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2 अप्रैल से होगा शुरू विक्रम नव संवत्सर 2079, राजा शनि और मंत्री होंगे बृहस्पति

ईटीवी भारत धर्म में आज हम आपको बताएंगे हिंदू नववर्ष विक्रम संवत् 2079 के विषय में. ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास से जानेंगे कि नवसंवत्सर की शुरुआत कब से हो रही है और आखिर इस नवसंवत्सर का राजा शनि क्यों होंगे.

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Published : Mar 25, 2022, 1:50 PM IST

नई दिल्ली: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2 अप्रैल को हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् 2079 का आरंभ होगा. इस बार संवत्सर का नाम नल रहेगा. नवसंवत्सर के राजा शनि होंगे और मंत्री गुरुदेव बृहस्पति होंगे. जिस वार को नवसंवत्सर का आरंभ होता है. उस वार का अधिपति ग्रह वर्ष का राजा कहलाता है. इस बार शनिवार के दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ हो रहा है. इसलिए संवत्सर के राजा शनि होंगे.

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा पर 2 अप्रैल को हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् 2079 का आरंभ होगा. इस बार संवत्सर का नाम नल रहेगा. नवसंवत्सर के राजा शनि होंगे. राजा होने के साथ शनि का तीन प्रमुख विभागों पर आधिपत्य भी रहेगा. मंत्री मंडल में पांच प्रमुख ग्रह शामिल हैं. शनि प्रधान नव वर्ष में महंगाई बढ़ेगी. धान्य उत्पादन प्रभावित होगा. हालांकि बारिश की स्थिति अनुकूल रहने वाली है. इससे देश के कुछ राज्यों में गेहूं सहित अन्य धान्यों की प्रचुर पैदावार होगी. गुड़ी पड़वा के दिन जिस वार को नवसंवत्सर का आरंभ होता है, उस वार का अधिपति ग्रह वर्ष का राजा कहलाता है. इस बार शनिवार के दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ हो रहा है. इसलिए संवत्सर के राजा शनि होंगे. ज्योतिशास्त्र में संवत्सर फलित की परंपरा है. इसमें पूरे वर्ष ग्रहों की स्थिति का आम जनमानस, समाज, राष्ट्र, बाजार तथा मौद्रिक नीति पर क्या प्रभाव होगा, यह दर्शाया जाता है.

नव संवत्सर के व्यवस्थापन में राजा शनि देव एवं मंत्री का पद प्राप्त देव गुरु बृहस्पति का संपूर्ण चराचर जगत पर प्रभाव पड़ेगा. जहां ग्रहों में न्यायाधीश शनिदेव अपने प्रभाव से कर्म फल को प्रदान करने वाले साबित होंगे. वहीं देव गुरु बृहस्पति मंत्री के रूप में चराचर जगत में अपनी सकारात्मकता प्रदान करेंगे. इस संवत्सर में ग्रहों के खगोलीय मंत्री परिषद के 10 विभागों में राजा एवं मंत्री सहित 5 विभाग पाप ग्रहों के पास तथा 5 विभाग शुभ ग्रहों के पास रहेगा. भविष्यफल भास्कर नामक ग्रन्थ के अनुसार, 'नल' संवत्सर में वर्षा अच्छी होती है लेकिन राजाओं को कष्ट होता है तथा जनता को 'चोरों' का भय होता है. इस वर्ष का राजा शनि है, जिसके विषय में बृहत संहिता के 'ग्रह वर्ष फलाध्याय' अध्याय संख्या 19 के अनुसार, जब शनि वर्ष का राजा होता है तो चोरों, डकैतों और दुर्दांत अपराधियों से आतंक बढ़ता है. आतंक के कारण राजनीतिक अस्थिरता, जान-माल का नुकसान होता है. लोग बीमारी, अकाल से पीड़ित होते हैं और अपनों के खोने के कारण आंसू बहाते हैं.

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की कुंडली में इस वर्ष मिथुन लग्न उदय हो रहा है. मृत्यु स्थान यानी अष्टम भाव में, छठे स्थान (हिंसा और रोग) भाव के स्वामी मंगल तथा आठवें घर के अधिपति शनि की युति बेहद अशुभ योग बना रही है, जिसके प्रभाव से केंद्र में सत्ताधारी दल के शीर्ष नेतृत्व को कुछ अनहोनी घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है. इससे 'राजनीतिक अस्थिरता' का वातावरण निर्मित हो सकता है. यह राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति कुछ आकस्मिक रूप से दुखद घटनाक्रम के कारण अप्रैल से नवंबर के मध्य इस वर्ष निर्मित होने के योग बन रहे हैं. हिंदू नव वर्ष कुंडली में लग्नेश बुध का मीन राशि में नीच का होकर सूर्य और चन्द्रमा से दशम भाव में युत होना केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में बड़े परिवर्तन होने का योग है.

