नई दिल्ली : दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने एक नाबालिग से रेप के आरोपी को बरी कर दिया है. आरोपी दलित समुदाय से है. डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज धर्मेश शर्मा ने बरी करते हुए कहा कि लोग जातीय दुर्भावना की वजह से झूठे आरोप लगाते हैं.
कोर्ट ने आरोपी को मुआवजे के तौर पर एक लाख रुपये का देने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि ये मुआवजा प्रतीकात्मक है, लेकिन आरोपी कानून के दूसरे उपायों के तहत भी मुआवजा पाने का हकदार है. अभियोजन के मुताबिक आरोपी का उसके पड़ोसियों से विवाद हो गया. विवाद की वजह आरोपी के पड़ोसी के कुत्ते का उसके घर के सामने शौच करना थी.
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कोर्ट ने कहा कि समाज में मूल्यों की इतनी गिरावट आ गई है कि छोटे विवाद के लिए कुछ भी संभव है. लोग जातीय दुर्भावना की वजह से झूठे आरोप लगा सकते हैं. पीड़िता के पिता ने उसे झूठ बोलने के लिए शर्म की हद पार करते हुए उसे सिखाया-पढ़ाया. कोर्ट ने पीड़िता समेत तीन गवाहों के बयानों पर गौर करते हुए पाया कि आरोपी को झूठे तरीके से फंसाया गया है.
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कोर्ट ने इस मामले की लापरवाही भरी जांच के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने घटना का साईट प्लान तक नहीं बनाया था. यहां तक कि पुलिस ने इलाके को समझने तक की कोशिश नहीं की. पुलिस यह बता पाने में नाकाम रही कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज क्यों नहीं कराया गया.
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कोर्ट ने कहा कि एक गवाह ने कहा कि आरोपी ने अपराध करते समय शराब पी रखी थी, लेकिन पुलिस ने आरोपी के मेडिकल परीक्षण की कोई रिपोर्ट तक दाखिल नहीं की है, जो कि पुलिस के फाइल में थी. जब आरोपी का मेडिकल परीक्षण किया गया तो इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि वो शराब के प्रभाव में था या नहीं. मामले के मुख्य गवाह के बयानों में काफी विरोधाभास था. कोर्ट ने साफ कहा कि लोग झूठ बोल सकते हैं, लेकिन परिस्थितियां नहीं.