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निर्भया कांड के 9 साल बाद : शाम 7 बजे के बाद घर से निकलने में डरती है आधी आबादी - बस में छेड़छाड़ की घटनाएं

शाम 7 बजे के बाद घर से बाहर निकलने में आधी आबादी को डर लगता है. स्कूल-कॉलेज या ऑफिस गई बहन-बेटियां जब तक घर लौट नहीं आती हैं, घर वालों की सांसें थमी रहती हैं. निर्भया कांड की नौवीं बरसी पर गाजियाबाद की महिलाएं खौफ की दास्तां बयां कर रही हैं.

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निर्भया कांड के 9 साल बाद : शाम 7 बजे के बाद घर से निकलने में डरती है आधी आबादी
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Published : Dec 16, 2021, 7:21 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद : निर्भया कांड के आज नौ बरस बीत चुके हैं, लेकिन उस दरिंदगी का खौफ अब भी आधी आबादी के दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है. इतने बरस बीत जाने के बावजूद हमारा समाज महिलाओं को एक बेखौफ महौल नहीं दे सका है. तमाम कसमें, सारे संकल्प बस दिखावा साबित हुए. आज भी कोई मिनट ऐसा नहीं, जिसमें देश के किसी कोने में बहन, बेटियों या बच्चियों की इज्जत से खिलवाड़ नहीं हो रहा है. आए दिन थानों और चौकियों से लेकर अदालतों तक में लाखों मामले सिर्फ आधी आबादी की आबरू से खिलवाड़ करने के दर्ज होते हैं.

निर्भया कांड की नौवीं बरसी पर भी दरिंदगी की यादें मन के किसी कोने में घर किए हुए हैं. खौफ का वो मंजर दिल के किसी हिस्से पर अपनी छाप आज भी बरकरार रखे है. गाजियाबाद की महिलाओं और बेटियों ने समाज के रवैये और मौजूदा हालात में खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती हैं, इस पर खुलकर बात की. समाज कैसे स्वस्थ बने, माहौल कैसे सुधरे इस पर भी उन्होंने खुलकर अपनी राय रखी. पल्लवी का कहना है कि जो उस समय हुआ था उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. हम भी चाहते हैं कि हमें एक सेफ एनवायरनमेंट मिले. जब हमें सुरक्षित माहौल मिलेगा तभी हमारी आने वाली जनरेशन भी सेफ रहेगी. हमें एक तरफ फैमिली का फुल सपोर्ट चाहिए तो एक सिविलाइज्ड समाज भी चाहिए. ऐसा नहीं हो सकता कि घर में तो सिद्धांतों और संयम वाले बन जाएं और बाहर जाते ही सारी कसमें, सारे वादे, सारे उसूल भूल जाएं. ऐसे तो बस खोखला समाज ही बनेगा. जिसकी बानगी अक्सर देखने को मिलती रहती है.

निर्भया कांड के 9 साल बाद : शाम 7 बजे के बाद घर से निकलने में डरती है आधी आबादी

निर्भया कांड की खौफनाक यादें: शाम 7 बजे के बाद घर से बाहर जाने में डर लगता है

ज्यादातर महिलाओं और युवतियों का कहना है कि डर पहले भी लगता था, और डर आज भी लगता है. मगर चीजें तो बदलती रहती हैं, इसलिए हमें उम्मीदें भी नहीं छोड़नी चाहिए. महिलाओं की सुरक्षा संबंधी उपाय हमेशा बढ़ते रहने चाहिए. सिस्टम को और समाज को अपने स्तर से किसी तरह की कमी नहीं बाकी रखनी चाहिए. मगर ऐसा नहीं हो पा रहा है. चंचल ने कहा कि आज भी जब बेटियां घर से बाहर जाती हैं तो तब तक परिवार चिंता में रहता है, जब तक वह वापस नहीं लौट आती हैं. बच्चे वापस लौट आते हैं तभी चैन मिल पाता है. अगर बेटियां शाम तक बाहर रहती हैं तो डर लगा रहता है. उन्होंने कहा कि जब से निर्भया कांड हुआ है, तब से बेटियों को बस में भेजने से डर लगता है. क्योंकि बस में छेड़छाड़ की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं.

Even after nice years of Nirbhaya case women afraid to leave house after seven pm
निर्भया कांड के 9 साल बाद : शाम 7 बजे के बाद घर से निकलने में डरती है आधी आबादी



इसे भी पढ़ें : दिल्ली की छात्राओं में आक्रोश, बताया- कैसे होगी महिलाएं सुरक्षित

गाजियाबाद की ही रहने वाली छात्रा श्वेता ने कहा कि निर्भया जैसी घटना को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. मगर इस बात का हमें ध्यान रखना है कि दोबारा ऐसी घटनाएं बार-बार ना हों. उन्होंने कहा कि सेफ तो आज ही महसूस नहीं कर पाते हैं. मगर सरकार बेहतर काम कर रही है. आए दिन छेड़खानी व रेप जैसी वारदातें हो रही हैं. अपराधियों पर कोई लगाम नहीं लग सका है. आज भी निर्भया कांड की सोचकर डर जाते हैं. सबसे ज्यादा मुश्किल शाम को 7:00 बजे के बाद होती है. उन्होंने कहा कि यह सबकी जिम्मेदारी है कि महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल तैयार किया जाए.


