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ओडिशा के शिल्पकार पहुंचे सूरजकुंड मेला, मूर्तियां बनी आकर्षण का केंद्र

प्रमोद ने बताया कि 2.5 लाख रूपये की प्रतिमा गौतम बुद्ध की है, जिसे 2 कारीगरों ने मिलकर 4 महीने में तैयार किया है. जिसपर बहुत ही बारीकी से काम किया गया है. इसके आलावा ऐसी दर्जनों खूबसूरत मूर्तियां हैं, जिन्हें कारीगरों ने बड़े ही प्यार से तराशा है.

Odisha's artisans arrive at Surajkund fair
ओडिशा के शिल्पकार पहुंचे सूरजकुंड मेला
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Published : Feb 7, 2020, 11:37 PM IST

फरीदाबाद: अरावली पहाड़ियों में चल रहे सूरजकुंड मेले में ओडिशा के भुवनेश्वर जिले से प्रमोद महाराणा पत्थरों पर कलाकृति करके अपनी हस्त शिल्पकला को लेकर पहुंचे हैं. जो लोगों के बीच काफी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

ओडिशा के शिल्पकार पहुंचे सूरजकुंड मेला

4 पीढ़ियों की विरासत को संभाले हुए शिल्पकार प्रमोद महाराणा ने बताया कि पत्थरों पर कलाकृति करने के लिए उनके पिताजी और दादाजी को राज्य स्तरीय अवॉर्ड, राष्ट्रीय स्तरीय अवॉर्ड, शिल्पगुरू और फिर 2018 में पदमश्री अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है. उच्च कोटि के शिल्पकारों के घर में पैदा हुए प्रमोद ने भी 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद पत्थरों पर कलाकृति करना सीखा है. इस बार वो मेले में 1 हजार से लेकर 2.5 लाख तक की मूर्तियां लेकर पहुंचे हैं, जिन्हें ओडिसा के सर्फन टाईप मार्बल के पत्थर पर बनाया गया है.

प्रमोद ने बताया कि 2.5 लाख रुपये की प्रतिमा गौतम बुद्ध की है, जिसे 2 कारीगरों ने मिलकर 4 महीने में तैयार किया है. जिसपर बहुत ही बारीकी से काम किया गया है. इसके आलावा ऐसी दर्जनों खूबसूरत मूर्तियां हैं, जिन्हें कारीगरों ने बड़े ही प्यार से तराशा है.

ये भी पढ़िए: राज्यसभा सांसद डीपी वत्स ने संसद में उठाया फास्टैग के कारण टोल पर लगने वाले जाम का मुद्दा

प्राचीनकाल से चलती आ रही पत्थरों पर कलाकृति की कला आज के युग में धीरे - धीरे कहीं न कहीं विलुप्त होती जा रही है. जिसका कारण बताते हुए शिल्पकार ने बताया कि आज के युवा हस्तशिल्प कला सीखने के लिए समय नहीं देते हैं और फिर पैसे की चाह ने भी ऐसे युवाओं को इस कला से महरूम कर रखा है.

फरीदाबाद: अरावली पहाड़ियों में चल रहे सूरजकुंड मेले में ओडिशा के भुवनेश्वर जिले से प्रमोद महाराणा पत्थरों पर कलाकृति करके अपनी हस्त शिल्पकला को लेकर पहुंचे हैं. जो लोगों के बीच काफी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

ओडिशा के शिल्पकार पहुंचे सूरजकुंड मेला

4 पीढ़ियों की विरासत को संभाले हुए शिल्पकार प्रमोद महाराणा ने बताया कि पत्थरों पर कलाकृति करने के लिए उनके पिताजी और दादाजी को राज्य स्तरीय अवॉर्ड, राष्ट्रीय स्तरीय अवॉर्ड, शिल्पगुरू और फिर 2018 में पदमश्री अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है. उच्च कोटि के शिल्पकारों के घर में पैदा हुए प्रमोद ने भी 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद पत्थरों पर कलाकृति करना सीखा है. इस बार वो मेले में 1 हजार से लेकर 2.5 लाख तक की मूर्तियां लेकर पहुंचे हैं, जिन्हें ओडिसा के सर्फन टाईप मार्बल के पत्थर पर बनाया गया है.

प्रमोद ने बताया कि 2.5 लाख रुपये की प्रतिमा गौतम बुद्ध की है, जिसे 2 कारीगरों ने मिलकर 4 महीने में तैयार किया है. जिसपर बहुत ही बारीकी से काम किया गया है. इसके आलावा ऐसी दर्जनों खूबसूरत मूर्तियां हैं, जिन्हें कारीगरों ने बड़े ही प्यार से तराशा है.

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प्राचीनकाल से चलती आ रही पत्थरों पर कलाकृति की कला आज के युग में धीरे - धीरे कहीं न कहीं विलुप्त होती जा रही है. जिसका कारण बताते हुए शिल्पकार ने बताया कि आज के युवा हस्तशिल्प कला सीखने के लिए समय नहीं देते हैं और फिर पैसे की चाह ने भी ऐसे युवाओं को इस कला से महरूम कर रखा है.

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एंकर - फरीदाबाद की अरावली पहाडियों में चल रहे सूरजकुंड मेले में ओडिसा प्रदेश के भुवनेश्वर जिले से प्रमोद महाराणा पत्थरों पर कलाकृति करके अपनी हस्त शिल्पकला को लेकर पहुंचे हैं। 4 पीढियों की बिरासत को संभाले हुए शिल्पकार प्रमोद महाराणा ने बताया कि पत्थरों पर कलाकृति करने के लिये उनके पिताजी और दादाजी को राज्य स्तरीय अवार्ड, राष्ट्रीय स्तरीय अवार्ड, शिल्पगुरू और फिर 2018 में पदमश्री अवार्ड से नवाजा जा चुका है। उच्च कोटि के शिल्पकारों के घर में पैदा हुए प्रमोद ने भी 10 साल की कडी मेहनत के बाद पत्थरों पर कलाकृति करना सीखा है, इस बार वह मेले में 1 हजार से लेकर 2.5 लाख तक की मूर्तियां लेकर पहुंचे है जिन्हें ओडिसा के सर्फन टाईप मार्बल के पत्थर पर बनाया गया हैBody:।
प्रमोद ने बताया कि 2.5 लाख रूपये की प्रतिमा गौतम बुद्ध की है जिसे 2 कारीगरों ने मिलकर 4 महीने में तैयार किया है जिसपर बहुत ही बारीकी से काम किया गया है। इसके आलावा ऐसी दर्जनों खूबसूरत मूर्तियां है जिन्हें कारीगरों ने बडे ही प्यार से तराशा है।


बाईट - प्रमोद महाराणा, शिल्पकारी।Conclusion:प्राचीनकाल से चलती आ रही पत्थरों पर कलाकृति की कला आज के युग में धीरे - धीरे कहीं न कहीं विलुप्त होती जा रही है जिसका कारण बताते हुए शिल्पकार ने बताया कि आज के युवा हस्तशिल्प कला सीखने के लिये समय नहीं देते हैं और फिर पैसे की चाह ने भी ऐसे युवाओं को इस कला से महरूम कर रखा है।
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