नई दिल्ली: 2015 में दिल्ली की सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ वापसी के बाद से 2019 ऐसा साल रहा, जिसमें आम आदमी पार्टी को काम करने में ज्यादा मुश्किलें नहीं हुईं. इसी साल पार्टी ने अपनी कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को जमीन पर उतारा. लेकिन दलगत स्तर पर बात करें, तो पार्टी का संख्या बल इस साल संकुचित होता दिखा.
2015 के विधानसभा चुनाव में 67 सीटों के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाली आम आदमी पार्टी को अपने चार महत्वपूर्ण विधायकों को इस साल पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा. हालांकि ऐसी दशा इसलिए आई, क्योंकि पहले उन विधायकों की तरफ से आलाकमान के प्रति बागी रुख अख्तियार किया गया.
कांग्रेस-BJP के हो गए 'आप' के अपने
एक-एक करके देवेंद्र सेहरावत, कपिल मिश्रा, अनिल वाजपेयी और अलका लांबा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया. गौर करने वाली बात यह भी है कि इन सभी विधायको ने आम आदमी पार्टी के चिर प्रतिद्वंदी दलों का दामन थाम लिया. देवेंद्र सेहरावत, अनिल वाजपेयी और कपिल मिश्रा भाजपा में शामिल हो गए, वहीं अलका लांबा ने अपनी पुरानी पार्टी में वापसी का रास्ता चुना और कांग्रेसी की सदस्य बन गईं.
कई दिग्गजों ने थामा 'आप' का दामन
इस साल ये कुछ सदस्य आम आदमी पार्टी से दूर हुए, वहीं दूसरे दकों के कई नेता आम आदमी पार्टी में शामिल भी हुए. इसमें सबसे महत्वपूर्ण नाम है, झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉ. अजॉय कुमार का. अजॉय कुमार कांग्रेस पार्टी के झारखंड के अध्यक्ष रह चुके हैं. वहीं दिल्ली के नजरिए से और आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बात करें, तो चांदनी चौक विधानसभा से विधायक रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रह्लाद सिंह साहनी भी आम आदमी पार्टी में शामिल हुए.
दूसरे दलों के पूर्व विधायक और पार्षद भी जुड़े
गोकलपुरी से बसपा से विधायक रहे सुरेंद्र कुमार ने भी आम आदमी पार्टी का दामन थामा, जो डेढ़ महीने पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे. इनके अलावा कांग्रेस और बीजेपी से पार्षद रहे कई नेता भी आबादी पार्टी में शामिल हुए.
दिल्ली से बाहर विस्तार का सपना अधूरा
हालांकि चुनावी नजरिए से बात करें, तो दिल्ली की सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ पैठ बनाने के बाद, हम आदमी पार्टी ने दूसरे राज्यों में भी पांव पसारना शुरू किया. लेकिन इस साल खासतौर पर किसी भी राज्य में कामयाबी नहीं मिली. चाहे राजस्थान हो, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र या फिर अब झारखंड, हर जगह पार्टी उम्मीदवारों को भारी हार का ही मुंह देखना पड़ा. नए साल में यह पार्टी नई चुनौतियों और नई उम्मीदों के साथ जा रही है, जिसमें सबसे बड़ी कोशिश होगी दिल्ली की सत्ता में वापसी की.