नई दिल्ली/गाजियाबाद : महान अभियंता भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में हर साल उनके जन्मदिन (15 सितंबर) को राष्ट्रीय अभियंता दिवस (इंजीनियर्स डे) के रूप में मनाया जाता है. अभियंता दिवस, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के हर क्षेत्र में हमारे इंजीनियर्स की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करने के लिए समर्पित है.
अभियंता दिवस के मौके पर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के प्रांगण में उत्तर प्रदेश विकास प्राधिकरण डिप्लोमा इंजीनियर संघ की गाजियाबाद इकाई द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया. महासंघ के अंतर्गत आने वाले 28 विभागों के इंजीनियर्स ने इसमें हिस्सा लिया.
उत्तर प्रदेश विकास प्राधिकरण डिप्लोमा इंजीनियर संघ की गाजियाबाद इकाई के अध्यक्ष ज्ञान प्रकाश द्विवेदी ने बताया कि मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में आज इंजीनियर्स डे मनाया जा रहा है. जिला एमएमजी अस्पताल के सहयोग से इंजीनियर्स डे पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया है.
तकरीबन 28 विभागों ( सिंचाई, आवास विकास, नगर निगम, विद्युत विभाग, पीडब्ल्यूडी) में काम करने वाले इंजीनियर रक्तदान कर रहे हैं. मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने जिला एमएमजी अस्पताल से टीम भेजी है.
क्यों मनाया जाता है अभियंता दिवस
प्रख्यात इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के योगदान को स्मरण करने के लिए हर साल देशभर में 15 सितंबर को राष्ट्रीय अभियंता दिवस मनाया जाता है. एम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के चिकबल्लापुर जिले के मुद्दनेहल्ली गांव में हुआ था.
देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित विश्वेश्वरैया ने मद्रास विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) की पढ़ाई की थी और पुणे के कॉलेज ऑफ साइंस से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. बाद में उन्होंने पुणे के पास खड़कवासला जलाशय में एक सिंचाई प्रणाली का पेटेंट कराया और स्थापित किया. इसका उद्देश्य खाद्य आपूर्ति स्तर और भंडारण को उच्चतम स्तर तक बढ़ाना था. इस सिस्टम को ग्वालियर के तिघरा बांध और मैसूर (अब मैसुरु) के कृष्णराज सागर (केआरएस) बांध पर भी स्थापित किया गया था, जिसके बाद यह उस समय एशिया का सबसे बड़ा जलाशय बन गया था.
किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें 1915 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के कमांडर के रूप में नाइट की उपाधि से सम्मानित किया था. उन्होंने स्वचालित जलद्वार बनाए जो बाद में तिघरा डैम (मध्य प्रदेश) और केआरएस डैम (कर्नाटक) में भी उपयोग किए गए थे. इस पेटेंट डिजाइन के लिए, उन्हें रॉयल्टी के रूप में बड़ी आय प्राप्त होनी थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया ताकि सरकार इस धन का उपयोग अधिक विकासात्मक परियोजनाओं के लिए कर सके.
हैदराबाद में, विश्वेश्वरैया ने बाढ़ सुरक्षा प्रणाली को डिजाइन किया था, जिससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली. उन्हें 1908 में मैसूर का दीवान (प्रधानमंत्री पद) बनाया गया और सभी विकास परियोजनाओं की पूर्ण जिम्मेदारी दी गई. उनके कार्यकाल में मैसूर में कृषि, सिंचाई, औद्योगिकीकरण, शिक्षा, बैंकिंग और वाणिज्य के क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए. आजादी के बाद साल 1955 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
वह लंदन इंस्टीट्यूशन ऑफ सिविल इंजीनियर्स के सदस्य बने. इससे पहले उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) बैंगलोर द्वारा फेलोशिप प्रदान की गई. 1962 में उनका निधन हो गया.
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