नई दिल्ली/गाजियाबाद : निर्भया कांड के आज नौ बरस बीत चुके हैं, लेकिन उस दरिंदगी का खौफ अब भी आधी आबादी के दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है. इतने बरस बीत जाने के बावजूद हमारा समाज महिलाओं को एक बेखौफ महौल नहीं दे सका है. तमाम कसमें, सारे संकल्प बस दिखावा साबित हुए. आज भी कोई मिनट ऐसा नहीं, जिसमें देश के किसी कोने में बहन, बेटियों या बच्चियों की इज्जत से खिलवाड़ नहीं हो रहा है. आए दिन थानों और चौकियों से लेकर अदालतों तक में लाखों मामले सिर्फ आधी आबादी की आबरू से खिलवाड़ करने के दर्ज होते हैं.

निर्भया कांड की नौवीं बरसी पर भी दरिंदगी की यादें मन के किसी कोने में घर किए हुए हैं. खौफ का वो मंजर दिल के किसी हिस्से पर अपनी छाप आज भी बरकरार रखे है. गाजियाबाद की महिलाओं और बेटियों ने समाज के रवैये और मौजूदा हालात में खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती हैं, इस पर खुलकर बात की. समाज कैसे स्वस्थ बने, माहौल कैसे सुधरे इस पर भी उन्होंने खुलकर अपनी राय रखी. पल्लवी का कहना है कि जो उस समय हुआ था उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. हम भी चाहते हैं कि हमें एक सेफ एनवायरनमेंट मिले. जब हमें सुरक्षित माहौल मिलेगा तभी हमारी आने वाली जनरेशन भी सेफ रहेगी. हमें एक तरफ फैमिली का फुल सपोर्ट चाहिए तो एक सिविलाइज्ड समाज भी चाहिए. ऐसा नहीं हो सकता कि घर में तो सिद्धांतों और संयम वाले बन जाएं और बाहर जाते ही सारी कसमें, सारे वादे, सारे उसूल भूल जाएं. ऐसे तो बस खोखला समाज ही बनेगा. जिसकी बानगी अक्सर देखने को मिलती रहती है.

निर्भया कांड के 9 साल बाद : शाम 7 बजे के बाद घर से निकलने में डरती है आधी आबादी

निर्भया कांड की खौफनाक यादें: शाम 7 बजे के बाद घर से बाहर जाने में डर लगता है

ज्यादातर महिलाओं और युवतियों का कहना है कि डर पहले भी लगता था, और डर आज भी लगता है. मगर चीजें तो बदलती रहती हैं, इसलिए हमें उम्मीदें भी नहीं छोड़नी चाहिए. महिलाओं की सुरक्षा संबंधी उपाय हमेशा बढ़ते रहने चाहिए. सिस्टम को और समाज को अपने स्तर से किसी तरह की कमी नहीं बाकी रखनी चाहिए. मगर ऐसा नहीं हो पा रहा है. चंचल ने कहा कि आज भी जब बेटियां घर से बाहर जाती हैं तो तब तक परिवार चिंता में रहता है, जब तक वह वापस नहीं लौट आती हैं. बच्चे वापस लौट आते हैं तभी चैन मिल पाता है. अगर बेटियां शाम तक बाहर रहती हैं तो डर लगा रहता है. उन्होंने कहा कि जब से निर्भया कांड हुआ है, तब से बेटियों को बस में भेजने से डर लगता है. क्योंकि बस में छेड़छाड़ की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं.

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गाजियाबाद की ही रहने वाली छात्रा श्वेता ने कहा कि निर्भया जैसी घटना को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. मगर इस बात का हमें ध्यान रखना है कि दोबारा ऐसी घटनाएं बार-बार ना हों. उन्होंने कहा कि सेफ तो आज ही महसूस नहीं कर पाते हैं. मगर सरकार बेहतर काम कर रही है. आए दिन छेड़खानी व रेप जैसी वारदातें हो रही हैं. अपराधियों पर कोई लगाम नहीं लग सका है. आज भी निर्भया कांड की सोचकर डर जाते हैं. सबसे ज्यादा मुश्किल शाम को 7:00 बजे के बाद होती है. उन्होंने कहा कि यह सबकी जिम्मेदारी है कि महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल तैयार किया जाए.


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