ी है लेकिन उसे बुझाने के लिए कोई इंतजाम नहीं है.

दिन में जाकर रोड पर खड़े हो जाते हैं. अगर कोई खाने पीने के लिए कुछ दे जाता है, तो काम चल जाता है. घर का चूल्हा शांत हो गया है क्योंकि घर में खाने के लिए दाना तक नहीं है. चूल्हा जलाने के लिए पैसे नहीं हैं.


फिर आएंगे अच्छे दिन

राजू को उम्मीद है कि उनके फिर से वही पुराने दिन लौट आएंगे. लॉकडाउन खुलने का वह बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. राजू और उनके परिवार ने हिम्मत नहीं हारी है और इस मुश्किल घड़ी में भी हालातों का सामना करते हुए संघर्षों से अपना जीवन आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद के अर्थला इलाके में रहने वाले बुजुर्ग राजू के लिए लॉकडाउन कहर बनकर टूटा है. लॉकडाउन से पहले राजू रिक्शा चलाया करते थे. सुबह के समय उन्हें सब्जी लाने और ले जाने का काम भी मिल जाता था. लेकिन अब रिक्शा चलाने का काम पूरी तरह से ठप हो चुका है. सब्जी मंडी में उन्हें एंट्री भी नहीं मिल पाती है.

लॉकडाउन के चलते घर में खाने को राशन नहीं
4 बच्चों के परिवार में नहीं जल रहा चूल्हा


राजू के चार छोटे बच्चे हैं और खाने पीने के लिए भारी संकट गहरा गया है. अर्थला इलाके में एक टूटे-फूटे मकान में राजू और उनका परिवार रहता है. राजू का कहना है कि पेट की आग काफी बढ़ी है लेकिन उसे बुझाने के लिए कोई इंतजाम नहीं है.

दिन में जाकर रोड पर खड़े हो जाते हैं. अगर कोई खाने पीने के लिए कुछ दे जाता है, तो काम चल जाता है. घर का चूल्हा शांत हो गया है क्योंकि घर में खाने के लिए दाना तक नहीं है. चूल्हा जलाने के लिए पैसे नहीं हैं.


फिर आएंगे अच्छे दिन

राजू को उम्मीद है कि उनके फिर से वही पुराने दिन लौट आएंगे. लॉकडाउन खुलने का वह बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. राजू और उनके परिवार ने हिम्मत नहीं हारी है और इस मुश्किल घड़ी में भी हालातों का सामना करते हुए संघर्षों से अपना जीवन आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

Last Updated : May 5, 2020, 12:19 PM IST
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