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हिंसा पर काबू करने के लिए जामिया यूनिवर्सिटी में घुसना पड़ा: दिल्ली पुलिस - जामिया यूनिवर्सिटी

दिल्ली हाईकोर्ट में जामिया हिंसा के मामले को लेकर हो रही सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा कि हिंसा पर काबू करने के लिए पुलिस को यूनिवर्सिटी में घुसना पड़ा.

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दिल्ली हाईकोर्ट
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Published : Sep 18, 2020, 7:41 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आज जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर दिल्ली पुलिस की दलीलें सुनीं. दिल्ली पुलिस की ओर से एएसजी अमन लेखी ने कहा कि भीड़ हिंसा कर रही थी और पुलिस के आदेश को नहीं मान रही थी. उन्होंने कहा कि पुलिस हिंसा पर काबू करने के लिए जामिया यूनिवर्सिटी में घुसना पड़ा. मामले पर अगली सुनवाई 1 अक्टूबर को होगी.

जामिया हिंसा पर दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई



जांच दूसरी एजेंसी को ट्रांसफर करने का विरोध
सुनवाई के दौरान अमन लेखी ने जामिया हिंसा की जांच दिल्ली पुलिस से हटाकर दूसरी एजेंसी को सौंपने का विरोध किया. सुनवाई के दौरान जस्टिस प्रतीक जालान ने अमन लेखी से पूछा कि दिल्ली पुलिस के खिलाफ जो शिकायतें की गईं उनका क्या हुआ. तब लेखी ने कहा कि हमने उसे अभी तक नहीं बताया है , उसे भी बताऊंगा. लेखी ने कहा कि वहां गैरकानूनी भीड़ थी और वो कोई साधारण भीड़ नहीं थी.


अमन लेखी ने गैरकानूनी भीड़ पर बलप्रयोग को लेकर एक फैसले का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि पुलिस किसी गैरकानूनी भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल का प्रयोग कर सकती है. उन्होंने कहा कि पुलिस को भीड़ हटाने का आदेश मिला हुआ था और भीड़ हिंसा कर रही थी. वहां शांति स्थापित करने का सवाल था और शांति स्थापित करने के लिए किसी बल का प्रयोग किया जा सकता है.


'दिल्ली पुलिस के खिलाफ कोई केस नहीं बनता'
अमन लेखी ने कहा कि भीड़ हिंसा कर रही थी और पुलिस के आदेश के बावजूद तितर-बितर नहीं हो रही थी. पुलिस को हिंसा पर लगाम लगाने के लिए युनिवर्सिटी में घुसना पड़ा. अमन लेखी ने कहा कि जिनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है उनके अलावा यहां सभी जनहित याचिका के नाम पर मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि सही काम के लिए उठाए गए कदम पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए. प्रथम दृष्टया दिल्ली पुलिस के खिलाफ कोई केस नहीं बनता है.


'मानवाधिकार आयोग ने भी याचिकाकर्ता की बातों से एतराज जताया'
लेखी ने कहा कि कौन जांच करेगा ये फैसला कोई व्यक्ति नहीं कर सकता है. ट्रायल कोर्ट में ये मामला चल रहा है. एक संवैधानिक कोर्ट ये आदेश नहीं दे सकती है कि जांच को ट्रांसफर किया जाए. निष्पक्ष और ईमानदार जांच के लिए इसे ट्रांसफर किया जा सकता है. इन मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है. आरोपी जांच को ट्रांसफर करने की मांग नहीं कर रहे हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी याचिकाकर्ता की बातों से एतराज जताया है. आयोग ने मुआवजा भी स्वीकृत नहीं किया है.

'आपत्तिजनक नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ नहीं ले सकते'
पिछले 28 अगस्त सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा था कि अनियंत्रित भीड़ पर पुलिस का हस्तक्षेप जरूरी था. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली पुलिस की ओर से सीलबंद लिफाफे में दी गई सीसीटीवी फुटेज को देखने की मांग की था. अमन लेखी ने कहा था कि उकसाने की कार्रवाई के बावजूद पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित किया. लेखी ने कहा था कि 13 दिसंबर को दो हजार लोग जामिया यूनिवर्सिटी के गेट नंबर 1 पर एकत्र हो गए और पत्थरबाजी करने लगे. इस दौरान निजी संपत्तियों को नुकसान हुआ.

उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कमोबेश वही कहा है जो दिल्ली पुलिस ने कहा है. पुलिस अपनी कार्रवाई से अनजान नहीं थी बल्कि उसने वैध आधार पर हस्तक्षेप किया. स्थानीय नेता भीड़ को उकसा रहे थे और आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे. ये नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ नहीं ले सकते हैं. भीड़ लाठियों और पेट्रोल बमों से लैस थी.


'पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया'
लेखी ने कहा था कि जामिया कैंपस में भीड़ अनियंत्रित हो गई. उसके बाद शाम साढ़े पांच बजे पुलिस कैंपस में घुसी और आंसू गैस और लाठीचार्ज का प्रयोग किया गया. करीब डेढ़ घंटे के बाद दिल्ली पुलिस जामिया कैंपस से बाहर आ गई. उन्होंने कहा था कि युनिवर्सिटी सीखने की जगह है न कि आग लगाने की. यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर हथियार कहां से आ गए. उन्होंने कहा था कि पुलिस ने अपनी कर्तव्य निभाया है और अगर किसी ने कानून तोड़ा तो भीड़ थी. पिछले 21 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने कहा था कि उसने कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने जामिया यूनिवर्सिटी में की गई कार्रवाई को सही बताते हुए याचिका खारिज करने की मांग की थी.


पुलिस पर लगाए थे गंभीर आरोप
पिछले 4 अगस्त को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया था कि पुलिस छात्रों पर इसलिए बर्बरता से पेश आई ताकि वे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा न ले सकें. याचिकाकर्ताओं के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कोर्ट के सामने दो सीडी भी प्ले कर दिखाया था.

स्वतंत्र जांच की मांग
सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने पुलिस बर्बरता की स्वतंत्र जांच की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि छात्रों ने संसद मार्च की योजना बनाई थी जिससे पुलिस भयभीत हो गई थी. छात्रों पर आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया गया. एक छात्र का हाथ टूट गया, एक छात्र की आंखों की रोशनी चली गई. इस मामले में चार छात्रों पर पूरी घटना की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है. गोंजाल्वेस ने कहा था कि छात्र विवाद करने के मूड में नहीं थे.



'छात्र आंदोलन की आड़ में हिंसा को अंजाम दिया गया'
इस मामले में दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा है कि जामिया हिंसा सोची समझी योजना के तहत की गई थी. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जामिया हिंसा की इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय लोगों की मदद से हिंसा को अंजाम दिया गया. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि 13 और 15 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के मामले में तीन एफआईआर दर्ज किए गए हैं. इस हिंसा में पत्थरों, लाठियों , पेट्रोल बम, ट्यूबलाईट्स इत्यादि का इस्तेमाल किया गया. इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे.

दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली पुलिस पर क्रूरता का इंतजाम गलत है. विरोध करना सबका अधिकार है लेकिन विरोध करने की आड़ में कानून का उल्लंघन करना और हिंसा और दंगे में शामिल होना सही नहीं है. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ये आरोप सही नहीं है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन की बिना अनुमति के पुलिस परिसर में घुसी और छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान और आरोपियों की पूरी लिस्ट हाईकोर्ट को सौंपी है.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आज जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर दिल्ली पुलिस की दलीलें सुनीं. दिल्ली पुलिस की ओर से एएसजी अमन लेखी ने कहा कि भीड़ हिंसा कर रही थी और पुलिस के आदेश को नहीं मान रही थी. उन्होंने कहा कि पुलिस हिंसा पर काबू करने के लिए जामिया यूनिवर्सिटी में घुसना पड़ा. मामले पर अगली सुनवाई 1 अक्टूबर को होगी.

जामिया हिंसा पर दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई



जांच दूसरी एजेंसी को ट्रांसफर करने का विरोध
सुनवाई के दौरान अमन लेखी ने जामिया हिंसा की जांच दिल्ली पुलिस से हटाकर दूसरी एजेंसी को सौंपने का विरोध किया. सुनवाई के दौरान जस्टिस प्रतीक जालान ने अमन लेखी से पूछा कि दिल्ली पुलिस के खिलाफ जो शिकायतें की गईं उनका क्या हुआ. तब लेखी ने कहा कि हमने उसे अभी तक नहीं बताया है , उसे भी बताऊंगा. लेखी ने कहा कि वहां गैरकानूनी भीड़ थी और वो कोई साधारण भीड़ नहीं थी.


अमन लेखी ने गैरकानूनी भीड़ पर बलप्रयोग को लेकर एक फैसले का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि पुलिस किसी गैरकानूनी भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल का प्रयोग कर सकती है. उन्होंने कहा कि पुलिस को भीड़ हटाने का आदेश मिला हुआ था और भीड़ हिंसा कर रही थी. वहां शांति स्थापित करने का सवाल था और शांति स्थापित करने के लिए किसी बल का प्रयोग किया जा सकता है.


'दिल्ली पुलिस के खिलाफ कोई केस नहीं बनता'
अमन लेखी ने कहा कि भीड़ हिंसा कर रही थी और पुलिस के आदेश के बावजूद तितर-बितर नहीं हो रही थी. पुलिस को हिंसा पर लगाम लगाने के लिए युनिवर्सिटी में घुसना पड़ा. अमन लेखी ने कहा कि जिनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है उनके अलावा यहां सभी जनहित याचिका के नाम पर मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि सही काम के लिए उठाए गए कदम पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए. प्रथम दृष्टया दिल्ली पुलिस के खिलाफ कोई केस नहीं बनता है.


