ETV Bharat / city

हमें अपने सांस लेने के अधिकार के लिए लड़ाई लड़नी होगी: डॉ. अर्जुन खन्ना - how to take care in pollution

सीनियर कंसल्टेंट चेस्ट फिजिशियन डॉ. अर्जुन खन्ना बताते हैं कि वायु प्रदूषण का न केवल फेफड़ों पर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और आईक्यू सहित शरीर के अंगों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. डॉ. खन्ना कहते हैं कि बड़े पैमाने पर हमें अपने सांस लेने के अधिकार के लिए लड़ाई लड़नी होगी जिसमे हर व्यक्ति का योगदान अपेक्षित है.

डॉ. अर्जुन खन्ना
डॉ. अर्जुन खन्ना
author img

By

Published : Dec 2, 2021, 10:39 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों की याद में हर साल दो दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है. भोपाल गैस आपदा को दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदा माना जाता है और यह अत्यधिक हानिकारक मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस के रिसाव के कारण हुई थी. इस त्रासदी में लगभग 3787 लोग मारे गए थे. पटाखे, बम विस्फोट, औद्योगिक क्षेत्रों से जहरीली गैसों का रिसाव, वाहनों से निकलने वाला धुआं आदि प्रदूषण के कारण हैं.

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक आपदाओं के नियंत्रण के बारे में जागरूकता फैलाना और प्रदूषण के नियंत्रण की दिशा में प्रयास करना है. इसके साथ ही इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को हमारी वायु, जल और मिट्टी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए प्रोत्साहित करना है.

सीनियर कंसल्टेंट चेस्ट फिजिशियन डॉ. अर्जुन खन्ना बताते हैं कि वायु प्रदूषण का न केवल फेफड़ों पर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और आईक्यू सहित शरीर के अंगों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. डॉ. खन्ना कहते हैं कि बड़े पैमाने पर हमें अपने सांस लेने के अधिकार के लिए लड़ाई लड़नी होगी जिसमे हर व्यक्ति का योगदान अपेक्षित है. व्यक्तिगत स्तर पर, कुछ चीजें हैं जो हमें प्रदूषण के खतरे से बेहतर तरीके से निपटने में मदद कर सकती हैं.

*सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, अगर आपको सांस की बीमारी है तो अपने डॉक्टर से समय-समय परामर्श लेते रहे. यदि आवश्यक होगा तो डॉक्टर सांस की दवाएं, पंप, रोटाकैप आदि लिखेंगे. पंप और इनहेलर का उपयोग करने में संकोच न करें. अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो ये दवाएं बिल्कुल सुरक्षित हैं और सांस लेने में मदद करेंगी.

*जब भी आप अपने घर से बाहर निकलें तो अपने चेहरे और नाक को ढंकने के लिए एन-95 मास्क का इस्तेमाल करें. ये मास्क एक शेल्फ लाइफ के साथ आते हैं और इन्हें समय-समय पर बदलने की आवश्यकता होती है.

*यदि आपको कोई पुरानी बीमारी है तो अपने चिकित्सक से पूछें कि क्या आपको निमोनिया और फ्लू के टीके दिए जा सकते हैं. वायु प्रदूषण, आपको फेफड़ों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है और टीके इन संक्रमणों को रोकने में आपकी मदद करेंगे. यह देखा गया है कि हमारे घर और दफ्तर के अंदर हवा की गुणवत्ता कई बार बाहर की हवा से भी बदतर होती है. बहुत से लोग हमसे पूछते हैं कि क्या एयर प्यूरीफायर मददगार हैं. वैसे अगर आप ऐसी जगह पर रहते हैं जहां हवा की गुणवत्ता खराब है और परिवार के किसी सदस्य को कोई पुरानी हृदय-श्वसन संबंधी बीमारी है, तो एयर प्यूरीफायर खरीदना समझदारी है.

*इन उपायों के अलावा, अच्छी तरह से संतुलित स्वस्थ आहार लें. अपने आहार में फल, सब्जियां और नट्स शामिल करें और हर दिन किसी न किसी प्रकार की शारीरिक गतिविधि करें.

ये भी पढ़ें- दिल्ली की सभी शैक्षणिक संस्थाएं अगले आदेश तक रहेंगी बंद, SC ने आज लगाई थी फटकार



नियोनेटोलॉजी एंड पीडियाट्रिक्स कंसल्टेंट डॉ दीपिका रस्तोगी ने युवा, शिशुओं और बच्चों पर प्रदूषण के प्रभाव को लेकर कहा कि वायु प्रदूषण का मतलब हवा की खराब गुणवत्ता है. जो नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन जैसी कणों और गैसों द्वारा खराब होती है. प्रदूषण दुनिया भर में सबसे कमजोर आबादी को प्रभावित करता है. शिशुओं और बच्चों को कई कारणों से खराब गुणवत्ता वाली हवा के संपर्क में आने से विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

डॉ. दीपिका का कहना है कि वायु प्रदूषण बच्चों को उनके जीवन के विकास के चरण के दौरान प्रभावित करता है. जिससे संभावित रूप से आजीवन स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं. प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों के विकास और वृद्धि को प्रभावित करता है. बचपन में खराब वायु गुणवत्ता का लगातार संपर्क बच्चों के फेफड़ों के कार्य को प्रभावित करता है, जिससे उन्हें अस्थमा और पुरानी सांस की बीमारियों का शिकार होना पड़ता है. वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से इन छोटे बच्चों के मस्तिष्क पर भी दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है.

