ETV Bharat / city

अब युवा काटेंगे गेहूं की फसल और बुजुर्ग संभालेंगे किसान आंदोलन की कमान

फसलों की कटाई के समय को देखते हुए किसानों ने नई रणनीति बनाई है. इसके तहत युवा किसान आंदोलन स्थल से लौटकर खेती का काम करेंगे. आंदोलन स्थल पर मोर्चा संभालने के लिए बुजुर्गों को लगाया जाएगा.

crop
फसल
author img

By

Published : Feb 28, 2021, 8:53 PM IST

नई दिल्ली/फरीदाबाद: तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन को 3 महीने से ज्यादा का समय हो गया है. अब किसानों के सामने आंदोलन को जारी रखने और फसल कटाई के काम को देखने की दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. इस समस्या से निपटने के लिए किसानों ने एक खास रणनीति बनाई है.

किसानों को आंदोलन भी जारी रखना है, फसल की कटाई का समय भी हो रहा है तो फसल की कटाई भी करनी है, अब तक तो आंदोलन स्थलों पर युवा किसान मोर्चा संभाले हुए थे. फसल कटाई के समय को देखते हुए अब आंदोलन की कमान युवा नहीं बल्कि बुजुर्ग संभालेंगे... क्योंकि नई रणनीति के तहत ये तय हुआ है कि युवा आंदोलन स्थलों से लौटकर फसल की कटाई का काम करेंगे..

बुजुर्ग संभालेंगे किसान आंदोलन की कमान

इस मुद्दे पर किसान ऋषि पाल चौहान कहते हैं कि हम गांव-गांव जाकर रणनीति बना रहे हैं. बुजुर्गों और युवाओं को समझा रहे हैं कि आंदोलन को कैसे आगे ले जाना है, हम अपनी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं.

किसानों की नई रणनीति में ये तय हुआ है कि प्रत्येक गांव में ऐसे बुजुर्ग जिनकी उम्र 60 साल से ज्यादा है. जो खेती बाड़ी का कोई भी काम करने में सक्षम नहीं हैं. अब ऐसे बुजुर्गों को प्रत्येक गांव से लाकर आंदोलन स्थल पर बैठाया जाएगा.

आंदोलन को चलाने के लिए बुजुर्गों की ड्यूटी लगाई जाएगी. प्रत्येक गांव से कम से कम 20 बुजुर्ग आंदोलन स्थल पर रहेंगे. किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही समितियों को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे गांव-गांव जाकर बुजुर्गों को आंदोलन स्थल पर आने के लिए तैयार करें.

ये भी पढ़ें: शराब और रजिस्ट्री घोटाले की सीबीआई से जांच करवाएं- अभय चौटाला

किसान गंगा लाल गोयल कहते हैं कि हमारे लिए जितना आंदोलन जरूरी है उतनी ही फसल भी जरूरी है. हमने बुजुर्गों से कहा है कि प्रत्येक बुजुर्ग अपने साथ 4 बुजुर्गों को लेकर आएं. इस तरह हमारा आंदोलन चलता रहेगा.

केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ जिस समय आंदोलन शुरू हुआ था. उस समय समय गेहूं की फसल की बिजाई की गयी थी. लेकिन अब गेहूं की फसल लगभग पूरी तरह से तैयार होने वाली है. गेहूं के पौधे की बाल में दाना पड़ चुका है और कुछ दिनों बाद दाना पूरी तरह से पककर तैयार हो जायेगा. देखने वाली बात ये है कि गेहूं के पौधे की बाल में तो दाना पड़ चुका है..लेकिन इतने दिनों बाद भी सरकार के कानों में किसानों की आवाज के शब्द सुनाई नहीं पड़ रहे हैं.

ये भी पढ़ें: सिरसा में शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर को किसानों ने दिखाए काले झंडे

किसान रवि तेवतिया कहते हैं कि आंदोलन तो हमारे लिए 100 फीसदी जरूरी है और हमें ये लड़ाई जीतकर लौटना है. हम सभी अपनी जिम्मेदारी समझकर आंदोलन को नई दिशा दे रहे हैं. किसानों की रणनीति को देखकर तो ऐसा लगता है कि किसानों ने पूरी तरह से ठान ही लिया है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस कराकर ही दम लेना है.

