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'जवाब मांगेंगे', रोंगटे खड़े कर देगी कुमार विश्वास की ये कविता

कवि कुमार विश्वास ने प्रवासी मजदूरों का दर्द कविता के जरिए बयां किया है. उन्होंने कविता में प्रवासी मजदूरों के हर पहलू को छूने की कोशिश की है.

kumar vishwas new poem
कुमार विश्वास की कविता
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Published : May 16, 2020, 8:24 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: मशहूर कवि कुमार विश्वास ने प्रवासी मजदूरों का दर्द कविता के जरिए बयां किया है. उन्होंने कविता में प्रवासी मजदूरों के हर पहलू को छूने की कोशिश की है. वो इस कविता से यह भी दर्शा रहे हैं कि रात के 3:00 बजे, जहां सब लोग घरों में सुख के कवच में हैं, तो वही अनसुनी सिसकियां मजदूरों पर बोझ बनी हुई हैं. कविता का नाम है 'जवाब मांगेंगे'.

कविता के अल्फाज दिल को छू लेने वाले हैं-

कुमार विश्वास की कविता
जवाब मांगेंगे!! शहर की रौशनी में छूटा हुआ, टूटा हुआसड़क के रास्ते से गांव जा रहा है गांव...बिना छठ, ईद, दिवाली या ब्याह-कारज केबिलखते बच्चों को वापस बुला रहा है गांव...रात के तीन बज रहे हैं और दीवाना मैंअपने सुख के कवच में मौन की शर-शय्या परअनसुनी सिसकियों के बोझ तले, रोता हुआजाने क्यूं जागता हूं, जबकि दुनिया सोती है...मुझको आवाज़ सी आती है कि मुझ से कुछ दूरजिसके दुर्योधन है सत्ता में, वो भारत मातारेल की पटरियों पे बिखरी हुई खून सनीरोटियों से लिपट के ज़ार-ज़ार रोती हैंवो जिनके महके पसीने को गिरवी रखकर हीतुम्हारी सोच की पगडंडी राजमार्ग बनीलोक सड़कों पे था और लोकशाह बंगले में!कभी तो लौट कर वो ये हिसाब मांगेंगे ये रोती मांए, बिलखते हुए बच्चे, बूढ़े बड़ी हवेलियों, ख़ुशहाल मोहल्ले वालोंकटे अंगूठों की नीवों पे खड़े हस्तिनापुर!ये लोग एक दिन तुझसे जवाब मांगेंगे- डॉ कुमार विश्वास'पटरी पर रोटियां और दर्द की दास्तान'

कविता के शब्दों में मजदूरों के पसीने की महक का भी जिक्र है, तो वहीं हाल ही में रेल की पटरी पर मजदूरों के साथ हुए हादसे की दर्दनाक कहानी को भी बयां किया गया है. मजदूरों के मासूम बच्चों का जिक्र भी किया गया है. तो वहीं शहर से दूर जाने की मजबूरी को भी कवि कुमार विश्वास ने बखूबी शब्दों में पिरोया है. कविता सुनकर सामने आया मजदूरों का दर्द दिल को पसीज कर रख देने वाला है. सवाल है, कि कब मजदूरों उनकी मंजिल मिलेगी. अंत में वो कहते हैं कि ये सभी मजदूर एक ना एक दिन सबसे जवाब मांगेंगे.

नई दिल्ली/गाजियाबाद: मशहूर कवि कुमार विश्वास ने प्रवासी मजदूरों का दर्द कविता के जरिए बयां किया है. उन्होंने कविता में प्रवासी मजदूरों के हर पहलू को छूने की कोशिश की है. वो इस कविता से यह भी दर्शा रहे हैं कि रात के 3:00 बजे, जहां सब लोग घरों में सुख के कवच में हैं, तो वही अनसुनी सिसकियां मजदूरों पर बोझ बनी हुई हैं. कविता का नाम है 'जवाब मांगेंगे'.

कविता के अल्फाज दिल को छू लेने वाले हैं-

कुमार विश्वास की कविता
जवाब मांगेंगे!! शहर की रौशनी में छूटा हुआ, टूटा हुआसड़क के रास्ते से गांव जा रहा है गांव...बिना छठ, ईद, दिवाली या ब्याह-कारज केबिलखते बच्चों को वापस बुला रहा है गांव...रात के तीन बज रहे हैं और दीवाना मैंअपने सुख के कवच में मौन की शर-शय्या परअनसुनी सिसकियों के बोझ तले, रोता हुआजाने क्यूं जागता हूं, जबकि दुनिया सोती है...मुझको आवाज़ सी आती है कि मुझ से कुछ दूरजिसके दुर्योधन है सत्ता में, वो भारत मातारेल की पटरियों पे बिखरी हुई खून सनीरोटियों से लिपट के ज़ार-ज़ार रोती हैंवो जिनके महके पसीने को गिरवी रखकर हीतुम्हारी सोच की पगडंडी राजमार्ग बनीलोक सड़कों पे था और लोकशाह बंगले में!कभी तो लौट कर वो ये हिसाब मांगेंगे ये रोती मांए, बिलखते हुए बच्चे, बूढ़े बड़ी हवेलियों, ख़ुशहाल मोहल्ले वालोंकटे अंगूठों की नीवों पे खड़े हस्तिनापुर!ये लोग एक दिन तुझसे जवाब मांगेंगे- डॉ कुमार विश्वास'पटरी पर रोटियां और दर्द की दास्तान'

कविता के शब्दों में मजदूरों के पसीने की महक का भी जिक्र है, तो वहीं हाल ही में रेल की पटरी पर मजदूरों के साथ हुए हादसे की दर्दनाक कहानी को भी बयां किया गया है. मजदूरों के मासूम बच्चों का जिक्र भी किया गया है. तो वहीं शहर से दूर जाने की मजबूरी को भी कवि कुमार विश्वास ने बखूबी शब्दों में पिरोया है. कविता सुनकर सामने आया मजदूरों का दर्द दिल को पसीज कर रख देने वाला है. सवाल है, कि कब मजदूरों उनकी मंजिल मिलेगी. अंत में वो कहते हैं कि ये सभी मजदूर एक ना एक दिन सबसे जवाब मांगेंगे.

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