आर्थिक सुधार कानून : पिछले वर्ष के नवंबर में तीन कृषि कानूनों के रद्द करने की घोषणा की बाद अप्रत्याशित रूप से अच्छा प्रदर्शन करते हुए, भाजपा ने पांच में से चार राज्यों में अभी हाल ही में जीत हासिल की है. हिंदू नववर्ष की कुंडली में देखें तो अष्टम भाव में बैठे शनि और मंगल धन के दूसरे भाव को दृष्टि दे रहे हैं तथा शनि धन स्थान के स्वामी चंद्रमा को तीसरी दृष्टि से देख रहा है. इस योग के प्रभाव से केंद्र सरकार सार्वजानिक उपक्रम की कंपनियों में विनिवेश को बढ़ाने के लिए नए आर्थिक सुधारों के कानून ला सकती है, जिसका देश के बड़े हिस्से में मजदूर और किसान संगठन के द्वारा विरोध होगा. अष्टम भाव में शनि मंगल की युति कोयले, तेल, लौह-अयस्क और प्राकृतिक गैस के नए भंडारों की खोज का भी एक ज्योतिषीय संकेत है, जिसके कारण ऊर्जा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश के योग इस वर्ष बन रहे हैं. नवम भाव में बन रही शुक्र और गुरु की युति उच्च-शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निजी निवेश के बढ़ने का योग है.

सीमाओं पर खतरा : हिंदू नव वर्ष की कुंडली में अष्टम भाव में शनि और मंगल की युति है. नवांश में शनि और मंगल दोनों अष्टम भाव को देख रहे हैं. यह योग इस वर्ष युद्ध के चलते जान-माल की हानि होने का ज्योतिषीय संकेत दे रहा है. इस वर्ष जून में शनि वक्री होंगे तथा बाद में नवंबर माह में मंगल मिथुन राशि से वक्री होकर वृषभ राशि में गोचर करेंगे. मंगल लगभग 5 महीने तक वृषभ राशि में रहेंगे, जो कि राजनीतिक अस्थिरता तथा सीमाओं पर युद्ध के खतरे का योग दिखा रहा है. इस वर्ष अप्रैल से नवंबर महीने के बीच भारत को चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर युद्ध की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें सर्वाधिक खतरा चीन से रहेगा.

मंत्री मण्डल : राजा-शनि, मन्त्री-गुरु, सस्येश-सूर्य, दुर्गेश-बुध, धनेश-शनि, रसेश-मंगल, धान्येश-शुक्र, नीरसेश-शनि, फलेश-बुध, मेघेश-बुध होंगे. साथ ही संवत्सर का निवास कुम्हार का घर एवं समय का वाहन घोड़ा होगा. इस वर्ष भी समय का वाहन घोड़ा होता है उस वर्ष तेज गति से वायु, चक्रवात, तूफान, भूकंप भूस्खलन आदि से व्यापक क्षति की संभावना बन जाती है. तेज गति से चलने वाले वाहनों के क्षतिग्रस्त होने की भी संभावना हो जाती है.

राजा शनि : न्याय तथा कार्यप्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन होगा. धान्य उत्पादन कहीं श्रेष्ठ तथा कहीं मध्यम रहेगा. मौद्रिक नीति में परिवर्तन होगा. कुछ स्थानों पर महंगाई बढ़ेगी. उड़द, कोयला, लकड़ी, लोहा, कपड़ा, स्टील महंगे होंगे.

मंत्री गुरु : इस साल वर्षा की स्थिति उत्तम रहेगी. देश में करीब 88 फीसद वर्षा होगी. कुछ स्थानों को छोड़ कर शेष कृषि क्षेत्र में धान्य का प्रचुर उत्पादन होगा. विश्व में भारत का प्रभुत्व बढ़ेगा.

धान्येश शुक्र : प्रचुर मात्रा में धान्य उत्पादन से प्रजा सुखी रहेगी. दूध व घी के उत्पादन में कमी आएगी. इससे दुग्ध पदार्थों के मूल्यों में उतार चढ़ाव की स्थिति बनी रहेगी.

मेघेश बुध : देश में 88 फीसद बारिश होगी. गेहूं सहित अन्य फसलों की भरपूर पैदावार होगी. जनता की धर्म कार्य में रुची बढ़ेगी. बहुत सी स्थितियों में प्रजा शांति का अनुभव करेगी. विद्वतजनों के लिए यह समय उन्नति व सुख कारक रहेगा.