नई रणनीति के तहत किसानों ने शायद महात्मा गांधी की संघर्ष समझौता संघर्ष की नीति के उलट संघर्ष रणनीति संघर्ष की नीति पर चलते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाते हुए आंदोलन को नई दिशा देने का मन बना लिया है. ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि ये लड़ाई लंबी चलेगी या सरकार कृषि कानूनों को वापस ले लेगी.

नई दिल्ली/फरीदाबाद: तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन को 3 महीने से ज्यादा का समय हो गया है. अब किसानों के सामने आंदोलन को जारी रखने और फसल कटाई के काम को देखने की दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. इस समस्या से निपटने के लिए किसानों ने एक खास रणनीति बनाई है.

किसानों को आंदोलन भी जारी रखना है, फसल की कटाई का समय भी हो रहा है तो फसल की कटाई भी करनी है, अब तक तो आंदोलन स्थलों पर युवा किसान मोर्चा संभाले हुए थे. फसल कटाई के समय को देखते हुए अब आंदोलन की कमान युवा नहीं बल्कि बुजुर्ग संभालेंगे... क्योंकि नई रणनीति के तहत ये तय हुआ है कि युवा आंदोलन स्थलों से लौटकर फसल की कटाई का काम करेंगे..

बुजुर्ग संभालेंगे किसान आंदोलन की कमान

इस मुद्दे पर किसान ऋषि पाल चौहान कहते हैं कि हम गांव-गांव जाकर रणनीति बना रहे हैं. बुजुर्गों और युवाओं को समझा रहे हैं कि आंदोलन को कैसे आगे ले जाना है, हम अपनी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं.

किसानों की नई रणनीति में ये तय हुआ है कि प्रत्येक गांव में ऐसे बुजुर्ग जिनकी उम्र 60 साल से ज्यादा है. जो खेती बाड़ी का कोई भी काम करने में सक्षम नहीं हैं. अब ऐसे बुजुर्गों को प्रत्येक गांव से लाकर आंदोलन स्थल पर बैठाया जाएगा.

आंदोलन को चलाने के लिए बुजुर्गों की ड्यूटी लगाई जाएगी. प्रत्येक गांव से कम से कम 20 बुजुर्ग आंदोलन स्थल पर रहेंगे. किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही समितियों को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे गांव-गांव जाकर बुजुर्गों को आंदोलन स्थल पर आने के लिए तैयार करें.

ये भी पढ़ें: शराब और रजिस्ट्री घोटाले की सीबीआई से जांच करवाएं- अभय चौटाला

किसान गंगा लाल गोयल कहते हैं कि हमारे लिए जितना आंदोलन जरूरी है उतनी ही फसल भी जरूरी है. हमने बुजुर्गों से कहा है कि प्रत्येक बुजुर्ग अपने साथ 4 बुजुर्गों को लेकर आएं. इस तरह हमारा आंदोलन चलता रहेगा.

केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ जिस समय आंदोलन शुरू हुआ था. उस समय समय गेहूं की फसल की बिजाई की गयी थी. लेकिन अब गेहूं की फसल लगभग पूरी तरह से तैयार होने वाली है. गेहूं के पौधे की बाल में दाना पड़ चुका है और कुछ दिनों बाद दाना पूरी तरह से पककर तैयार हो जायेगा. देखने वाली बात ये है कि गेहूं के पौधे की बाल में तो दाना पड़ चुका है..लेकिन इतने दिनों बाद भी सरकार के कानों में किसानों की आवाज के शब्द सुनाई नहीं पड़ रहे हैं.

ये भी पढ़ें: सिरसा में शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर को किसानों ने दिखाए काले झंडे

किसान रवि तेवतिया कहते हैं कि आंदोलन तो हमारे लिए 100 फीसदी जरूरी है और हमें ये लड़ाई जीतकर लौटना है. हम सभी अपनी जिम्मेदारी समझकर आंदोलन को नई दिशा दे रहे हैं. किसानों की रणनीति को देखकर तो ऐसा लगता है कि किसानों ने पूरी तरह से ठान ही लिया है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस कराकर ही दम लेना है.

नई रणनीति के तहत किसानों ने शायद महात्मा गांधी की संघर्ष समझौता संघर्ष की नीति के उलट संघर्ष रणनीति संघर्ष की नीति पर चलते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाते हुए आंदोलन को नई दिशा देने का मन बना लिया है. ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि ये लड़ाई लंबी चलेगी या सरकार कृषि कानूनों को वापस ले लेगी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.