नई दिल्ली : पिछले एक साल से पीजी काउंसलिंग यानी नीट परीक्षा पास करने वाले डॉक्टरों की काउंसलिंग अब तक नहीं हुई है. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है, जिसमें केंद्र सरकार को 6 जनवरी तक अपना पक्ष रखना है. इससे विरोध कर रहे डॉक्टरों की मानें तो राजधानी दिल्ली समेत लगभग सभी बड़े मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में एमडी पीजी डॉक्टरों की संख्या में एक तिहाई की कमी आई है.
भारत के संविधान में आरक्षण की सीमा 50% है, जिसमें पहले आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता था. लेकिन संविधान के संशोधन के साथ केंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10% आरक्षण रखा है, जो इस बार नीट काउंसलिंग में लागू किया गया है. जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि अगर आर्थिक रूप से पिछड़े और ओबीसी क्रीमी लेयर का आधार प्रति परिवार आठ लाख सालाना है, तो देश के 95% परिवार इसके अंतर्गत आ जाते हैं, जिससे मौलिक रूप से गरीबों को उनका अधिकार नहीं मिलेगा और 95% लाभार्थी 10% सीटों पर आरक्षण के लिए जद्दोजहद करेंगे.
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केंद्र सरकार से जल्द सुनवाई और सहयोग के मुद्दे पर देश भर के मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ राजधानी दिल्ली के तमाम बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेजों में विरोध प्रदर्शन जारी है. इमरजेंसी को छोड़कर ओपीडी का काम छोड़कर रेजिडेंट डॉक्टर धरने में शामिल हो गए हैं, जिसका असर ओपीडी सुविधा में देखने को मिल रहा है.
डॉक्टरों का कहना है कि अगर उन्हें जल्द ही तारीख नहीं मिली और सरकार से सहयोग नहीं मिला तो आगे विरोध और हड़ताल को व्यापक गति दी जा सकती है. मौजूदा समय में जब महामारी खत्म नहीं हुई है कोविड-19 के नए म्यूटेशन देखने को मिल रहे हैं. ऐसे में डॉक्टरों की हड़ताल की आशंका और विरोध प्रदर्शन हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं के लिए बड़ी चुनौती है.
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