नई दिल्ली: दिल्ली के मौलाना आजाद डेंटल इंस्टिट्यूट में डेंटल सर्जन के रूप में कार्यरत 25 वर्षीय डॉ. अभिषेक सबसे कम उम्र के कोरोना वॉरियर हैं, जिनकी बीते 2 जुलाई को पीजीआई रोहतक में मौत हो गई. कोविड के आरटी-पीसीआर टेस्ट में उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी, लेकिन उनके सारे लक्षण कोविड वाले ही बताए जा रहे हैं.
उन्हें सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही थी. उनका ब्लड प्रेशर इतना बढ़ा हुआ था कि उसे रिकॉर्ड भी नहीं किया जा सकता था. डॉ. अभिषेक की हालत इतनी ज्यादा खराब थी कि डॉक्टर द्वारा बेहतरीन प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका. अस्पताल में भर्ती होने के एक घंटे के भीतर ही उनकी मौत हो गई.
डेंटल सर्जन थे डॉ. अभिषेक भयाना
डॉ. अभिषेक भयाना 25 साल के थे. वह मौलाना आजाद डेंटल इंस्टीट्यूट में डेंटल सर्जन थे. मरीज का इलाज करने के दौरान ही उन्हें अचानक से सांस लेने में दिक्कत हुई और घबराहट होने लगी. जब बेचैनी बढ़ गई तो उन्होंने छुट्टी ली और रोहतक घर चले गए. रोहतक हॉस्पिटल में उनका इलाज शुरू हुआ. इलाज शुरू करने के पहले उनका कोविड टेस्ट किया गया. उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई. 2 जुलाई के दिन उनकी बेचैनी और घबराहट बढ़ गई और सांस लेने की समस्या होने लगी.
सिर्फ एक घंटे में हो गई मौत
2 जुलाई दोपहर लगभग डेढ़ बजे पीजीआई रोहतक हॉस्पिटल में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया. उस समय उनकी नब्ज की गति 140 प्रति मिनट थी. बीपी इतना ज्यादा था कि उसे रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता था. उन्हें तुरंत आईसीयू में ले जाकर हाई फ्लो का ऑक्सीजन दिया गया. 1:50 पर डॉक्टर अभिषेक को अचानक से हार्ट अटैक हुआ और उन्हें तुरंत सीपीआर दी गई. डॉक्टर के बेहतरीन प्रयास के बावजूद दोपहर लगभग 2:30 बजे उनकी मौत हो गई.
रिपोर्ट पर उठे सवाल
एम्स के रेडियो-कार्डियो विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अमरिंदर सिंह ने बताया कि अभी कुछ दिन पहले आंध्र प्रदेश की सरकार की तरफ से एक नोटिस आया था. उसमें कहा गया था कि अगर मरीज की मौत कोविड के लक्षणों वाली बीमारी की वजह से हो जाती है और उसकी कोविड रिपोर्ट नेगेटिव होती है तो इस केस को भी कोविड पॉजिटिव ही माना जाना चाहिए. इस मामले में भी डॉक्टर अभिषेक की एक्यूट रेस्पिरेट्री प्रॉब्लम थी. ऐसे मरीजों को कोविड-19 पॉजिटिव ही माना जाना चाहिए, भले ही पीसीआर टेस्ट नेगेटिव क्यों ना आया हो. इस केस में डॉ. अभिषेक की कोविड-19 रिपोर्ट नेगेटिव आई. रिपोर्ट नेगेटिव आने के बावजूद उनके जो लक्षण थे वह कोविड-19 के ही थे.
'आरटी-पीसीआर टेस्ट भरोसेमंद नहीं'
विशेषज्ञ बताते हैं कि आरटी पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट भरोसेमंद नहीं होती है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की भी पहली रिपोर्ट नेगेटिव आई थी. इसके बावजूद उनकी जब रेस्पिरेट्री प्रॉब्लम्स बढ़ गई तो उनकी दोबारा जांच हुई. दूसरी बार जांच में वह कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए. बेचैनी घबराहट और सांस लेने की दिक्कत बढ़ने के बाद उन्हें तुरंत दिल्ली के साकेत मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. वहां उन्हें प्लाज्मा थेरेपी दी गई. उसके बाद वह स्वस्थ होकर बाहर आए. अगर इस केस में भी पहली रिपोर्ट को देखा जाए तो वह नेगेटिव ही थी.
'चीन ने आरटी-पीसीआर टेस्ट की वैकल्पिक व्यवस्था की'
डॉ. अमरिंदर ने बताया कि चीन में भी जब आरटी-पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट संदिग्ध होने लगी तो इसकी जगह पर एचआरसीटी किया जाने लगा. साथ में एक्स-रे भी किया गया. इन दोनों टेस्ट के आधार पर यह तय किया जाने लगा कि पेशेंट कोविड-पॉजिटिव है या नेगेटिव. एचआरटी पीसीआर टेस्ट जब नेगेटिव आता था और उनके लक्षण कोविड जैसे होते थे तो उन केसेज को भी पॉजिटिव ही माना जाने लगा.
डॉ. अमरिंदर ने बताया कि आरटी पीसीआर की ज्यादातर रिपोर्ट नेगेटिव आती है, तो आरटी पीसीआर टेस्ट की क्वालिटी पर आंख मूंदकर क्यों भरोसा किया जाना चाहिए. इसी तरह का एक और मामला आया था. दिल्ली पुलिस की एक महिला कॉन्स्टेबल शैली बंसल का. उनकी रिपोर्ट भी नेगेटिव आई थी, लेकिन कुछ दिनों के बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी उनके लक्षण भी कोरोना वाले थे. उनको कोरोना वॉरियर घोषित करने के लिए अभी तक फाइट की जा रही है. अब देश के सबसे छोटे कोरोना शहीद अभिषेक को न्याय देने की मुहिम शुरू करनी है.
'अभिषेक के परिवार को भी मिले आर्थिक मदद'
डॉ. अमरिंदर के अलावा डॉ. विजय भी अभिषेक के परिजन के लिए दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित एक करोड़ रुपये की आर्थिक मदद करने की मांग की है. जिस तरह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने असीम गुप्ता जो एलएनजेपी हॉस्पिटल में सीनियर डॉक्टर थे उनकी कोरोना से मौत होने पर उनके घर जाकर उन्होंने स्वयं एक करोड़ रुपये का चेक दिया तो क्या अभिषेक के परिवार वालों को एक करोड़ रुपये कंपनसेशन पाने का अधिकार नहीं है? भले ही रिपोर्ट नेगेटिव आई, लेकिन उनके लक्षण थे वह सारे के सारे कोरोना पॉजिटिव होने की तरफ इशारा कर रहे थे.
डॉ. अमरिंदर सवाल कर रहे हैं कि डॉक्टर अभिषेक को कोरोना वारियर क्यों नहीं घोषित किया जा रहा है? उन्हें एक करोड़ रुपये का कंपनसेशन क्यों नहीं दिया जा रहा है? मेरा यह सवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आईसीएमआर के डायरेक्टर डॉ बलराम भार्गव से है. अगर आरटी पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट संदेहास्पद है तो क्यों नहीं गाइडलाइन में थोड़ा बदलाव किया जाए?