'मानवाधिकार आयोग ने भी याचिकाकर्ता की बातों से एतराज जताया'
लेखी ने कहा कि कौन जांच करेगा ये फैसला कोई व्यक्ति नहीं कर सकता है. ट्रायल कोर्ट में ये मामला चल रहा है. एक संवैधानिक कोर्ट ये आदेश नहीं दे सकती है कि जांच को ट्रांसफर किया जाए. निष्पक्ष और ईमानदार जांच के लिए इसे ट्रांसफर किया जा सकता है. इन मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है. आरोपी जांच को ट्रांसफर करने की मांग नहीं कर रहे हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी याचिकाकर्ता की बातों से एतराज जताया है. आयोग ने मुआवजा भी स्वीकृत नहीं किया है.

'आपत्तिजनक नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ नहीं ले सकते'
पिछले 28 अगस्त सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा था कि अनियंत्रित भीड़ पर पुलिस का हस्तक्षेप जरूरी था. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली पुलिस की ओर से सीलबंद लिफाफे में दी गई सीसीटीवी फुटेज को देखने की मांग की था. अमन लेखी ने कहा था कि उकसाने की कार्रवाई के बावजूद पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित किया. लेखी ने कहा था कि 13 दिसंबर को दो हजार लोग जामिया यूनिवर्सिटी के गेट नंबर 1 पर एकत्र हो गए और पत्थरबाजी करने लगे. इस दौरान निजी संपत्तियों को नुकसान हुआ.

उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कमोबेश वही कहा है जो दिल्ली पुलिस ने कहा है. पुलिस अपनी कार्रवाई से अनजान नहीं थी बल्कि उसने वैध आधार पर हस्तक्षेप किया. स्थानीय नेता भीड़ को उकसा रहे थे और आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे. ये नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ नहीं ले सकते हैं. भीड़ लाठियों और पेट्रोल बमों से लैस थी.


'पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया'
लेखी ने कहा था कि जामिया कैंपस में भीड़ अनियंत्रित हो गई. उसके बाद शाम साढ़े पांच बजे पुलिस कैंपस में घुसी और आंसू गैस और लाठीचार्ज का प्रयोग किया गया. करीब डेढ़ घंटे के बाद दिल्ली पुलिस जामिया कैंपस से बाहर आ गई. उन्होंने कहा था कि युनिवर्सिटी सीखने की जगह है न कि आग लगाने की. यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर हथियार कहां से आ गए. उन्होंने कहा था कि पुलिस ने अपनी कर्तव्य निभाया है और अगर किसी ने कानून तोड़ा तो भीड़ थी. पिछले 21 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने कहा था कि उसने कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने जामिया यूनिवर्सिटी में की गई कार्रवाई को सही बताते हुए याचिका खारिज करने की मांग की थी.


पुलिस पर लगाए थे गंभीर आरोप
पिछले 4 अगस्त को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया था कि पुलिस छात्रों पर इसलिए बर्बरता से पेश आई ताकि वे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा न ले सकें. याचिकाकर्ताओं के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कोर्ट के सामने दो सीडी भी प्ले कर दिखाया था.

स्वतंत्र जांच की मांग
सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने पुलिस बर्बरता की स्वतंत्र जांच की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि छात्रों ने संसद मार्च की योजना बनाई थी जिससे पुलिस भयभीत हो गई थी. छात्रों पर आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया गया. एक छात्र का हाथ टूट गया, एक छात्र की आंखों की रोशनी चली गई. इस मामले में चार छात्रों पर पूरी घटना की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है. गोंजाल्वेस ने कहा था कि छात्र विवाद करने के मूड में नहीं थे.



'छात्र आंदोलन की आड़ में हिंसा को अंजाम दिया गया'
इस मामले में दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा है कि जामिया हिंसा सोची समझी योजना के तहत की गई थी. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जामिया हिंसा की इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय लोगों की मदद से हिंसा को अंजाम दिया गया. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि 13 और 15 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के मामले में तीन एफआईआर दर्ज किए गए हैं. इस हिंसा में पत्थरों, लाठियों , पेट्रोल बम, ट्यूबलाईट्स इत्यादि का इस्तेमाल किया गया. इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे.

दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली पुलिस पर क्रूरता का इंतजाम गलत है. विरोध करना सबका अधिकार है लेकिन विरोध करने की आड़ में कानून का उल्लंघन करना और हिंसा और दंगे में शामिल होना सही नहीं है. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ये आरोप सही नहीं है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन की बिना अनुमति के पुलिस परिसर में घुसी और छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान और आरोपियों की पूरी लिस्ट हाईकोर्ट को सौंपी है.

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