नई दिल्ली/गाजियाबाद: भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों की याद में हर साल दो दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है. भोपाल गैस आपदा को दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदा माना जाता है और यह अत्यधिक हानिकारक मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस के रिसाव के कारण हुई थी. इस त्रासदी में लगभग 3787 लोग मारे गए थे. पटाखे, बम विस्फोट, औद्योगिक क्षेत्रों से जहरीली गैसों का रिसाव, वाहनों से निकलने वाला धुआं आदि प्रदूषण के कारण हैं.

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक आपदाओं के नियंत्रण के बारे में जागरूकता फैलाना और प्रदूषण के नियंत्रण की दिशा में प्रयास करना है. इसके साथ ही इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को हमारी वायु, जल और मिट्टी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए प्रोत्साहित करना है.

सीनियर कंसल्टेंट चेस्ट फिजिशियन डॉ. अर्जुन खन्ना बताते हैं कि वायु प्रदूषण का न केवल फेफड़ों पर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और आईक्यू सहित शरीर के अंगों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. डॉ. खन्ना कहते हैं कि बड़े पैमाने पर हमें अपने सांस लेने के अधिकार के लिए लड़ाई लड़नी होगी जिसमे हर व्यक्ति का योगदान अपेक्षित है. व्यक्तिगत स्तर पर, कुछ चीजें हैं जो हमें प्रदूषण के खतरे से बेहतर तरीके से निपटने में मदद कर सकती हैं.

*सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, अगर आपको सांस की बीमारी है तो अपने डॉक्टर से समय-समय परामर्श लेते रहे. यदि आवश्यक होगा तो डॉक्टर सांस की दवाएं, पंप, रोटाकैप आदि लिखेंगे. पंप और इनहेलर का उपयोग करने में संकोच न करें. अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो ये दवाएं बिल्कुल सुरक्षित हैं और सांस लेने में मदद करेंगी.

*जब भी आप अपने घर से बाहर निकलें तो अपने चेहरे और नाक को ढंकने के लिए एन-95 मास्क का इस्तेमाल करें. ये मास्क एक शेल्फ लाइफ के साथ आते हैं और इन्हें समय-समय पर बदलने की आवश्यकता होती है.

*यदि आपको कोई पुरानी बीमारी है तो अपने चिकित्सक से पूछें कि क्या आपको निमोनिया और फ्लू के टीके दिए जा सकते हैं. वायु प्रदूषण, आपको फेफड़ों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है और टीके इन संक्रमणों को रोकने में आपकी मदद करेंगे. यह देखा गया है कि हमारे घर और दफ्तर के अंदर हवा की गुणवत्ता कई बार बाहर की हवा से भी बदतर होती है. बहुत से लोग हमसे पूछते हैं कि क्या एयर प्यूरीफायर मददगार हैं. वैसे अगर आप ऐसी जगह पर रहते हैं जहां हवा की गुणवत्ता खराब है और परिवार के किसी सदस्य को कोई पुरानी हृदय-श्वसन संबंधी बीमारी है, तो एयर प्यूरीफायर खरीदना समझदारी है.

*इन उपायों के अलावा, अच्छी तरह से संतुलित स्वस्थ आहार लें. अपने आहार में फल, सब्जियां और नट्स शामिल करें और हर दिन किसी न किसी प्रकार की शारीरिक गतिविधि करें.

ये भी पढ़ें- दिल्ली की सभी शैक्षणिक संस्थाएं अगले आदेश तक रहेंगी बंद, SC ने आज लगाई थी फटकार



नियोनेटोलॉजी एंड पीडियाट्रिक्स कंसल्टेंट डॉ दीपिका रस्तोगी ने युवा, शिशुओं और बच्चों पर प्रदूषण के प्रभाव को लेकर कहा कि वायु प्रदूषण का मतलब हवा की खराब गुणवत्ता है. जो नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन जैसी कणों और गैसों द्वारा खराब होती है. प्रदूषण दुनिया भर में सबसे कमजोर आबादी को प्रभावित करता है. शिशुओं और बच्चों को कई कारणों से खराब गुणवत्ता वाली हवा के संपर्क में आने से विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

डॉ. दीपिका का कहना है कि वायु प्रदूषण बच्चों को उनके जीवन के विकास के चरण के दौरान प्रभावित करता है. जिससे संभावित रूप से आजीवन स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं. प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों के विकास और वृद्धि को प्रभावित करता है. बचपन में खराब वायु गुणवत्ता का लगातार संपर्क बच्चों के फेफड़ों के कार्य को प्रभावित करता है, जिससे उन्हें अस्थमा और पुरानी सांस की बीमारियों का शिकार होना पड़ता है. वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से इन छोटे बच्चों के मस्तिष्क पर भी दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.