रसेश चंद्र : उत्तम जल वृष्टि होने से चारों और सुख शांति का वातावरण रहेगा. आम जनता भौतिक पदार्थों का सुख भोगेगी.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि etvbharat.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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नई दिल्ली: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2 अप्रैल को हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् 2079 का आरंभ होगा. इस बार संवत्सर का नाम नल रहेगा. नवसंवत्सर के राजा शनि होंगे और मंत्री गुरुदेव बृहस्पति होंगे. जिस वार को नवसंवत्सर का आरंभ होता है. उस वार का अधिपति ग्रह वर्ष का राजा कहलाता है. इस बार शनिवार के दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ हो रहा है. इसलिए संवत्सर के राजा शनि होंगे.

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा पर 2 अप्रैल को हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् 2079 का आरंभ होगा. इस बार संवत्सर का नाम नल रहेगा. नवसंवत्सर के राजा शनि होंगे. राजा होने के साथ शनि का तीन प्रमुख विभागों पर आधिपत्य भी रहेगा. मंत्री मंडल में पांच प्रमुख ग्रह शामिल हैं. शनि प्रधान नव वर्ष में महंगाई बढ़ेगी. धान्य उत्पादन प्रभावित होगा. हालांकि बारिश की स्थिति अनुकूल रहने वाली है. इससे देश के कुछ राज्यों में गेहूं सहित अन्य धान्यों की प्रचुर पैदावार होगी. गुड़ी पड़वा के दिन जिस वार को नवसंवत्सर का आरंभ होता है, उस वार का अधिपति ग्रह वर्ष का राजा कहलाता है. इस बार शनिवार के दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ हो रहा है. इसलिए संवत्सर के राजा शनि होंगे. ज्योतिशास्त्र में संवत्सर फलित की परंपरा है. इसमें पूरे वर्ष ग्रहों की स्थिति का आम जनमानस, समाज, राष्ट्र, बाजार तथा मौद्रिक नीति पर क्या प्रभाव होगा, यह दर्शाया जाता है.

नव संवत्सर के व्यवस्थापन में राजा शनि देव एवं मंत्री का पद प्राप्त देव गुरु बृहस्पति का संपूर्ण चराचर जगत पर प्रभाव पड़ेगा. जहां ग्रहों में न्यायाधीश शनिदेव अपने प्रभाव से कर्म फल को प्रदान करने वाले साबित होंगे. वहीं देव गुरु बृहस्पति मंत्री के रूप में चराचर जगत में अपनी सकारात्मकता प्रदान करेंगे. इस संवत्सर में ग्रहों के खगोलीय मंत्री परिषद के 10 विभागों में राजा एवं मंत्री सहित 5 विभाग पाप ग्रहों के पास तथा 5 विभाग शुभ ग्रहों के पास रहेगा. भविष्यफल भास्कर नामक ग्रन्थ के अनुसार, 'नल' संवत्सर में वर्षा अच्छी होती है लेकिन राजाओं को कष्ट होता है तथा जनता को 'चोरों' का भय होता है. इस वर्ष का राजा शनि है, जिसके विषय में बृहत संहिता के 'ग्रह वर्ष फलाध्याय' अध्याय संख्या 19 के अनुसार, जब शनि वर्ष का राजा होता है तो चोरों, डकैतों और दुर्दांत अपराधियों से आतंक बढ़ता है. आतंक के कारण राजनीतिक अस्थिरता, जान-माल का नुकसान होता है. लोग बीमारी, अकाल से पीड़ित होते हैं और अपनों के खोने के कारण आंसू बहाते हैं.

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की कुंडली में इस वर्ष मिथुन लग्न उदय हो रहा है. मृत्यु स्थान यानी अष्टम भाव में, छठे स्थान (हिंसा और रोग) भाव के स्वामी मंगल तथा आठवें घर के अधिपति शनि की युति बेहद अशुभ योग बना रही है, जिसके प्रभाव से केंद्र में सत्ताधारी दल के शीर्ष नेतृत्व को कुछ अनहोनी घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है. इससे 'राजनीतिक अस्थिरता' का वातावरण निर्मित हो सकता है. यह राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति कुछ आकस्मिक रूप से दुखद घटनाक्रम के कारण अप्रैल से नवंबर के मध्य इस वर्ष निर्मित होने के योग बन रहे हैं. हिंदू नव वर्ष कुंडली में लग्नेश बुध का मीन राशि में नीच का होकर सूर्य और चन्द्रमा से दशम भाव में युत होना केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में बड़े परिवर्तन होने का योग है.

