नई दिल्ली : देश में महंगाई कम होने की बजाय नित नए रिकॉर्ड कायम कर रही है. महंगाई सरकारों के लिए भले ही सिर्फ एक आंकड़ा हो, लेकिन करोड़ों लोगों की जिंदगी के लिए यह हजार परेशानियों का कारण है. जो हर दिन बढ़ती ही जा रही है. पेट्रोल-डीजल के साथ ही रसोई गैस के दाम भी बार-बार बढ़ाए गए हैं. जिस गैस को ईको फ़्रेंडली कह कर बेचा गया. उस सीएनजी के दाम भी कई बार बढ़ाए गए. ऐसे में आना-जाना और माल ढोना सब महंगा हो गया है. जिसका सीधा असर रोजमर्रा की जरूरी चीजों पर पड़ा है.
खाने-पीने की चीजों से लेकर फल, सब्जी, दूध, दाल सभी की कीमतें कई सौ परसेंट बढ़ गई हैं. ऐसे में घर चलाना लोगों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम कम होते रहते हैं. तब भी पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाए जाते हैं. और बढ़ जाएं तो दाम बढ़ाने का इससे अच्छा बहाना क्या हो सकता है. कंपनियों को दाम बढ़ाने के लिए तो बस बहाना चाहिए.
महंगाई के इस दौर में उन महिलाओं की हालत सबसे ज्यादा खराब औऱ दयनीय होती जा रही है. जिन्हें दो जून की रोटी के लिए खुद ही मशक्कत करनी पड़ती है. देशभर में लाखों टैक्सी चालक हैं. जो ओला व उबर जैसे सर्विस प्रोवाइडर्स के बूते सवारियां ढोकर रोजी-रोटी चलाते हैं. ऐसी लाखों महिलाएं भी हैं जो अब टैक्सी ड्राइवर के पेश में आकर बच्चों का भरण-पोषण करती हैं. सरस्वती उनमें से एक हैं. जो ये बताती हैं कि अब दिनभर सवारियां ढोने के बाद भी मुश्किल से 500 या 600 रुपए ही बच पाते हैं. कमाई का आधा से ज्यादा पैसा डीजल-पेट्रोल में चला जाता है. इतनी कम आमदनी में पेट भरना और बच्चों को पढ़ाना असंभव हो गया है.
सरस्वती उबर और ओला मोबाइल बेस्ड ट्रांसपोर्ट कंपनी में ठेके पर गाड़ी लेकर चलाती हैं. उन्होंने बताया कि इस बढ़ती महंगाई ने उनके छोटे छोटे सपने पूरी तरीके से रौंदकर रख दिए हैं. वह अपनी और अपने परिवार की जरूरत को पूरा करने के लिए 11 घंटे कैब ड्राइविंग करती हैं. तब जाकर वह अपने लिए 500 रुपए पहले बचा पाती थीं, लेकिन अब तो इतना कमा पाना भी मुश्किल हो गया है. वह जिंदगी के संघर्षों में टूट चुकी हैं. उनका कहना है कि कई बार मन में आत्महत्या का खयाल आता है, लेकिन परिवार की सोचकर मन कांप उठता है. महंगाई ने हालात ऐसे कर दिए हैं कि न जी सकते हैं और न मर सकते हैं. सरस्वती की तरह लाखों अकेली महिलाएं भी हैं, जिनके कंधों पर परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी है. इस महंगाई ने ऐसी महिलाओं की जिंदगी नरक बना दिया है.
सरस्वती का परिवार किराए के घर में दिलशाद गार्डेन इलाके में रहता है. पति ई-रिक्शा चलाते हैं, वह भी ठेके पर ही है. दोनों पति पत्नी खूब मेहनत करते हैं, लेकिन ईंधन की कीमतों ने बजट को पूरी तरीके से बिगाड़ दिया है. वह बताती हैं कि पहले वह घरों में बर्तन धोने का काम करती थीं. लेकिन उन्होंने सोचा क्यों न ड्राइविंग सीखी जाए और ओला-उबर में गाड़ी चलाकर कमाई करें. उन्होंने ड्राइविंग सीखी और काम करने लगीं.
पहले कुछ दिनों तक अच्छा चल रहा था. 250 का सीएनजी भरवाती थीं तो 1500 रुपए का काम करती थीं. 500 मालिक को देती थीं, 500 रुपए खुद रखती थीं. 250 मेंटेनेंस के लिए रखती थीं, लेकिन अब तो पूरा बजट बिगड़ गया है. गाड़ी मालिक को समय पर पूरा पैसा चाहिए. गाड़ी को भी समय समय पर मेंटेनेंस चाहिए. कस्टमर को भी इस गर्मी में एसी चाहिए. अगर एसी नहीं चली तो कंप्लेन भी हो जाती है. अगर दो-तीन बार कंप्लेन हुआ तो कंपनी ब्लॉक कर देती है. जिससे परेशानी बढ़ जाती है. इसलिए अपने पेट को कष्ट में डालकर एसी चलाया जाता है.
शुक्रवार को ऑटो-टैक्सी कैब ओला-उबर के चालकों ने सीएनजी की बढ़ती कीमतों को लेकर जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन किया था. यूनियन के लोगों ने कहा कि सीएनजी समेत सभी ईंधनों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. जिससे चालक काफी परेशान हैं. इसे नियंत्रण करने के लिए सरकार की तरफ से राहत देने और किराया बढ़ाने की मांग की गई. एसोसिएशन ने कहा कि अगर मांगों को पूरा नहीं किया गया तो एसोसिएशन अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएगा.
इसे भी पढ़ें : महंगाई डायन खाए जात है! बार-बार बढ़े पेट्रोल के दाम
टैक्सी यूनियन सीएनजी की दरें कम करने की लगातार मांग कर रहे हैं. उसके बावजूद सरकार कीमतें कम करने की बजाए बढ़ाती ही जा रही है. पिछले सात-आठ वर्षों से ओला और उबर के किराए में कोई संशोधन नहीं हुआ है. दिल्ली के ऑटो रिक्शा संघ ने कहा है कि सीएनजी की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी से वाहन चालकों की मुश्किलें इतनी बढ़ गई हैं कि उनका इस कारोबार में रहना मुश्किल हो गया है. एसोसिएशन की तरफ से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर सीएनजी पर ₹35 प्रति किलो की सब्सिडी देने की मांग की गई है. अगर मांगों पर जल्द सुनवाई नहीं की गई तो 18 अप्रैल से सभी यूनियनों के चालक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे. और 11 अप्रैल को सचिवालय के बाहर प्रदर्शन भी करेंगे.