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अनुवाद से देश की हर सुगंध और संस्कृति काे किया जा सकता है महसूस-अनुवादक

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस पर कई कार्य़क्रमों का आयोजन किया गया. साहित्य अकादमी की ओर से भी साहित्य मंच कार्यक्रम रखा गया. इस दौरान कई अनुवादकों ने विचार रखे.

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस
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Published : Oct 1, 2021, 10:06 AM IST

नई दिल्लीः अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के मौके पर साहित्य अकादमी की ओर से साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का विषय अनुवाद और राष्ट्रीय एकता रखा गया. इस अवसर पर बोलते हुए प्रख्यात गुजराती अनुवादक प्रोफेसर आलोक गुप्त ने कहा कि भारत में अनुवाद के एक समृद्ध परंपरा हमेशा मौजूद रही है.

उन्होंने कहा कि इसमें बड़ा बदलाव अंग्रेजों के आने के बाद आया. उन्होंने कई प्राचीन धार्मिक पुस्तकों जैसे भगवत गीता, रामायण, महाभारत आदि के उदाहरण देकर कहा कि इनके अनेक भाष्य अनुवादों ने पूरे देश को एक सूत्र में बांधे रखा है. उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में औद्योगिकीरण के बाद साहित्य के क्षेत्र में आए बदलाव को रेखांकित करते हुए कहा कि अनुवाद का कोई विकल्प नहीं है.

ये भी पढ़ें-साहित्य अकादमी की लाइब्रेरी में पढ़ सकते हैं 24 भाषाओं में दो लाख से ज्यादा किताबें

मलयालम अनुवादक प्रोफेसर के वजना ने कहा कि अनुवाद एक सांस्कृतिक प्रक्रिया है, जो दो भाषाओं और दो संस्कृतियों के बीच घटित होती है. उन्होंने कई विदेशी पुस्तकों के उदाहरण से समझाया कि किसी भी भाषा को सार्वभौमिक रखना हर कहीं एक तरह का संदेश सभी संस्कृतियों तक पहुंचाती है. उन्होंने वर्तमान में उपन्यासों को राष्ट्रीय रूपक मानते हुए उनके ज्यादा से ज्यादा अनुवाद किए जाने की बात कही, जिससे राष्ट्रीय एकता को बल मिले.

ये भी पढ़ें-साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020 के विजेताओं को किया गया सम्मानित


उर्दू और हिंदी के जाने-माने अनुवादक डॉक्टर जानकी प्रसाद शर्मा ने कहा कि देश के हर रंग और सुगंध को अनुवाद के माध्यम से महसूस कर सकते हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनजातीय लोक साहित्य, जोकि बहुत समृद्ध है, भारतीय भाषाओं में ज्यादा से ज्यादा अनुवाद सामने आने चाहिए, जिससे कि वास्तविक भारत को पहचान मिल सके.

नई दिल्लीः अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के मौके पर साहित्य अकादमी की ओर से साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का विषय अनुवाद और राष्ट्रीय एकता रखा गया. इस अवसर पर बोलते हुए प्रख्यात गुजराती अनुवादक प्रोफेसर आलोक गुप्त ने कहा कि भारत में अनुवाद के एक समृद्ध परंपरा हमेशा मौजूद रही है.

उन्होंने कहा कि इसमें बड़ा बदलाव अंग्रेजों के आने के बाद आया. उन्होंने कई प्राचीन धार्मिक पुस्तकों जैसे भगवत गीता, रामायण, महाभारत आदि के उदाहरण देकर कहा कि इनके अनेक भाष्य अनुवादों ने पूरे देश को एक सूत्र में बांधे रखा है. उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में औद्योगिकीरण के बाद साहित्य के क्षेत्र में आए बदलाव को रेखांकित करते हुए कहा कि अनुवाद का कोई विकल्प नहीं है.

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मलयालम अनुवादक प्रोफेसर के वजना ने कहा कि अनुवाद एक सांस्कृतिक प्रक्रिया है, जो दो भाषाओं और दो संस्कृतियों के बीच घटित होती है. उन्होंने कई विदेशी पुस्तकों के उदाहरण से समझाया कि किसी भी भाषा को सार्वभौमिक रखना हर कहीं एक तरह का संदेश सभी संस्कृतियों तक पहुंचाती है. उन्होंने वर्तमान में उपन्यासों को राष्ट्रीय रूपक मानते हुए उनके ज्यादा से ज्यादा अनुवाद किए जाने की बात कही, जिससे राष्ट्रीय एकता को बल मिले.

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उर्दू और हिंदी के जाने-माने अनुवादक डॉक्टर जानकी प्रसाद शर्मा ने कहा कि देश के हर रंग और सुगंध को अनुवाद के माध्यम से महसूस कर सकते हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनजातीय लोक साहित्य, जोकि बहुत समृद्ध है, भारतीय भाषाओं में ज्यादा से ज्यादा अनुवाद सामने आने चाहिए, जिससे कि वास्तविक भारत को पहचान मिल सके.

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