आर्थिक सुधार कानून : पिछले वर्ष के नवंबर में तीन कृषि कानूनों के रद्द करने की घोषणा की बाद अप्रत्याशित रूप से अच्छा प्रदर्शन करते हुए, भाजपा ने पांच में से चार राज्यों में अभी हाल ही में जीत हासिल की है. हिंदू नववर्ष की कुंडली में देखें तो अष्टम भाव में बैठे शनि और मंगल धन के दूसरे भाव को दृष्टि दे रहे हैं तथा शनि धन स्थान के स्वामी चंद्रमा को तीसरी दृष्टि से देख रहा है. इस योग के प्रभाव से केंद्र सरकार सार्वजानिक उपक्रम की कंपनियों में विनिवेश को बढ़ाने के लिए नए आर्थिक सुधारों के कानून ला सकती है, जिसका देश के बड़े हिस्से में मजदूर और किसान संगठन के द्वारा विरोध होगा. अष्टम भाव में शनि मंगल की युति कोयले, तेल, लौह-अयस्क और प्राकृतिक गैस के नए भंडारों की खोज का भी एक ज्योतिषीय संकेत है, जिसके कारण ऊर्जा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश के योग इस वर्ष बन रहे हैं. नवम भाव में बन रही शुक्र और गुरु की युति उच्च-शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निजी निवेश के बढ़ने का योग है.

सीमाओं पर खतरा : हिंदू नव वर्ष की कुंडली में अष्टम भाव में शनि और मंगल की युति है. नवांश में शनि और मंगल दोनों अष्टम भाव को देख रहे हैं. यह योग इस वर्ष युद्ध के चलते जान-माल की हानि होने का ज्योतिषीय संकेत दे रहा है. इस वर्ष जून में शनि वक्री होंगे तथा बाद में नवंबर माह में मंगल मिथुन राशि से वक्री होकर वृषभ राशि में गोचर करेंगे. मंगल लगभग 5 महीने तक वृषभ राशि में रहेंगे, जो कि राजनीतिक अस्थिरता तथा सीमाओं पर युद्ध के खतरे का योग दिखा रहा है. इस वर्ष अप्रैल से नवंबर महीने के बीच भारत को चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर युद्ध की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें सर्वाधिक खतरा चीन से रहेगा.

मंत्री मण्डल : राजा-शनि, मन्त्री-गुरु, सस्येश-सूर्य, दुर्गेश-बुध, धनेश-शनि, रसेश-मंगल, धान्येश-शुक्र, नीरसेश-शनि, फलेश-बुध, मेघेश-बुध होंगे. साथ ही संवत्सर का निवास कुम्हार का घर एवं समय का वाहन घोड़ा होगा. इस वर्ष भी समय का वाहन घोड़ा होता है उस वर्ष तेज गति से वायु, चक्रवात, तूफान, भूकंप भूस्खलन आदि से व्यापक क्षति की संभावना बन जाती है. तेज गति से चलने वाले वाहनों के क्षतिग्रस्त होने की भी संभावना हो जाती है.

राजा शनि : न्याय तथा कार्यप्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन होगा. धान्य उत्पादन कहीं श्रेष्ठ तथा कहीं मध्यम रहेगा. मौद्रिक नीति में परिवर्तन होगा. कुछ स्थानों पर महंगाई बढ़ेगी. उड़द, कोयला, लकड़ी, लोहा, कपड़ा, स्टील महंगे होंगे.

मंत्री गुरु : इस साल वर्षा की स्थिति उत्तम रहेगी. देश में करीब 88 फीसद वर्षा होगी. कुछ स्थानों को छोड़ कर शेष कृषि क्षेत्र में धान्य का प्रचुर उत्पादन होगा. विश्व में भारत का प्रभुत्व बढ़ेगा.

धान्येश शुक्र : प्रचुर मात्रा में धान्य उत्पादन से प्रजा सुखी रहेगी. दूध व घी के उत्पादन में कमी आएगी. इससे दुग्ध पदार्थों के मूल्यों में उतार चढ़ाव की स्थिति बनी रहेगी.

मेघेश बुध : देश में 88 फीसद बारिश होगी. गेहूं सहित अन्य फसलों की भरपूर पैदावार होगी. जनता की धर्म कार्य में रुची बढ़ेगी. बहुत सी स्थितियों में प्रजा शांति का अनुभव करेगी. विद्वतजनों के लिए यह समय उन्नति व सुख कारक रहेगा.

रसेश चंद्र : उत्तम जल वृष्टि होने से चारों और सुख शांति का वातावरण रहेगा. आम जनता भौतिक पदार्थों का सुख भोगेगी.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि etvbharat.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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