नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कोरोना अनुदान देने में छोटे और बड़े अस्पतालों के स्टाफ में फर्क सही नहीं है. हाईकोर्ट ने कोरोना की पहली लहर में एक डॉक्टर की मौत से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
कोर्ट ने कहा की कोरोनाकी पहली और दूसरी लहर के दौरान छोटे नर्सिंग होम के डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ ने भी हजारों मरीजों का इलाज किया. ऐसे में छोटे नर्सिंग होम और दिल्ली सरकार द्वारा अधिग्रहित अस्पतालों में काम करने वालों के बीच आर्थिक राहत देने के मामले में फर्क करना सही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि छोटे नर्सिंग होम की कम क्षमता होने की वजह से उन्हें अधिगृहित नहीं किया गया, लेकिन यह भी तथ्य है की ऐसे नर्सिंग होम में काम करने वाले डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ भी खुद को कोरोना से संक्रमित होने के खतरे में डाल रहे थे और उनकी जाने भी जा रही थीं.
दरअसल, हाईकोर्ट जून 2020 में कोरोना पहली लहर के दौरान एक डॉक्टर की मौत से संबंधित मामले दवाई कर रहा है. मृत डॉक्टर हरीश कुमार की पत्नी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि उनके पति जीटीबी नगर के न्यू लाइफ अस्पताल में कार्यरत थे और कोविड ड्यूटी दे रहे थे.
सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा की क्या उन्होंने दिल्ली सरकार की ओर से फ्रंटलाइन वर्कर्स को दी जाने वाली अनुदान राशि के लिए आवेदन किया था और उन्हें कोई राशि मिली थी. तब याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने इसके लिए आवेदन दिया था, लेकिन ने कोई राहत नहीं मिली. सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील गौतम नारायण ने कहा कि दिल्ली सरकार ने ऐसे मामलों में केवल सरकारी अस्पतालों या उन दूसरे अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों और अन्य पैरामेडिकल कर्मचारियों के संबंध में अनुदान राशि देने का प्रावधान रखा है जिन्हें सरकार ने अधिगृहित किया था.
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गौतम नारायण ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति जिस नर्सिंग होम में कार्यरत थे वह 50 बेड से कम का था. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि कम क्षमता वाले नर्सिंग होम और ज्यादा क्षमता वाले अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों और स्टाफ के बीच कैस फर्क किया जा सकता है. वह भी तो कोरोना वायरस से लोगों को बचाने के लिए फ्रंटलाइन वर्कर्स की तरह काम कर रहे थे. तब गौतम नारायण ने कहा कि दिल्ली सरकार याचिकाकर्ता के पति को अनुदान देने पर दोबारा विचार करेगी.